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Akshaya Navami 2021: आज है अक्षय नवमी, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व और इस दिन क्या करें और क्या नहीं

Akshay Navami 2021: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी या अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता है. इस साल आंवला नवमी 12 नवंबर, शुक्रवार के दिन पड़ रही है.

हिंदू धर्म में आंवला नवमी का विशेष महत्व होता है. इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के नौवें दिन अक्षय नवमी को मनाया जाता है. इस दिन दान-धर्म का अधिक महत्व होता है. मान्यता है कि इस दिन दान करने से उसका पुण्य वर्तमान के साथ अगले जन्म में भी मिलता है. शास्त्रों के अनुसार, आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है. कहते हैं कि ऐसा करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं.

अक्षय नवमी 2021 शुभ मुहूर्त-:

12 नवंबर 2021 दिन शुक्रवार को सुबह 06 बजकर 50 मिनट से दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक पूजन का शुभ मुहूर्त है.

नवमी तिथि प्रारंभ:-

12 नवंबर 2021, दिन शुक्रवार को सुबह 05 बजकर 51 मिनट से प्रारंभ होगी, जो कि 13 नवंबर, शनिवार को सुबह 05 बजकर 30 मिनट तक रहेगी.

आंवला नवमी महत्व-:

आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष के नीचे भोजन बनाने और भोजन करने का विशेष महत्व है. आंवला नवमी को ही भगवान विष्णु ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था. इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा की थी. आज भी लोग अक्षय नवमी पर मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करते हैं. संतान प्राप्ति के लिए इस नवमी पर पूजा अर्चना का विशेष महत्व है. इस व्रत में भगवान श्री हरि का स्मरण करते हुए रात्रि जागरण करें.

अक्षय नवमी पूजा विधि-:*

महिलाएं आंवला नवमी के दिन स्नान आदि करके किसी आंवला वृक्ष के समीप जाएं. उसके आसपास साफ-सफाई करके आंवला वृक्ष की जड़ में शुद्ध जल अर्पित करें. फिर उसकी जड़ में कच्चा दूध डालें. पूजन सामग्रियों से वृक्ष की पूजा करें और उसके तने पर कच्चा सूत या मौली 8 परिक्रमा करते हुए लपेटें. कुछ जगह 108 परिक्रमा भी की जाती है. इसके बाद परिवार और संतान के सुख-समृद्धि की कामना करके वृक्ष के नीचे ही बैठकर परिवार, मित्रों सहित भोजन किया जाता है.

क्यों और कैसे मनाते हैं-:

मान्यता :-

1. पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं. इसीलिए इस पेड़ की पूजा अर्चना की जाती है.

2. यह भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण अपनी बाल लीलाओं का त्याग करके वृंदावन की गलियों को छोड़कर मथुरा चले गए थे.

3. आंवला भगवान विष्णु का सबसे प्रिय फल है और आंवले के वृक्ष में सभी देवी देवताओं का निवास होता है इसलिए इसकी पूजा का प्रचलन है.

4. आयुर्वेद के अनुसार आंवला आयु बढ़ाने वाला फल है यह अमृत के समान माना गया है इसीलिए हिन्दू धर्म में इसका ज्यादा महत्व है.

फायदे :

1. आंवले के वृक्ष की पूजा करने से देवी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन व्रत रखने से संतान की प्राप्ति भी होती है.

2. ऐसी मान्यता है कि आंवला पेड़ की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं.

3. इस दिन विष्णु सहित आंवला पेड़ की पूजा-अर्चना करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.

4. अन्य दिनों की तुलना में नवमी पर किया गया दान पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है.

5. धर्मशास्त्र अनुसार इस दिन स्नान, दान, यात्रा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.

कैसे करें-:

1. आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर पूजन कर उसकी जड़ में दूध देना चाहिए. इसके बाद पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बांधकर कपूर बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करनी चाहिए.

2. इस दिन महिलाएं किसी ऐसे गॉर्डन में जहां आंवले का वृक्ष हो, वहां जाकर वहीं भोजन करती हैं. पूजा-अर्चना के बाद खीर, पूड़ी, सब्जी और मिष्ठान आदि का भोग लगाया जाता है. नवमी के दिन महिलाएं भी अक्षत, पुष्प, चंदन आदि से पूजा-अर्चना कर पीला धागा लपेटकर वृक्ष की परिक्रमा करती हैं.

