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Saadat Hasan Manto : मुकदमों और मुफलिसी के बावजूद चलती रही मंटो की बेबाक कलम  

आज अफसाना निगार सआदत हसन मंटो की सालगिरह है. अविभाजित भारत में जन्में और बंटवारे के बाद जिंदगी के आखिरी नौ साल पाकिस्तान में गुजार कर महज चार दशक की उम्र में मंटो ने दुनिया को अलविदा कह दिया था. इस छोटे से जीवन में 22 लघु कथाएं, एक उपन्यास, पांच रेडियो नाटक और कुछ रेखाचित्र संग्रह रचने वाले मंटो आज भी हमारे बीच गहरी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं...

Saadat Hasan Manto : पूरे दक्षिण एशिया में सर्वश्रेष्ठ लघु-कथा लेखकों में से एक माने जाने वाले सआदत हसन मंटो की आज सालगिरह है. महज दो दशक के अपने लेखकीय सफर में उन्होंने साहित्यिक कार्यों का एक समृद्ध संग्रह तैयार किया, जिसकी आज भी दुनिया मुरीद है. इस सफर में उन्होंने मुकदमे भी झेले और मुफलिसी भी, लेकिन तमाम दुश्वारियों के बावजूद मंटो, मंटो ही बने रहे.

बंबई छोड़ा, पर उस शहर से प्यार करना नहीं 

मंटो ने कई फिल्मों की कहानियां लिखीं और बंटवारे से पहले लंबे समय तक मुंबई (बंबई) में रहे. फिल्म इंडस्ट्री में उनके कई दोस्त हुआ करते थे. मुंबई के लिए उन्होंने लिखा है- ‘मैं चलता-फिरता मुंबई हूं. मुंबई छोड़ने का मुझे भारी दुख है. वहां मेरे मित्र भी थे. उनसे दोस्ती होने का मुझे गर्व है. वहां मेरी शादी भी हुई, मेरी पहली संतान भी हई. दूसरे ने भी अपने जीवन के पहले दिन की वहीं से शुरुआत की. मैंने वहां हजारों-लाखों रुपये कमाये और फूंक दिये. मुंबई को मैं चाहता था और आज भी चाहता हूं.’

मुफलिसी में भी नहीं थमी उनकी कलम 

मंटो ने नाम बहुत कमाया, लेकिन हमेशा मुफलिसी में रहे. वह लिखते हैं- बाइस किताबें लिखने के बाद भी मेरे पास रहने के लिए घर नहीं है. टूटी-फूटी एकाध पुरानी कार भी नहीं है. मुझे अगर कहीं जाना होता है, तो साइकिल किराये पर लेकर जाता हूं. मंटो ने जब लिखना शुरू किया, तो परिवार की नाराजगी और दोस्तों की सलाह होती कि लिखने से क्या मिलेगा तुम्हे! अपनी आत्मकथा ‘मैं क्यों लिखता हूं’ में मंटो ने लिखा है- मैं क्यों लिखता हूं? यह एक ऐसा सवाल है कि मैं क्यों खाता हूं… मैं क्यों पीता हूं… लेकिन इस दृष्टि से मुख्तलिफ है कि खाने और पीने पर मुझे रुपये खर्च करने पड़ते हैं और जब लिखता हूं, तो मुझे नकदी की सूरत में कुछ खर्च करना नहीं पड़ता. पर जब गहराई में जाता हूं, तो पता चलता है कि यह बात गलत है इसलिए कि मैं रुपये के बलबूते पर ही लिखता हूं.  आगे वह लिखते हैं- ‘मैं लिखता हूं, इसलिए कि मुझे कुछ कहना होता है. मैं लिखता हूं, इसलिए कि मैं कुछ कमा सकूं ताकि मैं कुछ कहने के काबिल हो सकूं.

बंटवारे की पीड़ा से कभी नहीं उबर सके

सआदत हसन मंटो का जन्म अविभाजित भारत में हुआ. बंटवारे के बाद वह पाकिस्तान चले तो गये, लेकिन उनका दिल भारत में ही रह गया. पंजाब के लुधियाना में 11 मई, 1912 को जन्मे मंटो बंटवारे के बाद पाकिस्तान चले गये थे. 1955 में वहीं उनकी मृत्यु हुई. लेकिन मंटो कभी भारत को भूल नहीं पाये. मंटो अपनी कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ में लिखते हैं-, उधर ख़ारदार तारों के पीछे हिंदुस्तान था, इधर वैसे ही तारों के पीछे पाकिस्तान; दरमियान में ज़मीन के उस टुकड़े पर जिसका कोई नाम नहीं था, टोबा टेक सिंह पड़ा था. ये थे मंटो.  पाकिस्तान जाने के बाद मंटो कितने बेचैन रहते थे, इसके बारे में उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है- मेरे लिए यह एक तल्ख हकीकत है कि अपने मुल्क में, जिसे पाकिस्तान कहते हैं, मैं अपना सही स्थान ढूंढ़ नहीं पाया हूं. यही वजह है कि मेरी रूह बेचैन रहती है. मैं कभी पागलखाने में और कभी अस्पताल में रहता हूं.

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