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राजनीति में 33 फीसदी आरक्षण, महिलाओं को मिले स्वतंत्रता, तभी सार्थक होगा महिला दिवस
अररिया : आज विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है. महिलाएं अब किसी भी क्षेत्र में परिचय की मोहताज नहीं हैं. वह चाहे राजनीति हो या व्यवसाय, शिक्षा जगत हो या नेतृत्व करने की क्षमता, चिकित्सा क्षेत्र हो या फिर देश की सुरक्षा की बागडोर संभालने की ही बात. हर क्षेत्र में […]
अररिया : आज विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जा रहा है. महिलाएं अब किसी भी क्षेत्र में परिचय की मोहताज नहीं हैं. वह चाहे राजनीति हो या व्यवसाय, शिक्षा जगत हो या नेतृत्व करने की क्षमता, चिकित्सा क्षेत्र हो या फिर देश की सुरक्षा की बागडोर संभालने की ही बात. हर क्षेत्र में आज महिलाओं ने अपना परचम लहराया है. लेकिन दुर्भाग्य है कि जिस महिला आरक्षण बिल की बात कही जाती है वह आज भी राजनीतिक पचड़े में फंसकर राजनीति का शिकार हो रहा है.
जरूरत है इसे पूरी ताकत के साथ लागू कराने की. आधी आबादी कही जाने वाली महिलाओं के वास्तविक हालात यह हैं कि बिहार के संसदीय क्षेत्रों में उनकी भागीदारी महज तीन की संख्या में ही हैं. इनमें शिवहर, मुंगेर व सुपौल संसदीय क्षेत्रों को छोड़ दिया जाये तो बाकी जगहों पर आज भी पुरुषों का ही वर्चस्व है. जबकि देशभर में 543 संसदीय क्षेत्र हैं, उनमें महिलाओं की भागीदारी महज 68 की संख्या में ही है.
ऐसे में उनकी समस्याओं, उनके मुद्दों को उजागर करने वालों की कमी है. ऐसे ही अनुछए पहलुओं पर महिलाओं ने अररिया प्रभात खबर कार्यालय में आयोजित अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व की संध्या पर हुई परिचर्चा में अपनी बात बेबाकी से रखी. परिचर्चा में सभी क्षेत्रों से शामिल महिलाओं ने अपनी राय रखी.
महिला सशक्तीकरण की दिशा में नहीं हो रहा सार्थक प्रयास : इस दौरान महिलाओं ने राजनीति के क्षेत्र में हर दल से 33 फीसदी सीट महिलाओं के लिए सुरक्षित करने पर जोर दिया. साथ ही उनका कहना था कि लोकसभा व विधानसभा में महिला आरक्षण बिल को प्रमुख रूप से लागू करना चाहिए, जबकि इस दिशा में सार्थक प्रयास नहीं हो पा रहा है.
इसका नतीजा यह है कि महिलाएं खुद को दबी-कुचली सी महसूस करती हैं. उनका साफ-साफ कहना था कि जबतक देश की विधायिका व न्यायपालिका में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी नहीं, तबतक महिलाओं के विकास की दिशा में उनकी आवाज बुलंद करने वाला कोई नहीं हो सकता.
राजनीति में भी हमारी आवाज बुलंद हो इसके लिए लोकसभा व विधानसभा में हमारे संख्या बल को बढ़ाने के लिए सरकार को आवश्यक कदम उठाने चाहिये. वहीं उनका कहना था कि जबतक महिला सशक्तीकरण की दिशा में सरकार की ओर से पुरजोर कोशिश और उनपर अमल नहीं कराया जायेगा, तबतक यह महिला दिवस बेमानी सी साबित होगी.
एक स्वर में बोलीं महिलाएं – जबतक विधायिका व न्यायपालिका में नहीं बढ़ेगा हमारा संख्या बल, तब तक बुलंद नहीं हो सकेगी हमारी आवाज
लोकसभा व विधानसभा में महिलाओं की आवाज बुलंद करने के लिए सरकार को करनी चाहिए पुरजोर सार्थक कोशिश
महिलाएं हर मामले में सक्षम, योग्यता व काबिलियत के दम पर परचम लहरा रहीं
सही अवसर मिलने पर महिलाएं दुनिया को स्वर्ग बना सकती है. महिलाएं हर मामले में सक्षम है. अपनी योग्यता और काबिलियत के दम पर आज महिलाएं इस तरह के कई उदाहरण पेश कर अपनी सर्वोच्चता साबित कर चुकी हैं. बस जरूरत है एक बार सार्थक पहल व सटीक नेतृत्व की, जिससे महिलाओं की आवाज देश की आवाज बन सकें. इसकी सफल बानगी प्रजापिता ब्रह्माकुमारी संस्था दे रही है.
इसकी करीब 85 सौ शाखाएं पूरे देश भर में हैं, जिनकी बागडोर महिलाओं के हाथ में ही है. यहां तक कि इसकी मुख्य प्रशासिका 103 वर्षीय दादी जानकी अब भी देश भर में अपने नेतृत्व से संस्था को मुकाम तक पहुंचा रही हैं. उन्हें तमाम तरह के शोध के बाद मोस्ट इस्टेबल माइंड महिला के वैश्विक खिताब से भी नवाजा जा चुका है.