3. आंवला नवमी के दिन परिवार के बड़े-बुजुर्ग सदस्य विधि-विधान से आंवला वृक्ष का पूजा-अर्चना करके भक्तिभाव से पर्व को मनाकर आंवला पूजन के बाद पेड़ की छांव पर ब्राह्मण भोज भी कराते हैं. आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मणों को भोजन कराएं तथा खुद भी उसी वृक्ष के निकट बैठकर भोजन करें.

4. धात्री वृक्ष (आंवला) के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर ‘ॐ धात्र्ये नमः’ मंत्र से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धार गिराते हुए पितरों को तर्पण करने का विधा भी है. इस दिन पितरों के शीत निवारण (ठंड) के लिए ऊनी वस्त्र व कंबल दान किया जाता है.

5. आंवला नवमी पर उज्जयिनी में कर्क तीर्थ यात्रा व नगर प्रदक्षिणा का प्रचलन भी है. वर्षों पहले आंवला नवमी पर उज्जैनवासी भूखी माता मंदिर के सामने शिप्रा तट स्थित कर्कराज मंदिर से कर्क तीर्थ यात्रा का आरंभ कर नगर में स्थित प्रमुख मंदिरों पर दर्शन-पूजन कर नगर प्रदक्षिणा करते थे. कालांतर यह यात्रा कुछ लोगों द्वारा ही की जाती है बाद में यह परंपरा बन गई.

आंवला नवमी पूजा विधि सामग्री-:

यह व्रत घर की महिलायें संतान प्राप्ति और परिवार के सुख के लिए करती हैं. आजकल यह पूजा एक पिकनिक के रूप में पुरे परिवार एवम दोस्तों के साथ मिलकर की जाती हैं.

पूजन सामग्री-:

1 आँवले का पौधा पत्ते एवम फल, तुलसी के पत्ते एवम पौधा

2 कलश एवम जल

3 कुमकुम, हल्दी, सिंदूर, अबीर, गुलाल, चावल, नारियल, सूत का धागा

4 दुप, दीप, माचिस

5 श्रृंगार का सामान, साड़ी ब्लाउज

6 दान के लिए अनाज

आंवला नवमी पूजा विधि-:

•औरतें जल्दी उठ नहा धोकर साफ कपड़े पहनती है.

•इस दिन आवला के पेड़ की पूजा होती है, और उसी के पास भोजन किया जाता है. तो इस दिन पूरा परिवार ऐसी जगह पिकनिक की योजना बनाता है, जहाँ आवला का पेड़ होता है.

•कई लोग अपने दोस्तों, क्लब वालों के साथ इस त्यौहार की योजना बनाते है, और किसी फार्म हाउस या पिकनिक स्पॉट में जाते है.

•पूरा परिवार नहीं जाता है, तब भी औरतें तो इस दिन को बड़ी धूमधाम से अपने मित्रों परिवार के साथ मनाती है.

•जो लोग बाहर कही नहीं जाते है, वे घर में आवले के छोटे पोधे के पास ही इसकी पूजा करते है, और फिर भोजन करते है.

•पुरे परिवार के लिए यह एक पिकनिक हो जाती है, जिसमें औरतें घर से खाना बनाकर ले जाती है, या वहीँ सब मिलकर बनाते है.

•आमले के पेड़ की पूजा की जाती है, उसकी परिक्रमा का विशेष महत्व है.

•आँवले के वृक्ष में दूध चढ़ाया जाता हैं पूरी विधि के साथ पूजन किया जाता हैं.

•श्रंगार का सामान एवम कपड़े किसी गरीब सुहागन अथवा ब्राहमण पंडित को दान देते हैं.

•इस दिन दान का विशेष महत्व होता हैं गरीबो को अनाज अपनी इच्छानुसार दान देते हैं.

•सफ़ेद या लाल मौली के धागे से इसकी परिक्रमा करते है. औरतें अपने अनुसार 8 या 108 बार परिक्रमा करती है. इस परिक्रमा में 8 या 108 की भी चीज चढ़ाई जाती है. इसमें औरतें बिंदी, टॉफी, चूड़ी, मेहँदी, सिंदूर आदि कोई भी वस्तु का चुनाव करती है, और इसे आमला के पेड़ में चढ़ाती है.

