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बचाव अभियानों से भारत का बढ़ता कद

हाल तक ऐसा कहा जाता था कि केवल पश्चिमी देश ही अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर संवेदनशील रहते हैं. लेकिन अब भारत ने जैसी सक्रियता दिखायी है, उससे साफ है कि सरकार अपने नागरिकों के लिए प्रतिबद्ध है.

सूडान में बीते कई दिनों से वहां की सेना और ताकतवर अर्द्धसैनिक सुरक्षा बल के बीच लड़ाई चल रही है. दोनों ही पक्ष देश के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न शहरों, विभागों और इमारतों पर अपना दावा कर रहे हैं. इस लड़ाई में अब तक चार सौ से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. सूडान में गृहयुद्ध का पुराना इतिहास रहा है. लेकिन यह प्रकरण इसलिए बहुत खतरनाक है क्योंकि दोनों ही सुरक्षा बल वैध और मान्यता प्राप्त संस्थान हैं तथा उनके पास भारी मात्रा में आधुनिक हथियार और प्रशिक्षित सैनिक हैं.

सूडान में भारतीयों की संख्या तीन हजार के आसपास है. उन्हें सुरक्षित निकालने के लिए भारत सरकार की ओर से कावेरी मिशन चलाया जा रहा है. इस अभियान में भारतीय वायु सेना और नौसेना भाग ले रही है. अभी तक तीन से पांच सौ लोगों को निकाला जा चुका है. इस प्रक्रिया में भारत विभिन्न देशों, जैसे- अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन, सऊदी अरब आदि, के संपर्क में है. सूडान से लोगों को निकालना पहले की ऐसी कोशिशों से अधिक जटिल है.

अन्य मामलों में आप देश की वैधानिक सरकार और सुरक्षा एजेंसियों से संपर्क कर नागरिकों को सुरक्षित निकालने की योजना पर काम कर सकते हैं, जैसा कि रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरू में हुआ था. तब वहां पढ़ रहे छात्रों को वापस लाने में यूक्रेन और रूस दोनों सरकारों से भारत ने संपर्क किया था.

अभी सूडान में किस पक्ष के नियंत्रण में क्या है, यह स्पष्ट नहीं है. वहां के लोगों और विदेशियों को सुरक्षित निकालने तथा लोगों की मदद के लिए सेना और अर्द्धसैनिक बलों के बीच लड़ाई रोकने के समझौते भी हुए हैं. पर वे कारगर नहीं हैं. ऐसी अराजकता की स्थिति एक बड़ी चुनौती है. इसके बाद दूसरी बड़ी परेशानी यह है कि सूडान बंदरगाह, जहां हमारे नौसैनिक जहाज खड़े हैं, और सूडान की राजधानी खार्तूम के बीच की दूरी लगभग एक हजार किलोमीटर है.

इसी शहर में अधिकतर भारतीय रहते हैं. उन्हें सड़क के रास्ते सूडान बंदरगाह पहुंचना है. निश्चित रूप से इस लंबी यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए ढेर सारे इंतजाम करने पड़ रहे हैं. लड़ाई के कारण हवाई अड्डों का इस्तेमाल संभव नहीं है. पर जिस तरह से प्रयास हो रहे हैं, उससे लगता है कि जल्दी ही सभी भारतीय सुरक्षित देश लौट आयेंगे. इन प्रयासों में दिल्ली स्थित सूडान के दूतावास से हरसंभव सहयोग मिल रहा है तथा सूडान के पड़ोस में स्थित खाड़ी देश भी मददगार साबित हो रहे हैं.

कुछ समय से दुनिया में अनेक तरह के भू-राजनीतिक संकट पैदा हुए हैं, जिनके कारण भारत और अन्य कई देशों को अपने नागरिकों को संकटग्रस्त स्थितियों से निकालने के लिए अधिक प्रयास करने पड़ रहे हैं. इस संबंध में भारत की सक्रियता में बड़ी तेजी आयी है. हालांकि बहुत पहले से भारत ने ऐसे सफल अभियान चलाये हैं, पर अब जो स्थितियां पैदा हो रही हैं, वे अपेक्षाकृत अधिक संवेदनशील और जटिल हैं. वर्ष 1990 में पहले खाड़ी युद्ध के दौरान डेढ़ लाख से अधिक भारतीयों को हवाई जहाज से निकाला गया था.

