हमारे देश के लोग बड़े शायरनुमा हैं. देश की मिट्टी शायरी है. इस मिट्टी में कथाएं हैं, कविताएं हैं. उसी कथा-कविता के लोर में आकर ऐसी बातें कही जाती हैं कि जन्म होते ही दाई को उपदेश दिया. अगर सच में ऐसा हुआ होता, तो नानक के पिता कालू को उपदेश क्यों न मिला? वह तो थप्पड़ ही मारते रहे अपने बेटे को. दाई तो समझ गयी, पर बाप नहीं समझा? बाप तो उलाहने ही देता रहा. लड़ता ही रहा. उसके लिए तो निकम्मा बेटा पैदा हुआ, जो कुछ काम नहीं करता. जो दुकान नहीं करता, जो पैसा नहीं कमाता. उसे कहो कि पैसा कमाओ, तो नानक कहता कि मैं नाम कमा रहा हूं. उसे कहो कि दुकान पर ध्यान से काम कर, तो वह कहता कि भीतर सुरत जगा रहा हूं. उसे कहें कि खेत की रखवाली कर, तो वहां भी ध्यानस्थ हो जाता और खेत सारा भैंसें उजाड़ जाती हैं.
उनके बाप कालू मेहता से पूछो, वह तो हमेशा ही रोते ही रहे कि मेरा यह कैसा बेटा आया है? क्यों आया है? किसलिए आया है? नानक ने अमीर-गरीब सबको बराबार स्थान दिया. वह अमीर आदमी के घर का भोजन ठुकरा देते हैं और गरीब के घर की रोटी खाने को तैयार हैं, क्योंकि वह रोटी मेहनत से कमाई गयी है. ईमानदारी से कमाई गयी है. वह अमीर का भोजन स्वीकार नहीं करते, जहां अच्छा खाने को मिलता है और दक्षिणा भी अच्छी मिलती. एक गरीब लकड़हारे के घर का भोजन स्वीकार करते हैं, क्योंकि वह भोजन प्रेम से, श्रद्धा से बनाया गया है. किसी का लहु निचोड़ कर बनाया हुआ भोजन नहीं है.
ज्ञान का प्रसाद देने के लिए. मुश्किल यह है कि बहुत कम लोग ही महात्माओं के, गुरुओं के संदेश को समझ पाते हैं. बाकी तो उनके चले जाने के बाद उनकी नामलेवा भीड़ एकत्रित हो जाती है. जो उनको समझ पाये, वह तो तब भी एक ही था, सैंकड़ों तब भी नहीं थे. एक ही समझा था भाई लहना. उसी को गले लगाया, उसी को अंगद बनाया और उसी को अपनी जगह पर बैठाया. बाकी तो तब भी फेल थे और आज भी फेल ही हैं. नानक की बाणी को सीखना-समझना चाहिए. आनंद तो उसी से है, उसी में है और किसी से नहीं हो सकता. तो तुम्हारे जीवन में सुख,भक्ति और प्रेम के राग रतन बजें.
– आनंदमूर्ति गुरु मां