Bihar Election 2025 : जाति-धर्म से अलग उभरा नया वोट बैंक, महिला-किसान बन सकते हैं किंगमेकर; समझें वोटिंग पैटर्न
Bihar Election 2025 : बिहार चुनाव का दंगल जारी है. मतदाता राजा बना हुआ है और राजनीतिक पार्टियां उसे प्रभावित करने के लिए तरकीब पर तरकीब निकाल रही हैं. हाल के वर्षों में फ्रीबीज के जरिए जहां राजनीतिक पार्टियां जनता को लुभा रही हैं, वहीं एक नई बात यह भी दिख रही है कि जाति आधारित समाज में एक ऐसा वोट बैंक तैयार हुआ है, जो जाति और धर्म से परे है और एकमुश्त वोट कर रहा है.
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Bihar Election 2025 : आजादी के बाद 1952 में पहली बार देश में आम चुनाव हुए.उस वक्त लोकसभा और राज्यों की विधानसभा के लिए एक साथ चुनाव हुए थे, उस वक्त से अब 2025 का समय है, पार्टियां हमेशा इसी कोशिश में रहती हैं कि उनकी सरकार बने और उनके एजेंडे पर देश चले. चुनाव में जाति, धर्म और लिंग सबको आधार बनाकर वोट मांगा गया है, कोई पार्टी यह कहती है कि हमने दलितों के लिए काम किया, इसलिए हमें वोट दो, तो कोई यह कहती है कि हमने गरीबों,मुसलमानों के लिए काम किया, इसलिए हमें वोट दो. हर पार्टी ने अपना वोट बैंक बना लिया है, जो उनके एजेंडे के आधार पर उनके साथ खड़ा है. विगत कुछ चुनावों पर अगर गौर करें, तो हम पाएंगे कि एक नया वोट बैंक भारतीय राजनीति में उभरा है, जिसका जाति और धर्म से कोई लेना-देना नहीं है. क्या आप उस वोट बैंक को जानते हैं?
क्या जाति और धर्म से अलग वोट बैंक तैयार हो गया है?
भारतीय राजनीति में वर्ष 2000 से फ्रीबीज की शुरुआत हुई और पार्टियों ने वर्ग आधारित लाभ पहुंचाने वाली योजना की शुरुआत की और उनका बहुतायत में उपयोग कर लाभुकों को अपना वोट बैंक बना लिया. विगत कुछ वर्षों से वर्ग आधारित योजनाओं ने तो राजनीतिक पार्टियों को चुनाव में जीत भी दिलवाई है. अब स्थिति यह है कि इन योजनाओं का लाभ जिस वर्ग को मिल रहा है वो जाति या धर्म आधारित नहीं हैं. जैसे अगर कोई योजना महिलाओं के लिए तो उससे पूरा महिला वर्ग लाभ ले रहा है. युवाओं को लैपटाॅप दिया जा रहा है तो वो सबको दिया जा रहा है कि किसी खास जाति या धर्म के लोगों को नहीं. परिणाम यह हुआ है कि देश में एक ऐसा वोटबैंक बना है, जो जाति और धर्म के आधार पर वोट नहीं करता है. हालांकि 2000 से पहले ही राजनीतिक पार्टियों ने यह समझ लिया था कि विकास योजनाओं का अगर तरीके से प्रचार-प्रसार किया जाए तो उनके आधार पर वोट मिलते हैं, खासकर उन लोगों के जो उन योजनाओं से लाभान्वित होते हैं. यूपी में फ्री लैपटाॅप और बंगाल में गरीबों के लिए राशन कार्ड महिलाओं के लिए लाभांश योजनाओं की शुरुआत चुकी थी.
क्या महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत बढ़ा है?
आजादी के वक्त जब संविधान सभा में बहस हुई तो कई लोग यह मानते थे कि महिलाओं को वोटिंग राइट्स नहीं मिलना चाहिए, क्योंकि उनमें राजनीति की समझ कम है, लेकिन कई नेता इस तर्क के विरोध में थे. बहस के बाद संविधान ने महिलाओं को वोटिंग राइट्स दिया और यह माना गया कि महिलाएं भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करेंगी. चूंकि आजादी के वक्त महिलाओं में शिक्षा का अभाव था और वे ज्यादातर पुरुष प्रधान समाज के सोच के साथ जी रही थीं, उनकी भागीदारी वोटिंग में कम थी. जमीनी बात करें, तो अधिकतर महिलाएं अपने पति, पिता के कहे अनुसार वोटिंग करती थीं.
अब साल 2025 है और महिलाएं काफी सशक्त हैं, वोटिंग में उनकी भागीदारी कई बार पुरुषों से अधिक दिखती है. हालांकि ग्राउंड रियलिटी बिहार जैसे राज्यों में अभी भी यह है कि महिलाओं के वोट पर उनके परिवार का प्रभाव रहता है.