•इसके बाद इस समान को हर सुहागन औरत को टिकी लगाकर दिया जाता है.

•फिर सब साथ बैठकर कथा सुनती है, और खाने बैठती है.

•इस दिन ब्राह्मणी औरत को सुहाग का समान, खाने की चीज और पैसे दान में देना अच्छा मानते है.

•आजकल कई बड़े- बड़े गार्डन में आँवला नवमी पूजा का आयोजन किया जाता हैं. पुरे परिवार के साथ सभी महिलायें गार्डन में एकत्र होती हैं पूजा करती हैं और साथ में मिलकर सभी भोजन करते हैं. कई खेल खेलते हैं और भजन एवम गाने गाकर उत्साह से आँवला पूजन पूरा करते हैं.

अक्षय नवमी की कथा-:

  • एक राजा था, उसका प्रण था वह रोज सवा मन आंवले दान करके ही खाना खाता था. इससे उसका नाम आंवलया राजा पड़ गया.

  • एक दिन उसके बेटे बहू ने सोचा कि राजा इतने सारे आंवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो जायेगा. इसीलिए बेटे ने राजा से कहा की उसे इस तरह दान करना बंद कर देना चाहिए.

  • बेटे की बात सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ और राजा रानी महल छोड़कर बियाबान जंगल में जाकर बैठ गए.

  • राजा-रानी आंवला दान नहीं कर पाए और प्रण के कारण कुछ खाया नहीं.

  • जब भूखे प्यासे सात दिन हो गए तब भगवान ने सोचा कि यदि मैने इसका प्रण नहीं रखा और इसका सत नहीं रखा तो विश्वास चला जाएगा.

  • इसलिए भगवान ने, जंगल में ही महल, राज्य और बाग-बगीचे सब बना दिए और ढेरों आंवले के पेड़ लगा दिए.

  • सुबह राजा रानी उठे तो देखा की जंगल में उनके राज्य से भी दुगना राज्य बसा हुआ है.

  • राजा, रानी से कहने लगे, रानी देख कहते हैं, सत मत छोड़े. सूरमा सत छोड़या पत जाए, सत की छोड़ी लक्ष्मी फेर मिलेगी आए.

  • आओ नहा धोकर आंवले दान करें और भोजन करें. राजा-रानी ने आंवले दान करके खाना खाया और खुशी-खुशी जंगल में रहने लगे.

  • उधर आंवला देवता का अपमान करने व माता-पिता से बुरा व्यवहार करने के कारण बहू बेटे के बुरे दिन आ गए.

  • राज्य दुश्मनों ने छीन लिया दाने-दाने को मोहताज हो गए और काम ढूंढते हुए अपने पिताजी के राज्य में आ पहुंचे.

  • उनके हालात इतने बिगड़े हुए थे कि पिता ने उन्हें बिना पहचाने हुए काम पर रख लिया.

  • बेटे बहू सोच भी नहीं सकते कि उनके माता-पिता इतने बड़े राज्य के मालिक भी हो सकते है सो उन्होंने भी अपने माता-पिता को नहीं पहचाना.

  • एक दिन बहू ने सास के बाल गूंथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा. उसे यह सोचकर रोना आने लगा की ऐसा मस्सा मेरी सास के भी था. हमने ये सोचकर उन्हें आंवले दान करने से रोका था कि हमारा धन नष्ट हो जाएगा.

आज वे लोग न जाने कहां होगे ?

  • यह सोचकर बहू को रोना आने लगा और आंसू टपक टपक कर सास की पीठ पर गिरने लगे. रानी ने तुरंत पलट कर देखा और पूछा कि, तू क्यों रो रही है?

  • उसने बताया आपकी पीठ जैसा मस्सा मेरी सास की पीठ पर भी था. हमने उन्हें आंवले दान करने से मना कर दिया था इसलिए वे घर छोड़कर कहीं चले गए.

  • तब रानी ने उन्हें पहचान लिया. सारा हाल पूछा और अपना हाल बताया. अपने बेटे-बहू को समझाया कि दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है.

  • बेटे-बहू भी अब सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे.

  • हे भगवान, जैसा राजा रानी का सत रखा वैसा सबका सत रखना. कहते-सुनते सारे परिवार का सुख रखना.

संजीत कुमार मिश्रा

ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ

8080426594/9545290847

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