हमारे शरीर की शक्ति का केंद्र है- नाड़ी संस्थान. शरीर में यदि नाड़ी-संस्थान न हो तो शरीर का कोई बहुत मूल्य नहीं है. नाड़ी-संस्थान में ज्ञानवाही और क्रियावाही- दोनों प्रकार के नाड़ी-मंडल हैं.
यदि इन दोनों मंडलों को निकाल दिया जाये, तो न ज्ञान होगा न क्रिया होगी. हमारी चेतना और शक्ति- इन दोनों के संभाव्य केंद्र इस नाड़ी-संस्थान में हैं. आप यह न भूलें कि हमारे अस्तित्व के दो मूल स्रोत हैं- चेतना और शक्ति. उनका संवादी केंद्र है हमारा स्थूल शरीर. सूक्ष्म शरीर में जो स्पंदन होंगे, उनके संवादी केंद्र इस स्थूल शरीर में हैं.
बिना संवादी केंद्रों के अभिव्यक्ति नहीं हो सकती. अभिव्यक्ति के लिए माध्यम चाहिए. क्योंकि जब भीतर से बाहर आना होता है, तब वह बिना माध्यम के नहीं हो सकता. यह माध्यम है- नाड़ी संस्थान. वह ज्ञानवाही नाड़ी-मंडल के द्वारा आत्म-चेतना को अभिव्यक्त करता है तथा क्रियावाही नाड़ी-मंडल के द्वारा आत्म-शक्ति को अभिव्यक्त करता है.
पैर में कांटा लगा, हाथ उसे निकालने के लिए तत्पर हो जाता है. यह क्यों और कैसे होता है? ज्ञानवाही नाड़ी-मंडल इस बात को ग्रहण कर मस्तिष्क तक पहुंचाता है और मस्तिष्क हाथ के ज्ञानवाही तंतुओं को आदेश देता है कि कांटे को निकालो. और हमारा हाथ तत्पर हो जाता है. इसीलिए समूचा नाड़ी-संस्थान साधना की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है.
– आचार्य महाप्रज्ञ