Mughal Harem Stories : मुगल हरम में बुढ़ापा मौत से बदतर, मरने के लिए अकेले कमरे में छोड़ दी जाती थीं औरतें
Mughal Harem Stories : बुढ़ापे के बारे में एक कहावत प्रचलित है-ना नारी रिझे, ना रिपु डरे, ना आदर करे नरेश. कुल मिलाकर यह कहा जा रहा है कि बुढ़ापा वह स्थिति है, जिसमें शारीरिक आकर्षण खत्म हो जाता है और इंसान की शक्ति भी खत्म हो जाती है. इस वजह से ना कोई उसकी ओर आकर्षित होता है और ना शत्रु और राजा सम्मान करते हैं. बस इसी स्थिति की शिकार मुगल हरम की औरतें भी बुढ़ापे में हो जाती थीं. उस वक्त विज्ञान ने इतनी तरक्की भी नहीं की थी, इसलिए उनका इलाज भी सही तरीके से नहीं पाता था. परिणाम यह होता था कि वे उपेक्षित हो जाती थीं और अकेली रह जाती थीं.
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Mughal Harem Stories : मुगल हरम की शान ऐसी थी कि महिलाओं को सोने के बने कपड़े गिफ्ट मिलते थे और वे हीरे और जवाहारात से लदी होती थीं. बादशाह जब उनके कमरे में आते और उससे खुश होते तो उसपर करोड़ों रुपए लुटा सकते थे. यह तो बात हुई किसी औरत की जवानी की, लेकिन वही औरत जब बूढ़ी हो जाती थी या बादशाह की मौत उससे पहले हो जाती थी तब क्या होता था? मुगल हरम के बारे में ऐसी कई कहानियां प्रचलित हैं, जिसमें यह कहा जाता है कि हरम में बुढ़ापा श्राप की तरह था.
बुढ़ापा कई बार मौत से बदतर क्यों हो जाता था?
किशोरी शरण लाल अपनी किताब में The Mughal Harem में लिखते हैं-पुराने समय में बुढ़ापे की सबसे बड़ी समस्या बीमारी थी. उस समय इलाज के बहुत कम और सीमित तरीके थे. इलाज की दवाइयां विकसित नहीं थी, इस वजह से आम बीमारियां भी जानलेवा हो जाती थीं. टीबी, बुखार, हैजा, लू लगना, गठिया, पथरी, लकवा जैसी बीमारियां होने पर इलाज नहीं हो पाता था. बीमार औरतों का इलाज तो कराया जाता था, लेकिन वो पर्याप्त नहीं होते थे, जिस वजह से बुढ़ापा और उससे संबंधित बीमारियां उनके लिए मौत से बदतर हो जाती थीं.
हालांकि यह स्थिति हर औरत की नहीं थी. जो खास औरतें होती थीं, उनका खास ख्याल रखा जाता था और उनका सम्मान भी बहुत होता था. बूढ़ी औरतें हरम में राजकुमारों का ख्याल रखती थीं, झगड़े निपटाती थीं और बादशाह की प्रिय भी बनी रहती थीं.
हरम में बूढ़ी औरतों के साथ क्या होता था?
हरम को बुढ़ापे के लिए सही जगह नहीं माना जाता था. हरम आनंद और की जगह था, जहां जवान महिलाएं बादशाह के साथ जीवन का लुत्फ उठाती थीं. वहां बुढ़ापे और बीमारी के लिए जगह नहीं थी. जो औरतें बीमार हो जाती थीं उन्हें बीमारखाने में पहुंचा दिया जाता था. अगर इलाज से वो सही हो गईं, तो ठीक अन्यथा वो मर जाती थीं. उनकी खातिरदारी उस तरह नहीं की जाती थी कि वे मुगल हरम के लिए बहुत जरूरी हों.
किशोरी शरण लाल लिखते हैं कि आम तौर पर हरम में मौत को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था, बशर्ते कि वह किसी खास या बेहद प्रिय व्यक्ति की मौत ना हो. अगर कोई बीमार होता तो उसे बीमार खाना नामक कमरों में ले जाते थे; अगर ठीक हो गया तो ठीक, नहीं तो किसी को ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था. यानी यह माना जा सकता है कि मुगल काल में जवानी के दिन तो बेहतरीन होते थे, लेकिन बुढ़ापा उपेक्षा और बदहाली में गुजरता था.
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हरम में पति से पहले मौत क्यों बेहतर मानी जाती थी?
मुगलों में पर्दा प्रथा का पालन बहुत ही कड़ाई से किया जाता था. इस वजह से भी महिलाओं का उचित इलाज नहीं पाता था. मुगलकाल के इटालियन चिकित्सक मनुची ने लिखा है कि महिलाएं सिर्फ अपनी नाड़ी बाहर कर इलाज करती थीं. कई बार तो रूमाल में पसीने को भिगा कर भेजा जाता था और पसीने की गंध से यह पता करना पड़ता था कि बीमार स्त्री क कौन से बीमारी है. इस वजह से उन्हें सही इलाज नहीं मिलता था और वे बीमार होकर कई बार मर भी जाती थीं.
किशोरी शरण लाल लिखते हैं कि कोई भी इलाज या दान बूढ़ी और बीमार महिलाओं का जीवन नहीं बचा सकता था. इसलिए उन्हें उपेक्षित होना पड़ता था. विदेशी यात्री विलियम फिंच ने लिखा है कि विधवा होना और वृद्ध होना बहुत दुखद और अकेला जीवन था. इसलिए कहा जाता था कि स्त्री के लिए सबसे अच्छा यही था कि वह अपने पति से पहले मर जाए.
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