19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

विचारों का अनुगमन

अनुभव करने के क्षणों में आपको अनुभव से अलग किसी अनुभवकर्ता का बोध नहीं होता, वहां आप बस अनुभव करने की अवस्था में होते हैं. एक बड़ा सरल उदाहरण लीजिए- आप क्रोध में हैं, क्रोध के उस क्षण में न तो अनुभवकर्ता है न अनुभव, केवल अनुभूति है, बस अनुभव करना है. लेकिन जैसे ही […]

अनुभव करने के क्षणों में आपको अनुभव से अलग किसी अनुभवकर्ता का बोध नहीं होता, वहां आप बस अनुभव करने की अवस्था में होते हैं. एक बड़ा सरल उदाहरण लीजिए- आप क्रोध में हैं, क्रोध के उस क्षण में न तो अनुभवकर्ता है न अनुभव, केवल अनुभूति है, बस अनुभव करना है.

लेकिन जैसे ही उस क्षण से आप बाहर आते हैं, अर्थात् अनुभव करने के तुरंत बाद, तो अनुभवकर्ता भी होता है और अनुभव भी, यानी कर्ता भी होता है और फल की अभिलाषा से किया गया कर्म भी. हम इस अवस्था में, अनुभूति की इस स्थिति में बारंबार लौटते हैं, लेकिन हर बार उससे बाहर चले आते हैं, और उसे कोई शब्द, कोई नाम देकर स्मृति में बिठा लेते हैं. यदि हम कर्म को उस शब्द के मूलभूत अर्थ में समझ पायें, तो यह गहरी समझ हमारी सतही क्रियाओं को भी प्रभावित करेगी, लेकिन पहले हमारे लिए कर्म की मूलभूत प्रकृति को समझना आवश्यक है.

क्या आपको विचार पहले आता है और तब क्रिया होती है; अथवा कर्म पहले होता है और चूंकि वह द्वंद्व ले आता है, आप उसके इर्द-गिर्द एक विचार बना लेते हैं? यह समझना आवश्यक है कि इनमें से कौन पहले आता है. यदि विचार पहले होता है, तो कर्म उस विचार का अनुसरण भर होता है और इसीलिए वह कर्म नहीं होता, बल्कि अनुकरण, विचार का प्रभाव होता है. चूंकि हमारा समाज मुख्यत: बौद्धिक या शाब्दिक स्तर पर रचित है, हममें विचार ही पहले आता है और तब कर्म उसका अनुगमन करता है.

जे कृष्णमूर्ति

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें