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ज्ञान की शालीनता अपनाओ

अपने चारों ओर हम जो अशुभ तथा क्लेश देखते हैं, उन सबका केवल एक ही मूल कारण है-अज्ञान. मनुष्य को ज्ञान-लोक दो, उसे पवित्र एवं आध्यात्मिक बल-संपन्न करो और शिक्षित बनाओ, तभी संसार से दुख का अंत हो पायेगा. यदि मनुष्य के भीतर से अज्ञानता नहीं गयी, तो समझो ये अशुभ और क्लेश कभी नहीं […]

अपने चारों ओर हम जो अशुभ तथा क्लेश देखते हैं, उन सबका केवल एक ही मूल कारण है-अज्ञान. मनुष्य को ज्ञान-लोक दो, उसे पवित्र एवं आध्यात्मिक बल-संपन्न करो और शिक्षित बनाओ, तभी संसार से दुख का अंत हो पायेगा.
यदि मनुष्य के भीतर से अज्ञानता नहीं गयी, तो समझो ये अशुभ और क्लेश कभी नहीं दूर होनेवाले. बहुत से लोग ऐसे होते हैं, जो होते तो स्वयं बड़ अज्ञानी हैं, परंतु फिर भी अहंकार से अपने को सर्वज्ञ समझते हैं. इतना ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी अपने कंधों पर ले जाने को तैयार रहते हैं. इस प्रकार एक अंधा एक दूसरे अंधे का अगुआ बन दोनों ही गड्ढे में गिर पड़ते हैं. यह सोचना कि मेरे ऊपर कोई निर्भर है तथा मैं किसी का भला कर सकता हूं, तो यह अत्यंत दुर्बलता का चिह्न है. यह अहंकार ही समस्त आसक्ति की जड़ है और इस आसक्ति से ही समस्त दुखों की उत्पत्ति होती है.
हमें अपने मन को यह भली-भांति समझा देना चाहिए कि इस संसार में हम पर कोई भी निर्भर नहीं है. हर व्यक्ति की अपनी निर्भरता उस पर स्वयं है और वह अपने साथ होनेवाले किसी भी कारण के लिए स्वयं दोषी है. इसलिए अज्ञानता रूपी अहंकार से बचो और ज्ञान की शालीनता को अपनाओ.
स्वामी विवेकानंद

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