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Explainer: क्लाउड सीडिंग क्या है, दुबई की बाढ़ का कारण कहीं यही तो नहीं?

Cloud Seeding: दुबई की बाढ़ चर्चा का विषय बना हुआ है. दुबई की इस बाढ़ को लेकर एक्सपर्ट्स क्लाउड सीडिंग बता रहे हैं. 1990s से दुबई में बारिश कराने के लिए क्लाउड सीडिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाता रहा है.

Cloud Seeding: UAE यानी संयुक्त अरब अमीरात एक सूखा प्रायद्वीप देश है. यहां ऐसी बारिश सामान्य नहीं है जो बीते दिनों हुई है. गर्मियों में तो यहां रेगिस्तान जैसा रूखापन रहता है, यहां का पारा 50 डिग्री के पार चला जाता है. वहीं बारिश कभी-कभी सर्दियों के महीनों में होती है. दुबई में यह बाढ़ की घटना असामान्य है. क्योंकि यहां बारिश बहुत कम होती है. 1990 में क्लाउड सीडिंग की शुरुआत हुई थी ताकि दुबई में पानी की कमी को दूर किया जा सके.

15 अप्रैल की रात को यूएई, सउदी अरब, ओमान में भारी बारिश हुई थी और यह देखते-देखते तूफान में बदलने लगी.रेगिस्तान के बीच बसे शहर दुबई के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर 24 घंटे के अंदर 6.26 इंच से ज्यादा बारिश हुई. ऐसे में यहां पर एक दिन में इतनी बारिश हुई जितनी की दो साल में होती है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक खाड़ी देशों में आई इस बारिश को एक्सपर्ट क्लाउड सीडिंग बता रहे हैं.

क्लाउड सीडिंग : कृत्रिम बारिश

क्लाउड सीडिंग आर्टिफिशियल बारिश कराने का एक तरीका है. इसमें सिल्वर आयोडाइड, पोटैशियम आयोडाइड और ड्राई आइस को हवाई जहाज की मदद से छिड़काव किया जाता है जैसे ही ये हवा के संपर्क में आता है तेजी से क्लाउड यानि बादल बनने लगता है.

अगर हम साधारन भाषा में बताए तो यह तकनीक बरसात कराने का एक इंसानी तरकीब है. इसमें तकनीक में एयरक्राफ़्ट से सिल्वर आयोडाइड और कुछ दूसरे केमिकल्स के मिश्रण को बादलों के ऊपर छिड़का जाता है जिससे ‘ड्राई आइस’ के क्रिस्‍टल्स बनते हैं. ध्यान देने वाली बात यह है कि ठोस कार्बन-डाइऑक्साइड (CO2) को ड्राई आइस कहा जाता हैं. बादल की नमी इन्हीं क्रिस्टल्स पर चिपकती है और बादल भारी हो जाने के बाद बारिश की मोटी बूंदे बनती है और बारिश होने लगती है.

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क्लाउड सीडिंग की शुरुआत कहां से हुई

क्लाउड सीडिंग की शुरुआत ऑस्ट्रेलिया के बाथुर्स्ट स्थित जनरल इलेक्ट्रिक लैब में फरवरी 1947 में हुई थी. इसके बाद कई देशों ने इसका इस्तेमाल किया. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका के न्यूयार्क में 1940 के दशक में इसका इस्तेमाल किया गया था. वहीं इसके बाद चीन और कई और देशों ने इसका प्रयोग किया.

भारत में 1952 में पहली बार क्लाउड सीडिंग का परीक्षण किया गया. फिर 1984 में तमिलनाडु ने पहली बार इस टेक्निक का प्रयोग किया इसके बाद आंद्र प्रदेश में भी इसका इस्तेमाल किया गया.

प्रदूषण को कैसे रोकता है

क्लाउड सीडिंग विधि का उपयोग करके वर्षा के माध्यम से जहरीले वायु प्रदूषकों को नीचे बैठाने के लिए किया जा सकता है. ध्यान देने वाली बात यह है कि बारिश के कारण धूल के कण नीचे बैठ जाते हैं और प्रदूषण से राहत मिलती है.

क्लाउड सीडिंग के फायदे

  • क्लाउड सीडिंग तकनीक का प्रयोग कर के सही समय पर खेती करने के लिए बारिश कराया जा सकता है.
  • क्लाउड सीडिंग का प्रयोग करके एयरपोर्ट पर फॉग को कम किया जा सकता है.
  • इस तकनीक के प्रयोग से मैच में हवा को साफ करने के लिए किया जा सकता है.
  • सूखे एरिया के लिए बेहद मददगार साबित होता है क्लाउड सीडिंग तकनीक.
  • इससे बारिश नहीं होने के कारण खराब हो रही फसल को बचाया जा सकता है.
  • क्लाउड सीडिंग गर्मियों के दौरान नदियों के न्यूनतम प्रवाह को बनाए रखने में मदद कर सकती है.
  • क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया बढ़ते प्रदूषण को भी कम करने में कारगर है.

क्लाउड सीडिंग के नुकसान

  • क्लाउड सीडिंग में यूज किया गया केमिकल्स वातावरण को नुकसान पहुंचा सकता है.
  • इसमें मौजूद सिल्वर आयोडाइड के कारण लोगों को नाक बहना, त्वाचा का फटना, सिर दर्द, डायरिया, अनेमिया जैसे बीमारी हो सकता है.
  • क्लाउड सीडिंग बोले तो आर्टिफिशियल रेन कराना काफी कॉस्टली होता है. पीटीआई के मुताबिक इसकी कीमत 1 लाख प्रति स्क्वयर किलोमीटर लगता है.
  • क्लाउड सीडिंग निराशाजनक मौसम की स्थिति उत्पन कर सकती है. जिससे बाढ़ और आंधी तूफान जैसे खतरे बने रहते है.

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