The Bengal Files : 10 हजार लोगों के नरसंहार की कहानी में क्या थी कलकत्ता के गोपाल पाठा की भूमिका?

The Bengal Files : 'द ताशकंद फाइल्स' और 'द कश्मीर फाइल्स' के बाद अब विवेक अग्निहोत्री लेकर आएं हैं ‘द बंगाल फाइल्स’. द बंगाल फाइल्स 1946 के उस भयंकर नरसंहार की कहानी है, जिसे ‘ग्रेट कलकत्ता किलिंग’ कहा जाता है. भारत के विभाजन के लिए मुस्लिम लीग ने 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे करार दिया था, जिस दिन कलकत्ता के मुसलमान सड़क पर उतरे थे और अपने लिए अलग पाकिस्तान की मांग की थी. इस मांग की वजह से कलकत्ता में भयंकर दंगे हुए थे और अंतत: देश का बंटवारा भी हुआ था. कलकत्ता में हुए नरसंहार की कई बातें ऐसी हैं, जिनपर आजतक चर्चा नहीं हुई, विवेक अग्निहोत्री उसी सच को इस फिल्म के जरिए सामने लाने का दावा रहे हैं.

By Rajneesh Anand | August 22, 2025 6:07 PM

The Bengal Files : ‘द बंगाल फाइल्स’ निर्माता- निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की यह फिल्म 5 सितंबर को सिनेमा घरों में रिलीज होगी, लेकिन रिलीज से पहले ही यह फिल्म विवादों में गई है. यह फिल्म आजादी से पहले बंगाल में हुए सांप्रदायिक हिंसा पर आधारित है. फिल्म में मुस्लिग लीग के डायरेक्ट एक्शन डे को भी दर्शाया गया है. फिल्म में एक किरदार है गोपाल मुखर्जी का, जिन्हें फिल्म में हिंदुओं के संरक्षक के रूप में दिखाया गया है, लेकिन गोपाल मुखर्जी के पोते शांतनु मुखर्जी फिल्म के ट्रेलर को देखकर यह आपत्ति जता रहे हैं कि उनके दादा जी के चरित्र को फिल्म में गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है.

‘द बंगाल फाइल्स’ पर क्या है विवाद?

डायरेक्ट एक्शन डे के बाद बदहाल कोलकाता

द बंगाल फाइल्स का ट्रेलर 16 अगस्त को रिलीज किया गया है. उसके बाद से ही इस फिल्म को लेकर विवाद शुरू गया है. फिल्म के एक किरदार गोपाल मुखर्जी, जिन्हें गोपाल पाठा के रूप में मूवी में चित्रित किया है, उनके पोते सामने आकर यह कह रहे हैं कि उनके दादा जी को फिल्म में गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया है. शांतनु मुखर्जी ने इस बारे में पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है, उनकी शिकायत की वजह से फिल्म का ट्रेलर रिलीज करने में परेशानी आई और बाद में एक होटल में इसे रिलीज किया गया. शांतनु मुखर्जी का कहना कि मेरे दादा जी जरूरमंदों की मदद करते थे उनका चरित्र उस तरह का नहीं है जैसा फिल्म में दिखाया गया है. शांतनु मुखर्जी ने आरोप लगाया कि मेरे दादा जी का चित्रण करने से पहले हमेशा कोई बातचीत भी नहीं की गई है. वहीं कई राजनीतिक दलों ने इसे राजनीतिक प्रचार बताया है, जो राजनीतिक फायदे के लिए किया गया है.

कौन थे गोपाल मुखर्जी और उनकी ग्रेट कलकत्ता किलिंग में क्या थी भूमिका?

