Maa Kalratri Chalisa: इस सप्तमी जरूर करें माता कालरात्रि चालीसा का पाठ, जीवन से दूर होंगे
Maa Kalratri Chalisa: माता कालरात्रि, मां आदिशक्ति दुर्गा का विकराल स्वरूप हैं. माता की आराधना से जीवन से भय, दुख, दर्द और कष्ट दूर होते हैं और घर-परिवार में खुशहाली आती है. नवरात्रि के सातवें दिन माता की पूजा की जाती है. इस दिन माता कालरात्रि चालीसा का पाठ करना बेहद शुभ माना गया है.
Maa Kalratri Chalisa: नवरात्रि की सप्तमी तिथि को मां दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि मां कालरात्रि की उपासना से भक्तों के जीवन से भय और दुख दूर होते हैं. इस दिन माता कालरात्रि को समर्पित चालीसा का पाठ करने का विशेष महत्व है. इसे करने से मन को शांति मिलती है और पूजा का संपूर्ण फल प्राप्त होता है.
माता कालरात्रि चालिसा( Mata Kalratri Chalisa)
दोहा
जय काली, कलिमलहरण, महिमा अगम अपार.
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार॥
Also read: Mata Kalratri Aarti
चौपाई
अरि मद मान मिटावन हारी, मुण्डमाल गल सोहत प्यारी॥
अष्टभुजी सुखदायक माता, दुष्टदलन जग में विख्याता॥ 1॥
भाल विशाल मुकुट छवि छाजै, कर में शीश शत्रु का साजै॥
दूजे हाथ लिए मधु प्याला, हाथ तीसरे सोहत भाला॥ 2॥
चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे, छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे॥
सप्तम करदमकत असि प्यारी, शोभा अद्भुत मात तुम्हारी॥ 3॥
अष्टम कर भक्तन वर दाता, जग मनहरण रूप ये माता॥
भक्तन में अनुरक्त भवानी, निशदिन रटें ऋषि-मुनि ज्ञानी॥ 4॥
महाशक्ति अति प्रबल पुनीता, तू ही काली तू ही सीता॥
पतित तारिणी हे जग पालक, कल्याणी पापी कुल घालक॥ 5॥
शेष सुरेश न पावत पारा, गौरी रूप धर्यो इक बारा॥
तुम समान दाता नहिं दूजा, विधिवत करें भक्तजन पूजा॥ 6॥
रूप भयंकर जब तुम धारा, दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा॥
नाम अनेकन मात तुम्हारे, भक्तजनों के संकट टारे॥ 7॥
कलि के कष्ट कलेशन हरनी, भव भय मोचन मंगल करनी॥
महिमा अगम वेद यश गावैं, नारद शारद पार न पावैं॥ 8॥
भू पर भार बढ़्यो जब भारी, तब तब तुम प्रकटीं महतारी॥
आदि अनादि अभय वरदाता, विश्वविदित भव संकट त्राता॥ 9॥
कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा, उसको सदा अभय वर दीन्हा॥
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा, काल रूप लखि तुमरो भेषा॥ 10॥
कलुआ भैंरों संग तुम्हारे, अरि हित रूप भयानक धारे॥
सेवक लांगुर रहत अगारी, चौसठ जोगन आज्ञाकारी॥ 11॥
त्रेता में रघुवर हित आई, दशकंधर की सैन नसाई॥
खेला रण का खेल निराला, भरा मांस-मज्जा से प्याला॥ 12॥
रौद्र रूप लखि दानव भागे, कियौ गवन भवन निज त्यागे॥
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो, स्वजन विजन को भेद भुलायो॥ 13॥
ये बालक लखि शंकर आए, राह रोक चरनन में धाए॥
तब मुख जीभ निकर जो आई, यही रूप प्रचलित है माई॥ 14॥
बाढ़्यो महिषासुर मद भारी, पीड़ित किए सकल नर-नारी॥
करूण पुकार सुनी भक्तन की, पीर मिटावन हित जन-जन की॥ 15॥
तब प्रगटी निज सैन समेता, नाम पड़ा मां महिष विजेता॥
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं, तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं॥ 16॥
मान मथनहारी खल दल के, सदा सहायक भक्त विकल के॥
दीन विहीन करैं नित सेवा, पावैं मनवांछित फल मेवा॥ 17॥
संकट में जो सुमिरन करहीं, उनके कष्ट मातु तुम हरहीं॥
प्रेम सहित जो कीरति गावैं, भव बंधन सों मुक्ती पावैं॥ 18॥
काली चालीसा जो पढ़हीं, स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं॥
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा, केहि कारण मां कियौ विलम्बा॥ 19॥
करहु मातु भक्तन रखवाली, जयति जयति काली कंकाली॥
सेवक दीन अनाथ अनारी, भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी॥ 20॥
दोहा
प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ.
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ॥
यह भी पढ़े: Maa Kalratri Vrat Katha
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी केवल मान्यताओं और परंपरागत जानकारियों पर आधारित है. प्रभात खबर किसी भी तरह की मान्यता या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है.
ये भी पढ़े : दुर्गा जी की आरती | श्री दुर्गा चालीसा | मां शैलपुत्री की आरती | मां ब्रह्मचारिणी की आरती | मां चंद्रघण्टा की आरती | मां कूष्मांडा देवी की आरती | स्कंदमाता की आरती | मां कात्यायनी की आरती | माता महागौरी जी की आरती | मां सिद्धिदात्री की आरती
