क्या अयातुल्ला खामेनेई का अंत सद्दाम हुसैन की तरह होगा?
Israel Iran News : क्या अयातुल्ला खामेनेई का अंत उसी तरह का होगा, जैसे इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन का हुआ था? यह सवाल इसलिए क्योंकि इजरायल-ईरान युद्ध में अमेरिका की दखल बढ़ती जा रही है. अमेरिका के दखल पर ईरान के विदेश मंत्रालय ने यह साफ कहा है कि यह युद्ध को और बढ़ाएगा. अगर यह बात सच हुई तो तीसरे खाड़ी युद्ध से इनकार नहीं किया जा सकता है, क्योंकि तब यह युद्ध सऊदी अरब, कतर, सीरिया और अन्य देशों तक भी पहुंच सकता है.
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Israel Iran News : इजरायल और ईरान के बीच युद्ध जारी है. दोनों देश एक दूसरे पर मिसाइल दाग रहे हैं, जिसमें ईरान में अबतक 600 और इजरायल में 20 के करीब लोगों की मौत हुई है. ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई ने युद्ध की घोषणा कर दी है और ईरान ने पहली बार इजरायल पर फतह मिसाइल से हमला किया है. इन सबके बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई को बिना शर्त सरेंडर करने को कहा है. ट्रंप ने कहा है कि उन्हें पता है कि अमेरिका का सर्वोच्च नेता कहां छुपा है. मिडिल ईस्ट को परमाणु युद्ध से बचाने के लिए ट्रंप ने खामेनेई से समर्पण करने को कहा है. वहीं इजरायल की ओर से यह बयान मंगलवार को आया था कि अयातुल्ला खामेनेई का हाल सद्दाम हुसैन की तरह होगा. इस बात का मैसेज स्पष्ट है.
अयातुल्ला खामेनेई और सद्दाम हुसैन की क्यों हो रही तुलना
अयातुल्ला खामेनेई और सद्दाम हुसैन दोनों की छवि तानाशाह की है. मीडिया और अंतराष्ट्रीय समुदाय इन्हें अधिनायकवाद या तानाशाह के रूप में प्रस्तुत करता है. सद्दाम हुसैन सैन्य राजनीतिक तानाशाह करार दिया जाता है, जबकि अयातुल्ला खामेनई को धार्मिक और क्रांति के आधार पर बने तानाशाह के रूप में देखा जाता है. सद्दाम हुसैन एक सुन्नी मुसलमान था, जबकि अयातुल्ला खामेनेई शिया मुसलमान हैं. सद्दाम हुसैन ने 1979 से 2003 तक यानी कुल 24 साल शासन किया, जबकि खामेनेई 1989 से अबतक बने हुए हैं, यानी कुल 36 साल हो चुके हैं. दोनों ही शासकों पर यह आरोप है कि इन्होंने अपने विरोधियों का दमन किया और उनपर सेंसरशिप लगाई.