गोपाल मुखर्जी पाठा

गोपाल मुखर्जी को द बंगाल फाइल्स में हिंदुओं के संरक्षक और मुसलमानों के विरोधी के रूप में दिखाया गया है. इसपर उनके पोते ने आपत्ति की है. गोपाल मुखर्जी का एक आॅडियो इंटरव्यू 1997 में बीबीसी के रिपोर्टर एंड्रयू व्हाइटहेड ने लिया था, जिसमें वे स्पष्ट तौर पर यह कहते हैं कि वे यह नहीं चाहते थे कोलकाता में दंगा फैले, लेकिन उनके लाख प्रयासों के बावजूद हिंसा हुई. हिंसा के पहले और दूसरे दिन मैंने सबको रोकने की कोशिश की. मैंने अपने मुसलमान दोस्तों से भी यह कहा कि हम भाई-भाई की तरह रहते हैं और वैसे ही रहेंगे, हिंसा ठीक नहीं है, लेकिन जब मेरी बात नहीं मानी गई और लड़ के लेंगे पाकिस्तान का स्लोगन गूंजने लगा तो मैंने अपने लड़कों को भी तैयार रहने को कहा और उन्हें यह स्पष्ट कर दिया कि अगर वे हमारे एक लोगों को मारेंगे तो हम उनके 10 लोगों को मारेंगे. इस इंटरव्यू में वे यह स्वीकार करते हैं कि उनकी भूमिका दंगे में थी उनके लोगों ने कितने लोगों को मारा था इस प्रश्न पर वे कहते हैं कि हमारे पास कोई लिस्ट थोड़े ना है, पर हमने मारे थे. गोपाल चंद्र मुखर्जी की उम्र 1997 में 83 साल थी. उनकी कोलकाता में मीट की दुकान थी, जिसकी वजह उन्हें पाथा या पाठा कहा जाता था. गोपाल चंद्र मुखर्जी की भूमिका दंगा में क्या थी इसके बारे में उनके इंटरव्यू के अलावा एक किताब में भी बताया गया है. इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि गोपाल चंद्र मुखर्जी के बारे में जो भी पुष्ट जानकारी है, वो यह इंटरव्यू और 1996 में प्रकाशित ‘कलकत्ता अंडरवर्ल्ड’ किताब है. गोपाल मुखर्जी ने अपने इंटरव्यू में यह भी स्वीकार किया है कि जब हिंसा के बाद लोग अपने हथियारों को गांधी जी के पास जमा करा रहे थे, मैंने ऐसा नहीं किया. इसकी वजह यह थी कि मैं उन हथियारों को अपने पास रखना चाहता था, जिससे मैंने अपनी बहू-बेटियों की रक्षा की थी. वे यह भी बताते हैं कि मैंने अपने लड़कों से यह कहा था कि वे दंगाइयों के अलावा किसी को निशाना ना बनाएं और ना ही महिलाओं के साथ कोई गलत हरकत करें.

पाकिस्तान के लिए मुस्लिम लीग ने की थी डायरेक्ट एक्शन की घोषणा, कलकत्ता में हुआ था भीषण दंगा

क्या था डायरेक्ट एक्शन डे, जिसकी वजह से कलकत्ता में हुआ भयंकर नरसंहार

अंग्रेजों ने कैबिनेट मिशन प्लान के तहत जब भारत को एक संघ के रूप में आजाद करने का मन बनाया तो मुस्लिम लीग को ऐसा लगा उनकी पाकिस्तान की मांग कहीं दबकर रह जाएगी, तब उन्होंने देश विभाजन की मांग को और भी तेज कर दिया. जिन्ना बार-बार यह कहने लगे कि हिंदू और मुसलमान दो आइडेंटिटी हैं और वे एक साथ नहीं रह सकते हैं. कांग्रेस जब विभाजन की मांग पर सहमत नहीं हो रही थी और गांधीजी देश विभाजन का पुरजोर विरोध कर रहे थे, तब मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन डे की घोषणा की और मुसलमानों को यह कहा कि वे खुद सड़क पर उतरें और पाकिस्तान की मांग करें. 16 अगस्त 1946 को डायरेक्ट एक्शन डे के रूप में मनाने का फैसला हुआ. मुसलमान सड़क पर उतरे, जिसके बाद कलकत्ता में भयंकर दंगे हुए जिसमें 10 हजार से ज्यादा लोग मारे गए, इस घटना को ग्रेट कलकत्ता किलिंग कहा जाता है. यह हिंसा चार दिनों तक चली थी उसके बाद इसका विस्तार देश के दूसरे राज्यों में भी हो गया और इसे देश के विभाजन के लिए जिम्मेदार कारणों में से एक माना जाता है.

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