राजनीति के क्षेत्र में नहीं है काम कर पाने की स्वतंत्रता, पुरुषों के हाथ आज भी हमारी कमान
परिचर्चा में शामिल महिलाओं ने एक स्वर में कहा कि महिलाओं के लिए राजनीति के क्षेत्र में भी हर हाल में 33 फीसदी सीट आरक्षित होनी ही चाहिए. अक्सर ऐसा देखा जा रहा है कि पंचायतों में वार्ड पार्षद से लेकर सरपंच-मुखिया के साथ-साथ प्रखंड प्रमुख जैसे महत्वपूर्ण पदों पर महिलाएं काबिज तो हैं लेकिन, उनके अधिकार, काम करने की स्वतंत्रता के साथ-साथ उनकी कमान पुरुष वर्ग के हाथ में ही होती है.
ऐसे में महिलाएं अपने क्षेत्र में खुलकर नेतृत्व नहीं कर पातीं, न ही किसी मुद्दे पर वे खुद फैसला ही ले पाती हैं. आज के परिप्रेक्ष्य में जो वार्ड पार्षद पति, सरपंच पति, मुखिया पति व प्रमुख पति जैसे मनगढ़ंत पद सृजित कर दिये गये हैं, इसपर तत्काल प्रभाव से रोक लगानी चाहिए, ताकि महिलाएं राजनीति के क्षेत्र में भी खुद को स्वतंत्र महसूस कर सकें.
परिचर्चा में मुख्य रूप से जिला परिषद सदस्य नीलम सिंह, पार्षद दीपा आनंद, अधिवक्ता रीता घोष, प्रजापिता ब्रह्माकुमारी की जिला संचालिका उर्मिला दीदी, समाजसेविका काजल राय, कला शिक्षिका मोनालिसा मुखर्जी व शिक्षिका मधु देवी के साथ-साथ अन्य मौजूद थीं.
महिला विधेयक पर लंबे समय से चल रही बहस, पास नहीं हो पाना दुर्भाग्यपूर्ण : काजल राय
महिला विधेयक को लेकर लंबे समय से बहस चल रही है. इसका अब तक पास नहीं हो पाना दुर्भाग्यपूर्ण है. महिला सशक्तिकरण और उनके उत्थान का यह महत्वपूर्ण मामला महज राजनीतिक मुद्दा बन कर रह गया है. राजनीतिक दलों को मामले में एकजूट होकर इस महत्वपूर्ण विधेयक को दोनों सदनों में पारित कराने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए.
टाइम फ्रेम के अंदर सुलझाये जाएं महिला मामले के सभी गतिरोध : दीपा आनंद
आज महिलाएं सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्रों में अपने सफलता का परचम लहरा रही हैं. देश की राजनीति में उन्हें उचित प्रतिनिधित्व देने का मामला बीते कई सालों से लंबित है. महिला आरक्षण के मामले को लेकर सभी गतिरोधों को एक टाइम फ्रेम के अंदर सुलझाया जाना चाहिए. ताकि देश की आधी आबादी को उनका उचित राजनीतिक अधिकार हासिल हो सके.
महिला आरक्षण विधेयक पर जारी गतिरोध कमजोर राजनीतिक मंशा का नतीजा : मोनालिसा
महिला आरक्षण विधेयक को लेकर जारी गतिरोध कमजोर राजनीतिक मंशा का नतीजा है. सत्ताधारी दल हो या विपक्ष इसे अपने राजनीतिक लाभ के लिहाज से भुनाना चाहती है. जो विधेयक के पास होने में बड़ी रूकावट है. आगामी चुनावों में अपने मताधिकारी के प्रयोग में विधेयक को लेकर नेक नीयत रखने वाले प्रत्याशी व राजनीतिक पार्टी एकजूट समर्थन के प्रति महिलाओं को आगे आने चाहिए.
महिला सम्मान मामले में पुरुषों की दोहरी नीति ठीक नहीं : मधु कुमारी
भारतीय समाज में महिलाओं को हमेशा से सर्वाच्च स्थान प्राप्त है. सती की अराधना के बाद ही भगवान राम लंकापति रावण से युद्ध के लिए गये. इस अवधारणा को हमारा पुरुष प्रधान समाज नकारने के प्रयास में लगा है. इसका नतीजा है कि महिला अधिकार व सम्मान के मामले में उनकी दोहरी नीति बनी हुई है. लोगों की यही मानसिकता महिला विधयेक को पारित कराने के मार्ग में बाधक बनी हुई है.
महिलाओं के उत्थान के लिए पारिवारिक-सामाजिक सहयोग जरूरी : नीलम सिंह
महिलाओं के उत्थान और तरक्की के लिए पारिवारिक व सामाजिक सहयोग और प्रोत्साहन जरूरी है. महिलाओं को उचित राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिलने के बाद ही उनके अधिकार व सुरक्षा की बातें ज्यादा प्रखर रूप से सामने आ सकेगा.
लेकिन देश की गैर जिम्मेदार राजनीति महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व देने के महत्वपूर्ण मामले में कई नुख्श तलाश कर मामले को टाल रही है. अपने मताधिकार के प्रयोग से महिलाओं को अपने अधिकार के प्रति एकजूटता दिखानी होगी.
महिला सशक्तीकरण के लिए राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व जरूरी : रीता घोष महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए देश की सर्वोच्च राजनीतिक संस्थानों में महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व होना जरूरी है.
ताकि महिलाओं के हित से जुड़े मामलों को मजबूती से उठाया जा सके. महिलाओं को उनका उचित अधिकार देने में हमारा सामाजिक नजरिया भी दोषी है. पुरूष प्रधान मानसिकता के कारण महिलाओं को अगली पंक्ति में देखना वर्षों से राजनीतिक शिखर पर डटे लोगों को नागवार गुजर रहा है. इसलिए अपनी कमजोरी को छुपाने के लिए इस महत्वपूर्ण विधेयक को टाला जा रहा है.
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