क्या हुआ था सद्दाम हुसैन के साथ
सद्दाम हुसैन ने 1979 में इराक की सत्ता संभाली थी और पूरे 24 साल वे शासन में रहे. सद्दाम हुसैन के लिए यह कहा जाता है कि उसने अपने विरोधियों को कुचल कर रख दिया था और मीडिया और अदालतों को अपने नियंत्रण में रखा. सद्दाम हुसैन पर यह आरोप भी था कि उसने शिया बहुल दुजैल गांव में 148 शिया मुसलमानों की हत्या करवाई थी. सद्दाम हुसैन पर यह आरोप भी था कि उसने एक लाख कुर्द लोगों को मार डाला था. कुर्द विरोधी इस अभियान में रासायनिक हथियारों का भी प्रयोग हुआ था. सद्दाम हुसैन ने सत्ता संभालने के बाद 1980 से 1988 तक ईरान के साथ युद्ध किया था. यह धार्मिक विरोध था, क्योंकि सद्दाम हुसैन सुन्नी हैं और ईरान के शासन शिया मुसलमान हैं. इस युद्ध से ही अमेरिका इराक से नाराज था और जब 2 अगस्त 1990 में सद्दाम हुसैन ने कुवैत पर आक्रमण कर दिया तो अमेरिका की नाराजगी और बढ़ गई. इराक ने कुवैत पर हमला करके उसपर कब्जा कर लिया था. इराक का कहना था कि कुवैत ने उसका तेल चुराया है, जबकि सच्चाई यह थी कि इराक-ईरान युद्ध के बाद इराक पर काफी कर्जा था. अमेरिका की इस हरकत के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ ने इराक को कुवैत से हटने का अल्टीमेटम दिया और उससे कहा कि वह किसी भी हाल में 15 जनवरी 1991 तक कुवैत से हट जाए, अन्यथा उसके खिलाफ कार्रवाई होगी. कुवैत ने संयुक्त राष्ट्र की बात नहीं सुनी, तब 17 जनवरी 1991 को अमेरिका और 35 देशों के गठबंधन ने इराक पर हवाई और जमीनी हमला किया. 28 फरवरी को इराकी सेना की हार हुई और कुवैत मुक्त हो गया. यह पहला खाड़ी युद्ध था.
13 दिसंबर 2003 को सद्दाम हुसैन गिरफ्तार
दूसरा खाड़ी युद्ध तब हुआ जब 2003 में इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन पर यह आरोप लगा कि उसके पास जैविक और रासायनिक हथियार हैं और वह अलकायदा जैसे आतंकवादी संगठनों से संबंध रखते हैं. साथ ही सद्दाम हुसैन पर मानवाधिकार उल्लंघन का भी आरोप लगा था. अमेरिका ने 20 मार्च 2003 को इराक पर हमला किया और इसके साथ ही ‘ऑपरेशन इराकी फ्रीडम’ की शुरुआत हुई. 9 अप्रैल 2003 को इराक की राजधानी बगदाद पर कब्जा कर लिया और 13 दिसंबर 2003 को सद्दाम हुसैन की गिरफ्तारी हुई. इसके बाद पूरे देश में विद्रोह और गृहयुद्ध के हालात बन गए और 5 नवंबर 2006 को सद्दाम हुसैन को फांसी की सजा सुनाई गई और 30 दिसंबर 2006 को सद्दाम हुसैन को फांसी दे दी गई. भले ही यह कहा जाता हो कि इराक की जनता ने ही सद्दाम हुसैन को फांसी की सजा दी, लेकिन सच्चाई यह है कि सबकुछ अमेरिका के इशारे पर हुआ. इराक में शिया आबादी बहुसंख्यक है, जबकि सद्दाम हुसैन सुन्नी होते हुए भी तानाशाह बने.
अयातुल्ला खामेनेई का क्या होगा?
अमेरिका को इस बात की शंका है कि ईरान परमाणु हथियार बना सकता है और इसी वजह से वह ईरान को रोकने की कोशिश कर रहा है. अमेरिका की शक की वजह यह है कि ईरान संदिग्ध गतिविधि में संलिप्त है और गुप्त तरीके से यूरेनियम जमा कर रहा है. ईरान ने 2002 में नतांज और अराक में यूरेनियम का भंडार होने की बात स्वीकारी भी थी. पिछले कुछ साल में ईरान ने यूरेनियम भंडार में 60% की वृद्धि की है. इसकी वजह से अमेरिका को शक है कि ईरान परमाणु बम बना रहा है, हालांकि ईरान यह दावा कर रहा है कि वह परमाणु बम नहीं बना रहा है, लेकिन अगर दबाव बनाया गया, तो उसके सामने विकल्प खुले हैं. इजरायली हमलों की वजह से ईरान नाराज है और इजरायल का यह कहना है कि खामेनेई की हत्या से संघर्ष थम जाएगा, ऐसे में खामेनेई छुपे हुए हैं और उनके जीवन पर खतरा मंडरा रहा है, क्योंकि अमेरिका ने अपनी दखल इस मामले में बढ़ा दी है.
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