वह दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा अभियान है, जहां इतनी बड़ी संख्या में लोगों को बचाया गया. वर्ष 2006 में इजरायल-लेबनान युद्ध के समय ऑपरेशन सुकून के तहत लगभग दो हजार भारतीयों को निकाला गया था. हालांकि तब लेबनान में लगभग बारह हजार भारतीय थे, पर अधिकतर लोगों ने वहीं सुरक्षित जगहों पर रुकने का फैसला किया था.

उस अभियान में लगभग पांच सौ श्रीलंकाई और नेपाली नागरिकों को भी लाया गया था. तब भारतीय नौसेना का युद्धपोत सीधे बेरुत बंदरगाह पहुंच गया था. वर्ष 2011 में ऑपरेशन सेफ होमकमिंग के तहत लीबिया से सोलह हजार से अधिक भारतीयों को निकाला गया था. उसी साल यमन और मिस्र से करीब सात-सात सौ लोगों को बचाया गया था. इन अभियानों में सड़क, वायु और समुद्री- तीनों मार्गों का उपयोग किया था.

वर्ष 2015 में यमन में गृहयुद्ध की स्थिति भयानक हो जाने पर भारत ने ऑपरेशन राहत चलाया और वहां से करीब पांच हजार भारतीयों के साथ-साथ 48 देशों के लगभग दो हजार लोगों को भी सुरक्षित निकाला गया था. वर्ष 2016 में ऑपरेशन संकट मोचन के तहत एक ही दिन के अभियान में साउथ सूडान से भारतीय और नेपाली नागरिकों को हवाई जहाज के जरिये निकाला गया था.

अगस्त 2021 में जब अफगानिस्तान की सत्ता पर तालिबान का कब्जा हुआ, तब भारत ने ऑपरेशन देवी शक्ति चलाकर सैकड़ों भारतीयों समेत अन्य कुछ देशों के लोगों को भी काबुल से निकाला. लड़ाइयों के बीच चले इन बड़े अभियानों के अलावा भी छोटे अभियानों में 2011 में यमन एवं मिस्र में और 2014 में यूक्रेन, इराक, माल्टा, लीबिया एवं सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक से भारतीयों को अशांति व हिंसा से बचाया गया.

वर्ष 2015 में नेपाल में आये भयंकर भूकंप के बाद भारतीयों को निकालने के लिए ऑपरेशन मैत्री अभियान चलाया गया था. पिछले साल फरवरी-मार्च में यूक्रेन से 11 सौ से अधिक भारतीयों को ऑपरेशन गंगा के तहत निकाला गया था. कोरोना महामारी के दौर में जब पूरी दुनिया में उड़ानें बंद हो गयी थीं, तब विभिन्न देशों में रह रहे भारतीयों को लाने के लिए वंदे भारत मिशन जैसा व्यापक अभियान चलाया गया था.

हाल तक ऐसा कहा जाता था कि केवल पश्चिमी देश ही अपने नागरिकों की सुरक्षा को लेकर संवेदनशील रहते हैं. लेकिन अब भारत ने जैसी सक्रियता दिखायी है, उससे साफ है कि सरकार अपने नागरिकों के लिए प्रतिबद्ध है. भारतीय अभियानों की एक विशेषता यह भी रही है कि उसमें दूसरे देशों, विशेषकर पड़ोसी देशों, के नागरिकों को भी सुरक्षित निकाला गया है.

इन अभियानों में भारत सरकार ने विभिन्न देशों के साथ जो सफल सहकार स्थापित किया है, वह हमारी प्रभावी कूटनीति का एक उदाहरण है. इस संबंध में यह रेखांकित किया जाना चाहिए कि अन्य बड़े देशों की तुलना में हमारे दूतावासों में कार्यरत लोगों की संख्या बहुत कम है. कुछ देशों, जैसे- अमेरिका, चीन, ब्रिटेन आदि, में हमारे बड़े मिशन हैं, पर अन्य जगहों पर अधिक लोगों को पदस्थापित करने की आवश्यकता है.

वैश्विक मंच पर भारत के राजनीतिक और आर्थिक असर में बढ़ोतरी हो रही है. भारतीय प्रवासियों की संख्या भी बढ़ रही है. हम प्रवासी दिवस मनाकर भारतीय डायस्पोरा को सम्मान भी देते हैं. ऐसे में हमें अपने विदेशी मिशन को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए. दूतावासों में विशेषज्ञों और दक्ष लोगों को रखने के बारे में भी सोचा जाना चाहिए. साथ ही, राहत और बचाव के लिए आपदा प्रबंधन की तरह एक विशेष नीति भी बनायी जानी चाहिए.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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