2024 के लोकसभा चुनाव में कई राज्यों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों की तुलना में अधिक रहा. यह परिवर्तन न केवल उनके मताधिकार की जानकारी देता है, बल्कि यह भी बताता है कि महिलाएं अब राजनीतिक निर्णयों में सक्रिय भागीदार बन गई हैं.वे अपने मुद्दों को समझती हैं और उनके अनुसार वोट करती हैं. चूंकि महिलाओं के मुद्दे एक जैसे हैं और वे वोट भी एकमुश्त करती हैं, इसलिए पार्टियां उन्हें इंप्रेस करने के लिए नयी नीति बनाती हैं, जिसका लाभ उन्हें मिलता है.
| वर्ष | महिला टर्न-आउट (%) | पुरुष टर्न-आउट (%) | कुल टर्न-आउट (%) | स्रोत (आधिकारिक PDF) |
|---|---|---|---|---|
| 2010 | 54.48% | 51.12% | 52.72%. (Bihar CEO Office) | Statistical Report 2010 — Electors Data Summary (CEO Bihar / ECI). (Bihar CEO Office) |
| 2015 | 60.48% | 53.32% | 56.66%. (Bihar CEO Office) | Statistical Report 2015 — Assembly Elections (CEO Bihar / ECI). (Bihar CEO Office) |
| 2020 | 59.70% | 54.60% | 57.05%. (Election Commission of India) | Electors Data Summary — State Election 2020 (Bihar) (ECI / CEO Bihar). (Election Commission of India) |
राजनीतिक पार्टियां महिलाओं को क्यों रही हैं टारगेट?
भारतीय राजनीति में महिलाएं एक ऐसा वोटबैंक बन चुकी हैं, जिसे अपने पाले में करने वाली पार्टी सीधे सत्ता तक पहुंचती है. हाल के चुनाव में झारखंड में मैंया सम्मान योजना, मध्यप्रदेश में लाड़ली लक्ष्मी योजना और महाराष्ट्र में लाडकी बहीण योजना ने राजनीतिक पार्टियों को सत्ता तक जाने का रास्ता दिखा दिया. अब यह एक पैटर्न बन गया है. बिहार चुनाव से पहले एनडीए और महागठबंधन दोनों ने ही लड़कियों को टारगेट करके उन्हें पैसा देने की बात कही है. एनडीए ने तो कार्यक्रम की शुरुआत भी कर दी है और महिलाओं के खाते में 10-10 हजार रुपए भेज भी दिए हैं. प्रभात खबर के पाॅलिटिकल एडिटर मिथिलेश कुमार कहते हैं कि सीधे लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं का लाभ पार्टियों को मिलता है, इसमें कोई दो राय नहीं है. यही वजह है कि जो सत्ता में हैं, वो महिलाओं को टारगेट कर रहे हैं और जो सत्ता में नहीं हैं, वो वादा करके उन्हें प्रलोभन दे रहे हैं.
सीधे लाभ पहुंचाने वाली योजनाओं का कितना मिलता है लाभ?
एडीआर के राजीव कुमार ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में कहा कि फ्रीबीज अनैतिक है और जैसे-जैसे वोटर्स का बौद्धिक विकास होगा, वे इससे खुद को अलग करेंगे और यह अप्रासंगिक हो जाएगा. वर्तमान समय की बात करें तो बेशक फ्रीबीज का फायदा राजनीतिक पार्टियों को होता है, क्योंकि वोटर्स तात्कालिक लाभ को देखकर वोट कर रहे हैं. यह भी कहना सही होगा कि फ्रीबीज की वजह से जनता ने जाति और धर्म का बंधन भी तोड़ा है और एकमुश्त वोट कर हैं. राजनीतिक पार्टियों के अपने रिसर्च विंग होते हैं, जहां यह बात साबित भी हुई है कि सीधे लाभ देने वाली योजनाओं का बहुत फायदा होता है.इसी वजह से पूरे देश में फ्रीबीज जारी है. जहां तक महिलाओं की बात करें, तो ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी महिलाएं परिवारवालों की मर्जी से वोट करती हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में सच्चाई अलग है. यह ग्राउंड रियलिटी है, लेकिन बौद्धिक क्षमता का विकास होने से स्थिति बदल रही है, आजीविका दीदियों की बात अगर करें, तो वे ज्यादा आत्मनिर्भर दिखती हैं. 2015 और 2020 के वोटिंग पैटर्न को देखें तो यह बात साफ है कि महिलाओं का वोट प्रतिशत लगातार बढ़ा है.
मिथिलेश कुमार कहते हैं कि वोटर्स तीन प्रकार के हैं-1. पार्टी का कैटर वोटर 2. असमंजस में पड़ा वोटर 3. लाभ लेने के बाद वोट करने वाला वोटर. सरकारी योजनाओं की घोषणा के बाद जो वोटर असमंस में होता है वो और जिन्हें सीधे लाभ मिलता है, उनका वोट सीधे लाभ देने वाली पार्टियों को मिल जाता है. जहां तक महिला वोटर्स की बात है तो निश्चित तौर पर सरकारी योजनाओं के प्रभाव में वोट करती हैं कर रही हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में अभी भी वे परिवार और पार्टियों के प्रभाव में वोट करती हैं.
भारत में महिलाओं को वोटिंग राइट्स कब मिला?
भारत में आजादी के बाद संविधान लागू हुआ, तो उन्हें मतदान का अधिकार मिला. 1951-52 में जब देश में पहली बार चुनाव हुआ, तो महिलाओं ने वोट किया.
क्या राजनीतिक दल महिलाओं को केंद्र में रखकर योजनाओं की शुरुआत कर रहे हैं?
हां, आजकल देश में यह पैटर्न बन गया है. झारखंड का मैंया सम्मान योजना, एमपी का लाड़ली लक्ष्मी योजना और बिहार का महिला स्वरोजगार योजना इसका उदाहरण है.
फ्रीबीज का प्रभाव वोटिंग पर पड़ता है?
हां, फ्रीबीज पाने वाले कई लोग इसके प्रभाव में वोट करते हैं.
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