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इटली में चीन के बाद सबसे ज्यादा लोग मरे हैं और उसके बाद सबसे ज्यादा मरनेवालों की संख्या ईरान में है. इटली और ईरान में इस संक्रमण के फैलने में चीन के ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना का बड़ा हाथ है.

डॉ अश्विनी महाजन

एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू

ashwanimahajan@rediiffmail.com

इटली में चीन के बाद सबसे ज्यादा लोग मरे हैं और उसके बाद सबसे ज्यादा मरनेवालों की संख्या ईरान में है. इटली और ईरान में इस संक्रमण के फैलने में चीन के ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना का बड़ा हाथ है. पूरी दुनिया कोरोना वायरस के कहर को झेल रही है. दुनियाभर में अभी तक लगभग 3.40 लाख लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और हजारों लोगों की जान जा चुकी है. दुनिया में संक्रमित लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है. भारत में भी यह आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है. माना जा रहा है कि भारत में अभी यह समस्या दूसरे चरण में हैं और आनेवाले दो-तीन हफ्ते महत्वपूर्ण हैं.

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) द्वारा सामान्य जांच में यह सिद्ध हुआ कि अभी तक कोरोना संक्रमण सामुदायिक संपर्क से नहीं आया है, जो बड़े संतोष का विषय है. लेकिन इस आशंका से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है कि भविष्य में यदि कोरोना से संक्रमित व्यक्ति सामाजिक संपर्क में आते हैं, तो यह संक्रमण फैल भी सकता है. चीन, इटली, ईरान आदि देशों के अनुभव से यह सीख मिल रही है, क्योंकि वहां यह संक्रमण सामुदायिक रूप ले चुका है.

इस वायरस का फैलाव चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ. चीनी अधिकारियों को इस वायरस के संक्रमण की जानकारी दिसंबर, 2019 में मिली थी. कुछ लोगों का यह भी कहना है कि यह वायरस चीन के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से निकला. लेकिन इस संस्थान के वैज्ञानिकों का कहना है कि वुहान में इस संस्थान का होना और वहीं पर वायरस का फैलना महज एक संयोग है. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन द्वारा वायरस यानी बायोलॉजिकल हथियारों का निर्माण और इस वायरस का दुर्घटनावश फैलना दोनों में कुछ संबंध जरूर है. कई अमेरिकी विशेषज्ञों ने इस आशंका की तरफ संकेत भी किया है.

कुछ वैज्ञानिकों का यह मानना है कि यह वायरस जानवरों से मानव शरीर में स्थानांतरित हुआ है. यह वायरस ‘सार्स’ परिवार का है और इस बात की ज्यादा संभावना है कि यह एक चमगादड़ से या किसी ऐसे जानवर से, जिसे चमगादड़ ने संक्रमित किया हो, से आया है. चाहे यह वायरस प्राकृतिक रूप से किसी जानवर से आया है या फिर किसी प्रयोगशाला से, इस बात पर लगभग मतैक्य है कि यह वायरस चीन से ही आया है. यही कारण है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस वायरस को ‘चाइनीज वायरस’ कह रहे हैं. पूर्व में भी चीन दुनिया में फैली विभिन्न बीमारियों के वायरस का जन्मदाता रहा है. साल 2002 में सार्स वायरस से दुनियाभर के हजारों लोग संक्रमित हुए थे और 773 मौतें हुई थीं. वह वायरस भी चीन से आया था.

हालांकि, चीन में इस वायरस का आपात घट रहा है और जल्द ही हालात सामान्य हो जायेंगे. लेकिन यह प्रश्न पूरी दुनिया को खल रहा है कि यदि इस वायरस को फैलने में षड्यंत्र को दरकिनार भी कर दिया जाये या चीनी लोगों की खान-पान की विचित्रता को भी न देखा जाये, तो भी दिसंबर में इस संक्रमण की जानकारी होने के बाद भी चीन द्वारा इस वायरस को फैलने देने से रोकने में क्या भूमिका रही? क्या चीनी सरकार ने दुनिया को इस मामले में आगाह किया? प्राप्त सूचनाओं के आधार पर पता चलता है कि इस घटना के लिए चीन सरकार के अलावा किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. वायरस के बारे में पहली बार जानकारी देनेवाले डॉक्टर के साथ चीनी सरकार का दुर्व्यवहार जगजाहिर है, जो अंतोगत्वा मृत्यु को प्राप्त हो गये.

पूरी दुनिया में इस संक्रमण का फैलाव हुआ है, लेकिन इटली और ईरान सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. अकेले इटली में चीन के बाद सबसे ज्यादा लोग मरे हैं और उसके बाद सबसे ज्यादा मरनेवालों की संख्या ईरान में है. एक रिपोर्ट के अनुसार इटली और ईरान में इस संक्रमण के फैलने में चीन के ‘वन बेल्ट वन रोड’ यानी बेल्ट रोड परियोजना का बड़ा हाथ है. चीन से इतनी दूर होने के बावजूद इन दो मुल्कों में कोरोना वायरस के फैलने की वजह यह परियोजना ही बतायी जा रही है. चीन पिछले कुछ समय से अपने सामरिक एवं आर्थिक हितों को बढ़ाने के लिए इस परियोजना का अक्रामक रूप से विस्तार कर रहा है. इटली और ईरान इस परियोजना के बड़े हिस्सेदार हैं. इटली ने इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर ट्रांसपोर्ट तक और यहां तक कि इटली के चार बड़े बंदरगाहों को भी चीनी भागीदारी के लिए खोल दिया है. लोंबार्डी और टुस्कैनी दो क्षेत्र हैं, जहां सबसे ज्यादा चीनी निवेश हुआ है. पहले संक्रमण का मामला 21 फरवरी, 2020 को ही इटली में आया था.

अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंधों के कारण ईरान भारी संकट में है. वहां चीनी निवेश को बढ़ावा दिया गया है और 2019 में उसने अधिकारिक तौर पर बेल्ट रोड परियोजना पर हस्ताक्षर किया और दो हजार मील लंबी रेल पटरी, जो पश्चिमी चीन से तेहरान होते हुए यूरोप में तुर्की तक जायेगी, के काम को आगे बढ़ाया. चीन की रेलवे इंजीनियरिंग कॉरपोरेशन कोम (ईरान) से निकलनेवाली 2.7 अरब डालर की तीव्र गति की रेल लाइन बिछा रहा है. इसी के साथ चीनी तकनीशियन आण्विक पावर प्लांट का भी जीर्णोद्धार कर रहे हैं. ईरान के स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि या तो चीनी कर्मियों या चीन होकर आनेवाले ईरानी व्यापारियों से ‘कोम’ में यह संक्रमण फैला. माना जा सकता है कि इटली और ईरान दोनों में कोरोना वायरस संक्रमण के चीन से संबंध हैं. भारत ने चीन की इस परियोजना में शामिल होने से इनकार कर दिया था.

काफी समय से चीन डंपिंग, निर्यात सब्सिडी और विविध प्रकार के तरीके अपनाकर दुनिया के बाजारों पर कब्जा जमा रहा है. भारत ही नहीं, अमेरिका और यूरोप सरीखे बड़े विकसित देशों में मैनुफैक्चरिंग तबाह हो गयी और कई देश भुगतान संकट का सामना करने लगे. वहां बेरोजगारी बढ़ गयी. आज जब चीन में लॉकडाउन के चलते वहां से सामान का आयात संभव नहीं, उसके कारण पूरी दुनिया में उद्योग-धंधों को चलाने में भी भारी कठिनाई आ रही है. एक तरफ कोरोना का कहर और दूसरी ओर आर्थिक संकट दुनिया के मुल्कों को यह सोचने के लिए मजबूर कर रहे हैं कि क्या चीन विश्व में भूमंडलीकरण का केंद्र बना रह सकता है. चीन की सरकार भी अपनी बदनामी को न्यूनतम करने के प्रयास में जुट गयी है. विश्व को विचार करना होगा कि आगे की आर्थिक गतिविधियों का स्वरूप क्या होगा?

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