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2013 में कुश्ती पर ओलंपिक से बाहर होने का खतरा टला

नयी दिल्ली : कुश्ती के ओलंपिक खेलों से बाहर होने का खतरा टलने से भारत ने राहत की सांस ही थी कि साल के आखिर में खेल की शीर्ष संस्था फीला ने नियमों में बदलाव करके भारतीय पहलवानों की राह मुश्किल कर दी. लंदन ओलंपिक में मिली ऐतिहासिक सफलता के बाद भारतीय कुश्ती में आया […]

नयी दिल्ली : कुश्ती के ओलंपिक खेलों से बाहर होने का खतरा टलने से भारत ने राहत की सांस ही थी कि साल के आखिर में खेल की शीर्ष संस्था फीला ने नियमों में बदलाव करके भारतीय पहलवानों की राह मुश्किल कर दी.

लंदन ओलंपिक में मिली ऐतिहासिक सफलता के बाद भारतीय कुश्ती में आया उत्साह वर्ष 2013 में मंद पड़ता नजर आया. अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने फरवरी में कुश्ती को ओलंपिक से अस्थायी तौर पर हटा दिया था जिससे भारत में भी खलबली मच गई थी क्योंकि पिछले दो ओलंपिक में भारत ने इस खेल में ओलंपिक पदक जीता है. कुश्ती ने हालांकि आईओसी मतदान में स्क्वाश और बेसबाल. सॉफ्टबाल को हराकर 2020 ओलंपिक खेलों में वापसी की.

भारतीय कुश्ती की बात करें तो पिछले साल लंदन ओलंपिक में सुशील कुमार ने रजत और योगेश्वर दत्त ने कांस्य पदक जीतकर कुश्ती में भारत की पदक उम्मीदें बढ़ा दी थी. दोनों हालांकि चोटिल होने के कारण इस साल कोई टूर्नामेंट नहीं खेल सके. कुश्ती के अंतरराष्ट्रीय संगठन फीला ने इस खेल को और अधिक आकर्षक बनाने और ओलम्पिक खेलों जुडे रहने के लिये नियमों में कुछ परिवर्तन किये है जिसका सीधा असर हमारे स्टार पहलवानों पर पड रहा है.

फीला ने महिला फ्री स्टाइल में दो वजन वर्ग और जोड़ दिये जबकि पुरुषों के फ्री स्टाइल और ग्रीको रोमन शैली के पूर्व मुकाबलों से एक एक वजन वर्ग कम कर दिया है जिससे अब तीनों शैलियों में बराबर छह छह वजन वर्ग हो गये. ये बदलाव ओलम्पिक के अलावा राष्ट्रमंडल और एशियाई खेलों में भी लागू होगा.

फीला के अनुसार नये नियम अगले साल एक जनवरी से लागू हो जाएंगे. रियो ओलम्पिक 2016 में पुरुष फ्री स्टाइल शैली में एक वजन वर्ग कम हो जाने से 55, 60 और 66 किग्रा वजन में भाग लेने वाले पहलवान अब 57 और 65 किग्रा में भाग लेंगे. इस नियम के हिसाब से देखा जाए तो लगातार दो बार ओलम्पिक पदक जीतने वाले सुशील कुमार को 66 किलो के बजाय 74 किग्रा और 60 किग्रा में ओलम्पिक पदक जीतने वाले योगेश्वर के पास अब 65 किग्रा में भाग लेने का विकल्प होगा.

सुशील और योगेश्वर ने स्वीकार किया है कि बड़ी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अपने पुराने वजन को बदल कर नये वजन वर्ग में लड़ना काफी कठिन होता है. खासकर वजन कम करके मुकाबला करने में तालमेल बैठाने में मुश्किल होती है इसलिये ज्यादा वजन के मुकाबले में भिंडना होगा.

इस साल भारत के सीनियर पहलवानों ने मुख्य रुप से हंगरी के बुडापेस्ट में विश्व कुश्ती और एशियाई प्रतियोगिता में भाग लिया. विश्व कुश्ती में भारत ने 21 पहलवानों दल भेजा जिसमें केवल अमित ने रजत और बजरंग ने कास्य पदक जीता. भारत का कोई पहलवान स्वर्ण पदक नहीं जीत सका. भारत की मेजबानी में आयोजित एशियाई कुश्ती प्रतियोगिता में भारत ने दो स्वर्ण,एक रजत और छह कांस्य सहित नौ पदक ही जीत सके.

पिछले कई बार की तरह इस साल भी भारत के जूनियर पहलवानों शानदार प्रदर्शन किया लेकिन ये पहलवान सीनियर वर्ग तक आते आते उस लय को बरकरार नहीं रख पाते. इसका आकलन भारतीय कुश्ती महासंघ को गंभीरता से करना होगा.

भारत के जूनियर पहलवानों ने थाइलैंड के फुकेट में आयोजित एशियाई जूनियर में तीन स्वर्ण सहित नौ पदक,मंगोलिया के उडनबटोर में होने वाली एशियाइ कैडिट में तीन स्वर्ण और नौ रजत के साथ 15 पदक और बलगारिया के साफिया में आयोजित विश्व जूनियर प्रतियोगिता में एक रजत और दो कांस्य पदक जीते.

दक्षिण अफ्रीका के जोहानिसबर्ग में आयोजित राष्ट्रमंडल कुश्ती प्रयियोगिता में भारतीय पहलवानों ने 16 स्वर्ण सहित 38 पदक जीते लेकिन इस प्रतियोगिता में सीमित देशों के पहलवानों ने ही भाग लिया.

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