बिहार ने पिछले 35 साल से क्यों OBC को ही बनाया मुख्यमंत्री, जानें कैसा रहा है सीएम फेस को लेकर जातीय समीकरण?
Bihar Chief Ministers : बिहार एक ऐसा राज्य है जिसके समाज को घोर जातिवादी माना जाता है और यहां की राजनीति भी इससे प्रभावित है. बावजूद इसके अगर बिहार की राजनीति पर नजर दौड़ाएं, तो हम पाएंगे कि इस प्रदेश ने हर जाति और समाज के लोगों को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया. फिर चाहे वो फारवर्ड हों, ओबीसी, दलित या अल्पसंख्यक. बिहार में पिछले 35 साल से ओबीसी मुख्यमंत्री हैं, इस बार के चुनाव के बाद भी कोई ओबीसी ही मुख्यमंत्री बनेगा, यह बात भी बिलकुल सच महसूस होती है.
Table of Contents
Bihar Chief Ministers : बिहार विधानसभा चुनाव का महासंग्राम जारी है. 6 और 11 नवंबर को मतदान होंगे और 14 नवंबर को यह पता चल जाएगा कि बिहार में कौन सा गठबंधन सरकार बनाएगा. बिहार की राजनीति और समाज दोनों ही जाति आधारित है. ऐसे में टिकट वितरण से लेकर सीएम फेस के निर्धारण तक जातियों का प्रभाव दिखता है. साल 2022 की जाति आधारित जनगणना के अनुसार बिहार में पिछड़ों और अति पिछड़ों को मिलाकर कुल ओबीसी आबादी 63% है. इस लिहाज से इस जाति समूह का दावा सीएम की कुर्सी पर भी काफी मजबूत दिखता है. वैसे भी कोई भी गठबंधन चुनाव में जीत दर्ज करे, सीएम फेस एक ओबीसी ही होगा यह पहले से ही तय है. इसकी वजह यह है कि महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को सीएम फेस घोषित कर दिया है, जबकि एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में भरोसा करता है, इस लिहाज से दोनों ही सीएम कैंडिडेट पिछड़ा वर्ग से आते हैं. बिहार में एक बार मुसलमान मुख्यमंत्री भी हुए हैं, तो आइए समझते हैं बिहार में किस तरह मुख्यमंत्री पद को लेकर राजनीति होती रही है.
कौन थे बिहार के पहले मुख्यमंत्री?
बिहार में ब्रिटिश काल से ही मुख्यमंत्री थे, जिन्हें उस वक्त प्रधानमंत्री कहा जाता था. बिहार विधानसभा की वेबसाइट के अनुसार श्री कृष्ण सिंह 1937 से 1952 तक बिहार के प्रीमियर यानी प्रधानमंत्री पद पर बने रहे. आजादी के बाद जब 1952 में पहली बार चुनाव हुए और कांग्रेस की सरकार बनी, तब भी मुख्यमंत्री पद श्री कृष्ण बाबू को ही मिला और वे 1952 से 1961 तक मुख्यमंत्री पद पर रहे. वे भूमिहार जाति से आते थे और मुंगेर के बरबीघा इलाके से आते थे, जो वर्तमान में शेखपुरा जिले में आता है. श्री कृ्ष्ण सिंह भले ही बिहार के सवर्ण जाति से आते थे, लेकिन उन्होंने जाति प्रथा का खुलकर विरोध किया. उन्होंने 1953 में एक अभियान चलाया और बाबाधाम में दलितों को प्रवेश दिलाया. उन्हें बिहार केशरी के नाम से भी जाना जाता है. बिहार में आजादी के बाद हुए चुनाव 1952 से 1967 तक कांग्रेस पार्टी की ही सरकार रही. इस दौरान जितने भी मुख्यमंत्री हुए सभी फारवर्ड क्लास के थे. विनोदानंद झा 1961 से 1963 तक मुख्यमंत्री रहे. कृष्ण वल्लभ सहाय 1963 से 1967 तक मुख्यमंत्री रहे.
बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री कौन थे?
1967 के चुनाव में बिहार में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी थी. मुख्यमंत्री कृष्ण वल्लभ सहाय को पटना वेस्ट सीट से बुरी तरह हराने वाले महामाया प्रसाद सिन्हा को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी. हालांकि वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में जीतकर आए थे. 1967 के चुनाव में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था जिसकी वजह से पहली बार कुछ राजनीतिक दलों ने गठबंधन बनाया और पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार सामने आई. इस गठबंधन में जनसंघ, समाजवादी पार्टियां और निर्दलीय सदस्य भी शामिल थे. गठबंधन को नाम दिया गया था जन क्रांति दल. इस गठबंधन की सरकार 5 मार्च 1967 से 28 जनवरी 1968 तक चली. महामाया प्रसाद सिन्हा भी फारवर्ड क्लास से आते थे और वे कायस्थ जाति का प्रतिनिधित्व करते थे. जन क्रांति दल की सरकार इसलिए नहीं चल पाई क्योंकि यहां कई विचारधारा के लोग एक साथ मौजूद थे. उनके विचारों का टकराव होता था जिससे आपसी खींचतान काफी बढ़ गई थी. इसके साथ ही उस दौर में हुए सांप्रदायिक दंगे भी गैर कांग्रेसी सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाने वाले साबित हुए. महामाया प्रसाद सिन्हा के इस्तीफे के बाद शोषित दल जिसकी अध्यक्षता बीपी मंडल कर रहे थे, ने कांग्रेस की मदद से सरकार बनाया था, लेकिन उस वक्त वे ना तो विधानसभा के सदस्य थे और ना विधान परिषद के. इस वजह से उनके सहयोगी सतीश प्रसाद सिंह मात्र 5 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने और बीपी मंडल को विधानपरिषद के लिए नियुक्त किया. उसके बाद सतीश सिंह ने इस्तीफा दिया और बीपी मंडल बिहार के मुख्यमंत्री बने. 5 दिनों के कार्यकाल की वजह से सतीश प्रसाद सिंह को बिहार के पहले ओबीसी मुख्यमंत्री बनने का अवसर मिला. वे बिहार के मुंगेर जिला के रहने वाले थे और परबत्ता विधानसभा सीट से विधायक थे.
कौन थे बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री?
महामाया प्रसाद सिन्हा और बीपी मंडल की सरकार के गिरने के बाद बिहार में कांग्रेस की वापसी हुई और 1969 में भोला पासवान शास्त्री को सीएम की कुर्सी मिली. हालांकि पहली बार के कार्यकाल में भोला पासवान महज 99 दिन के लिए ही मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन उनका जिक्र बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे बिहार के पहले दलित मुख्यमंत्री थे. उसके बाद वे दो बार और बिहार के मुख्यमंत्री बने. दूसरी बार उनका कार्यकाल 12 दिन और तीसरी बार 221 दिन का रहा था.
बिहार के पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री कौन थे?
| क्रम | मुख्यमंत्री का नाम | कार्यकाल | राजनीतिक दल |
|---|---|---|---|
| 1 | श्रीकृष्ण सिंह | 15 अगस्त 1947 → 31 जनवरी 1961 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 2 | दीप नारायण सिंह | 1 फरवरी 1961 → 18 फरवरी 1961 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 3 | बिनोदानंद झा | 18 फरवरी 1961 → 2 अक्टूबर 1963 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 4 | कृष्ण बल्लभ सहाय | 2 अक्टूबर 1963 → 5 मार्च 1967 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 5 | महामाया प्रसाद सिन्हा | 5 मार्च 1967 → 28 जनवरी 1968 | जन क्रांति दल |
| 6 | सतीश प्रसाद सिंह | 28 जनवरी 1968 → 1 फरवरी 1968 | शोषित दल |
| 7 | बी. पी. मंडल | 1 फरवरी 1968 → 22 मार्च 1968 | स्वतंत्र |
| 8 | भोला पासवान शास्त्री | 22 मार्च 1968 → 29 जून 1968 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 9 | हरिहर सिंह | 26 फरवरी 1969 → 22 जून 1969 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 10 | दरोगा प्रसाद राय | 16 फरवरी 1970 → 22 दिसंबर 1970 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 11 | कर्पूरी ठाकुर | 22 दिसंबर 1970 → 2 जून 1971 | समाजवादी दल |
| 12 | केदार पांडे | 19 मार्च 1972 → 2 जुलाई 1973 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 13 | अब्दुल गफूर | 2 जुलाई 1973 → 11 अप्रैल 1975 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 14 | जगन्नाथ मिश्र | 11 अप्रैल 1975 → 30 अप्रैल 1977 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 15 | कर्पूरी ठाकुर | 24 जून 1977 → 21 अप्रैल 1979 | जनता पार्टी |
| 16 | रामसुंदर दास | 21 अप्रैल 1979 → 17 फरवरी 1980 | जनता पार्टी |
| 17 | जगन्नाथ मिश्र | 8 जून 1980 → 14 अगस्त 1983 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई) |
| 18 | चंद्रशेखर सिंह | 14 अगस्त 1983 → 12 मार्च 1985 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 19 | बिंदेश्वरी दुबे | 12 मार्च 1985 → 13 फरवरी 1988 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 20 | भगवत झा आजाद | 13 फरवरी 1988 → 10 मार्च 1989 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 21 | सत्येंद्र नारायण सिंह | 11 मार्च 1989 → 6 दिसंबर 1989 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 22 | जगन्नाथ मिश्र | 6 दिसंबर 1989 → 10 मार्च 1990 | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस |
| 23 | लालू प्रसाद यादव | 10 मार्च 1990 → 28 मार्च 1995 | जनता दल |
| 24 | लालू प्रसाद यादव | 4 अप्रैल 1995 → 25 जुलाई 1997 | जनता दल |
| 25 | राबड़ी देवी | 25 जुलाई 1997 → 11 फरवरी 1999 | राष्ट्रीय जनता दल |
| 26 | राबड़ी देवी | 9 मार्च 1999 → 2 मार्च 2000 | राष्ट्रीय जनता दल |
| 27 | नीतीश कुमार | 3 मार्च 2000 → 10 मार्च 2000 | समता पार्टी |
| 28 | राबड़ी देवी | 11 मार्च 2000 → 6 मार्च 2005 | राष्ट्रीय जनता दल |
| 29 | नीतीश कुमार | 24 नवंबर 2005 → 20 मई 2014 | जनता दल (यूनाइटेड) |
| 30 | जीतन राम मांझी | 20 मई 2014 → 22 फरवरी 2015 | जनता दल (यूनाइटेड) |
| 31 | नीतीश कुमार | 22 फरवरी 2015 → अब तक | जनता दल (यूनाइटेड) |
बिहार की राजनीति पर नजर दौड़ाएं तो हम पाएंगे कि इस प्रदेश ने हर जाति और धर्म के लोगों को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान किया है. बिहार के पहले मुस्लिस मुख्यमंत्री के रूप में अब्दुल गफूर ने 1973 में सत्ता संभाली और वे 1975 तक इस पद पर बने रहे. उन्होंने कुल 1 साल 283 दिनों तक मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली. इमरजेंसी लागू होने के बाद झंझारपुर के विधायक जगन्नाथ मिश्रा को कुर्सी मिली और वे 1977 तक इस पद पर बने रहे.
जनता पार्टी की सरकार में कौन बने बिहार के मुख्यमंत्री?
इमरजेंसी के बाद देश की तरह बिहार में भी जनता पार्टी की सरकार बनी और गैर कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री बने कर्पूरी ठाकुर. वे मधुबनी के फूलपरास विधानसभा सीट से विधायक थे. उनके नारे –
सौ में नब्बे शोषित हैं,शोषितों ने ललकारा है।
धन, धरती और राजपाट में नब्बे भाग हमारा है॥
कर्पूरी ठाकुर का यह नारा सामाजिक न्याय की मांग को बुलंद करने वाला बना. वे आजीवन शोषितों और वंचितों के लिए लड़ते रहे. कर्पूरी ठाकुर एक तरह से ओबीसी समाज के प्रणेता थे, जिन्होंने हक के लिए आवाज उठाई. हालांकि वे किसी खास वर्ग के लिए नहीं बल्कि पूरे वंचित समाज की बात करते थे, जिसमें दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक सभी शामिल थे. जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद जब देश और बिहार में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी, तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक बार फिर सवर्णों का राज कायम हुआ और जगन्नाथ मिश्रा, बिंदेश्वरी दुबे, सत्येंद्र नारायण सिन्हा और भागवत झा आजाद जैसे नेता मुख्यमंत्री बने. उसके बाद आया 1990 का दशक, जिसके बाद से अबतक कोई सवर्ण बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठ सका है.
विभिन्न विषयों पर एक्सप्लेनर और विशेष आलेख पढ़ने के लिए क्लिक करें
1990 में लालू यादव बने बिहार के मुख्यमंत्री
बोफोर्स तोप घोटाले की आंच में कांग्रेस की सरकार एक बार फिर सत्ता से बाहर हुई और 2 दिसंबर 1989 को वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने थे. उस वक्त पूरा विपक्ष कांग्रेस के खिलाफ एकजुट था और बहुमत ना होने के बावजूद केंद्र में बीजेपी के समर्थन से जनता दल की सरकार बनी थी. बिहार में भी जनता दल की सरकार बनी और लालू प्रसाद यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली. लालू यादव बिहार के उन नेताओं में शामिल हैं, जिन्हें पिछड़ों के अंदर स्वाभिमान की भावना जगाने के लिए जाना जाता है. उन्होंने मुस्लिम यादव समीकरण की वजह से बहुमत हासिल किया और आज भी यह समीकरण राजद की शक्ति है. उनका कार्यकाल बदतर कानून व्यवस्था और जंगलराज के लिए भी जाना जाता है. लालू यादव ने 1995 तक शासन किया. वे दूसरी बार भी चुनाव जीतकर आए, लेकिन चारा घोटाला में नाम आने के बाद उन्होंने पद से इस्तीफा देकर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया. उन्होंने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया और उसके अध्यक्ष बने.
2000 में बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का उदय
2000 का चुनाव बिहार की राजनीति में काफी अहम है, क्योंकि लालू के जंगलराज को नीतीश कुमार ने टक्कर दी थी. इस टक्कर के बाद राजद और जदयू की प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई. 2000 के चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला, लेकिन राज्यपाल ने एनडीए को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया. नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, लेकिन महज सात दिन के अंदर उन्होंने इस्तीफा दे दिया, क्योंकि वे बहुमत साबित नहीं कर पाए. फिर राबड़ी देवी ने कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशियों की मदद से सरकार बनाई. 2005 में नीतीश कुमार ने बीजेपी के सहयोग से सरकार बनाई और वर्तमान समय तक वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हुए हैं. बीच में 278 दिन के लिए उन्होंने जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया था. नीतीश कुमार फिर पिछड़ा वर्ग से आते हैं. कहने का आशय यह है कि 1990 के बाद यानी पिछले 35 साल से बिहार में पिछड़ों का राज है. कुछ समय के लिए जब जीतन राम मांझी मुख्यमंत्री बने थे, दलित मुख्यमंत्री हुए थे.
बिहार के पहले मुख्यमंत्री कौन थे?
बिहार के पहले मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह थे.
क्या बिहार में कोई मुसलमान मुख्यमंत्री बना है?
हां, बिहार में अब्दुल गफूर एक मुसलमान मुख्यमंत्री बने हैं. उन्होंने 1973 से 1975 तक शासन किया.
बिहार के पहले दलित सीएम कौन थे.
भोला पासवान शास्त्री बिहार के पहले दलित सीएम थे.
क्या नीतीश कुमार बीजेपी के हैं?
नहीं नीतीश कुमार जदयू के नेता हैं.
लालू यादव को किस घोटाले की वजह से मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी?
चारा घोटाले की वजह से लालू यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी.
ये भी पढ़ें : Bihar Election 2025 : जाति-धर्म से अलग उभरा नया वोट बैंक, महिला-किसान बन सकते हैं किंगमेकर; समझें वोटिंग पैटर्न
