27.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कभी पूरे राज्य को खिलाते थे मछली, आज खुद हैं मछलियों के खरीददार, जानिये बिहार के इस जिले में मत्स्य पालन योजनाओं का हाल

बेगूसराय में मत्स्य पालन की अधिकतर योजनाएं संचिकाओं में सिमट रही हैं. जानकारी के अभाव में मछुआरे योजना से वंचित रह जाते हैं.

बेगूसराय. कभी पूरे राज्य को मछली खिलाने का दावा करने वाले बेगूसराय के मछुआरे को खुद मछलियों के लाले पड़ने लगे हैं. यहां के मछुआरे भी दूसरे जिले पर आश्रित हो चुके हैं.

बेगूसराय में मत्स्य पालन की अधिकतर योजनाएं संचिकाओं में सिमट रही हैं. जानकारी के अभाव में मछुआरे योजना से वंचित रह जाते हैं.

ऐसे में व्यापक पैमाने पर प्रचार-प्रसार से धरातल पर योजनाएं मूर्तरूप ले सकती हैं. सरकारी लाभ नहीं मिलने के कारण कारोबार में लगे सैकड़ों परिवारों के चेहरे पर मायूसी छायी हुई है.

25.42 हजार मीटरिक टन सालाना होता है उत्पादन

आंकड़े पर नजर डालें तो जिले में मछली की वार्षिक उत्पादन 25. 42 हजार मीटरिक टन उत्पादन होता है. जबकि खपत 35. 57 हजार मीटरिक टन है. मछुआरों के बीच पानी में आयरन की मात्रा अधिक काफी बाधा पहुंचा रही है.

जिले में 3032 एकड़ जमीन में है जलकर

जानकारी के अनुसार जिले में सरकारी टैंक 311 है. यह 3032 एकड़ जमीन में फैला हुआ है. जबकि 3450 एकड़ जमीन में प्राइवेट 2674 टैंक तथा दो हजार एकड़ में 25 चौर में मछली का पालन होता है.

इसके अलावा गंगा, गंडक, बलान, बागमती, बैंती के 250 किलोमीटर लंबे तट में मछली का उत्पादन होता है. सुखाड़ रहने के कारण मछलियों के प्राकृतिक भोजन में निरंतर कमी आ रही है.

पूरक आहार के माध्यम से मछली पालन घाटे का सौदा हो रहा है. जानकारी के अनुसार मत्स्यजीवी सहयोग समिति की संख्या 18 है. चांदपुरा, डंडारी, चेरियाबरियारपुर, बछवाड़ा, नावकोठी, बलिया, बछवाड़ा, मटिहानी, वीरपुर, तेघड़ा, शामहो, छौड़ाही आदि शामिल हैं.

विलुप्त हो रही हैं मछलियों की प्रजातियां

सुस्वादू देसी मछली के लिए विख्यात कावर झील से मछलियों की खास प्रजाजियां अब विलुप्त होने को हैं. कारण, कभी झील के 469730.46 हेक्टयर भू-भाग में जलजमाव रहता था जो अब सिकुड़कर आधे से भी कम रह गया है.

जानकारों के अनुसार चार दशक पूर्व तक झील में मछलियों की 165 प्रजातियां पायी जाती थीं. जिसमें देसी मांगुर, कबैय, रेहू, पटेहिया, पलवा, बसराही, चेंगा, गरैय, पोठी, खेसरा, चेचरा, डेरबा, ढोंगा, मरबा, चलबा, ईचना, कतला, चन्ना, फोंगचा, सिंधी, बगची, कौआ, गेटलगी, ढलवा, सौरी, बुआरी, खरौली, भुन्ना, हिलसा आदि प्रमुख थीं.

झील में पायी जाने वाली अन्हैय की मांग एशिया के प्रसिद्ध मछली बाजार सिलीगुड़ी में आज भी है. परंतु, अब यह प्रजाति समाप्त होने को है.

नहीं मिली प्रयासों को गति : मालूम हो कि यहां मछली उत्पादन की संभावना को देखते हुए वर्ष 1988 में तत्कालीन कृषि मंत्री चतुरानन मिश्र ने जयमंगलागढ़ में हेचरी केंद्र का शिलान्यास किया था.

परंतु, बात शिलान्यास से आगे नहीं बढ़ पायी. जबकि, जिले में बूढ़ी गंडक नदी से उत्तर-पूर्व एवं शिवाजी नगर से दक्षिण का 40 फीसदी भू-भाग जलजमावग्रस्त है. अगर इस क्षेत्र में उचित जल प्रबंधन कर दिया जाये तो मछली का उत्पादन बढ़ेगा.

योजना का लाभ पाने के लिए क्या है जरूरी

  • जिला मत्स्य विभाग को दें आवेदन

  • आवेदन के साथ जमा करना होगा जमीन के कागजात की छायाप्रति

  • दो हेक्टेयर में नया तालाब बनाने के लिए मिलेगा अनुदान

  • सामान्य वर्ग के लिए अधिकतम सात लाख रुपये तक अनुदान

  • एससी-एसटी वर्ग के आवेदक को मिलेगा 70 प्रतिशत अनुदान

  • जमीन का निरीक्षण करने के बाद विभाग देगा स्वीकृति

  • कोई भी व्यक्ति कर सकता है आवेदन, निर्धारित नहीं किया गया है लक्ष्य

क्या कहते हैं अधिकारी जिला मत्स्य पदाधिकारी

विमल कुमार मिश्रा ने कहा कि नीली क्रांति को बढ़ावा देने के लिए नये तालाबों के निर्माण के लिए योजना शुरू की गयी है. कोई भी किसान मत्स्य पालन के लिए नये तालाब का निर्माण कर इस योजना का लाभ उठा सकता है.

इस योजना के तहत चयनित मत्स्य पालकों में से तीस का चयन कर उन्हें प्रशिक्षित किया जायेगा. मछुआरा आवास योजना के तहत 120 मछुआरों को आवास मिलेंगे. पात्र रखने वाले लाभुकों के चयन प्रक्रिया शुरू हो गयी है.

मेरा अपील है कि उक्त योजनाओं का लाभ पाने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोग ऑनलाइन आवेदन करें. विशेष जानकारी के लिए जिला मत्स्य कार्यालय में आकर प्राप्त कर सकते हैं.

Posted by Ashish Jha

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें