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वित्त वर्ष 2022-23 में 55 करोड़ से अधिक लोगों को स्वास्थ्य बीमा संरक्षण था, पर इसमें लगभग 29.8 करोड़ सरकार द्वारा प्रायोजित बीमा कार्यक्रमों के लाभार्थी थे.

भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण ने स्वास्थ्य बीमा खरीदने की अधिकतम आयु सीमा को हटा दिया है. वर्ष 2016 में बीमा प्राधिकरण ने सभी बीमा कंपनियों को कहा था कि वे पहली बार बीमा लेने की आयु को बढ़ाकर 65 साल कर दें. कंपनियों को अधिक आयु के लोगों के लिए नयी पॉलिसी लाने की अनुमति भी दी गयी थी. अधिक आयु के लोगों के लिए कुछ पॉलिसी पहले से उपलब्ध हैं, पर अधिकतर कंपनियों ने 65 साल की सीमा तय की हुई है.

प्राधिकरण सभी आयु वर्ग को स्वास्थ्य बीमा के दायरे में लाने के लिए प्रयासरत है. साथ ही, यह कोशिश भी हो रही है कि पहले से बीमार और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे लोगों तथा महिलाओं को अधिक से अधिक बीमा संरक्षण मिले. बीमा तंत्र को समावेशी बनाने के ऐसे प्रयत्नों से बड़ी संख्या में लोगों को फायदा मिलने की आशा है. अभी प्राधिकरण की ओर से नये नियमन से संबंधित नियमों को विस्तार से नहीं बताया गया है.

रिपोर्टों के अनुसार, अभी प्राधिकरण की निगाह इस बात पर रहेगी कि बीमा कंपनियां किस तरह नये नियमन का अनुपालन कर रही हैं. बीमा दायरा बढ़ाने से अधिक लोग पॉलिसी खरीदने के लिए प्रेरित होंगे, लेकिन जोखिम को देखते हुए अधिक आयु के लोगों को अधिक प्रीमियम देना पड़ सकता है. ऐसा देखा गया है कि न केवल बुजुर्गों, बल्कि अपेक्षाकृत कम आयु के लोगों द्वारा एक बार बीमा का लाभ उठाने के बाद बीमा का नवीनीकरण नहीं किया जाता है. नये नियमन से इसमें सुधार की उम्मीद है. अभी हमारे देश में 60 साल या उससे अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों की संख्या 15 करोड़ है. अगले 10-12 वर्षों में यह संख्या 23 करोड़ हो जायेगी.

एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक दुनिया की बुजुर्ग आबादी का 17 प्रतिशत हिस्सा भारत में होगा. हमारे देश में 40 प्रतिशत से अधिक बुजुर्ग अत्यंत निर्धन वर्ग से आते हैं तथा लगभग 19 फीसदी वरिष्ठ नागरिकों के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है. भारत में लगभग 95 प्रतिशत लोगों के पास व्यक्तिगत जीवन बीमा नहीं है और 73 प्रतिशत के पास व्यक्तिगत स्वास्थ्य बीमा नहीं है. वित्त वर्ष 2022-23 में 55 करोड़ से अधिक लोगों को स्वास्थ्य बीमा संरक्षण था, पर इसमें लगभग 29.8 करोड़ सरकार द्वारा प्रायोजित बीमा कार्यक्रमों के लाभार्थी थे और लगभग 20 करोड़ समूह बीमा के दायरे में थे. महंगे प्रीमियम तथा जागरूकता के अभाव के कारण ऐसी स्थिति है. बीमा कंपनियों तथा अस्पतालों को भी अधिक पारदर्शी होने की जरूरत है.

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