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तकनीक के भाषाई अनुवाद का बड़ा कदम

आइआइटी बंबई का उड़ान प्रोजेक्ट सात वर्ष के अध्ययन के बाद हकीकत बनने लगा है. इसके जरिये तमाम तकनीकी पुस्तकों का अनुवाद होने लगा है. यह अनुवाद अभी हिंदी, मराठी, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, तमिल, गुजराती, उड़िया और बांग्ला में उपलब्ध है.

लाल बहादुर शास्त्री को दुनिया ‘जय जवान, जय किसान’ नारे, पाकिस्तान पर भारत की जीत और हरित क्रांति के लिए जानती है. बहुत कम लोगों को यह जानकारी है कि स्वाधीन भारत में शिक्षा व्यवस्था को भारतीय भाषाओं में लाने का सपना भी शास्त्री जी ने ही देखा था. उन्होंने दौलत सिंह कोठारी को इसके लिए प्रेरित किया था. शिक्षा में भारतीयता और भारतीय संदर्भों में शिक्षण को लेकर स्वाधीन भारत में जिस कोठारी आयोग ने रिपोर्ट दी थी, उसके अध्यक्ष दौलत सिंह कोठारी ही थे. उसी दौर में शास्त्री जी ने कोठारी को एक और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी थी. ज्ञान-विज्ञान और तकनीक की जानकारियों को भारतीय भाषाओं में लाने और उनके लिए भारतीय भाषाओं का शब्दकोश तैयार करने की उस जिम्मेदारी को दौलत सिंह कोठारी ने निभायी भी. लेकिन वह पर्याप्त नहीं रहा. कह सकते हैं कि आइआइटी बंबई के प्रोजेक्ट के जरिये ना सिर्फ शास्त्री जी का सपना पूरा होने जा रहा है, बल्कि भारतीय भाषाओं में पश्चिमी और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों की आपूर्ति होने जा रही है.

आइआइटी बंबई का यह प्रोजेक्ट है उड़ान, जो सात वर्ष के अध्ययन के बाद हकीकत बनने लगा है. इसके जरिये तमाम तकनीकी पुस्तकों का अनुवाद होने लगा है. यह अनुवाद अभी हिंदी, मराठी, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, तमिल, गुजराती, उड़िया और बांग्ला में उपलब्ध है. इंटरनेट पर मौजूद इस प्रोजेक्ट के जरिये भारतीय भाषाओं से अंग्रेजी में भी अनुवाद किया जा सकता है. हाल में मध्य प्रदेश समेत कुछ राज्य सरकारों ने हिंदी में इंजीनियरिंग और मेडिकल की पढ़ाई शुरू की है. भारतीय भाषाओं में तकनीकी विषयों की पढ़ाई के सामने बड़ी चुनौती यह है कि आधुनिक तकनीकी ज्ञान-विज्ञान की किताबें मौजूद नहीं हैं. अचानक हिंदी माध्यम से बारहवीं तक पढ़ाई के बाद छात्र इंजीनियरिंग या मेडिकल की पढ़ाई करने जाते हैं, तो हिंदी या भारतीय भाषाओं के माध्यम की किताबें ना होने की वजह से उनके सामने चुनौती बढ़ जाती है. इस तनाव में कई बार बहुमूल्य जिंदगी आत्महत्या की राह अपना लेती है.

यह अनुवाद प्रोजेक्ट ऐसे विद्यार्थियों के लिए उम्मीद की किरण बन कर आया है. इस प्रोजेक्ट में बतौर पीएचडी शोधार्थी कार्य कर रहे आयुष माहेश्वरी का कहना है कि केरल सरकार ने अस्सी से ज्यादा तकनीकी और मेडिकल पुस्तकों के अनुवाद का काम उड़ान प्रोजेक्ट को दिया है. उड़ान प्रोजेक्ट आइआइटी बंबई के प्रोफेसर गणेश रामकृष्णन के दिमाग की उपज है. उन्हें मुंबई के उद्योगपति गणेश अरनाल ने प्रेरित किया था. अरनाल से पुस्तक मेला में मुलाकात हुई थी. उन्होंने कहा था कि तब उन्होंने अपने नाम राशि प्रोफेसर गणेश से इस प्रोजेक्ट के लिए आर्थिक सहयोग उपलब्ध कराने का भी प्रस्ताव रखा था. प्रोजेक्ट से जुड़े प्रवीण इंगले और आयुष माहेश्वरी के अनुसार, उड़ान प्रोजेक्ट के जरिये सिर्फ तकनीकी पुस्तकों का ही अनुवाद ज्यादा बेहतर होता है. साहित्यिक अनुवाद में यह उतना सफल नहीं है. माहेश्वरी का तर्क है कि साहित्यिक रचनाओं में भावनाएं होती हैं और कोई भी मशीन भावनाओं का अनुवाद नहीं कर सकती. कई बार ज्ञान-विज्ञान और तकनीक की पुस्तकों के शाब्दिक अनुवाद से भी काम चल जाता है.

उड़ान प्रोजेक्ट से करीब एक जीबी की फाइल का एक घंटे में अनुवाद किया जा सकता है. इंगले और माहेश्वरी के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट को तैयार करने में जहां गणेश रामकृष्णन की टीम ने तकनीकी पक्ष का ध्यान रखा है, वहीं जो शब्दावली इस्तेमाल की गयी है, उसे भारत सरकार के वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली आयोग ने तैयार किया है. उल्लेखनीय है कि इस आयोग के पीछे भी दौलत सिंह कोठारी का हाथ था. नयी शिक्षा नीति, 2020 में शिक्षण प्रक्रिया में भारतीय भाषाओं पर जोर दिया गया है. उड़ान प्रोजेक्ट के विचार के पीछे जापान को मिले नोबेल पुरस्कार भी रहे हैं. आयुष माहेश्वरी के मुताबिक, प्रोफेसर गणेश का ध्यान गया कि जापान को करीब एक दर्जन नोबेल पुरस्कार मिले हैं और सभी पुरस्कार विजेताओं की पढ़ाई का माध्यम जापानी ही रही है. गूगल ट्रांसलेट भी अनुवाद कर रहा है, लेकिन उसके अनुवाद में कई बार अर्थ का अनर्थ हो जाता है. वह शुद्ध रूप से शाब्दिक अनुवाद पर फोकस करता है. इस नजरिये से देखें, तो उड़ान प्रोजेक्ट की कार्य पद्धति और उसके नतीजे अलग हैं.

दुनियाभर के शैक्षिक संस्थानों की जब भी रैंकिंग होती है, भारतीय प्रतिनिधित्व की लाज आइआइटी ही रखते हैं. चूंकि उड़ान प्रोजेक्ट भी आइआइटी का है, इसलिए भारत सरकार इस पर ज्यादा ध्यान दे रही है. इस प्रोजेक्ट में आइआइटी बंबई के करीब डेढ़ दर्जन लोग कार्य कर रहे हैं तथा अनुवाद के संदर्भ में सटीक नतीजे पाने के लिए लगातार सक्रिय हैं और अपनी मेधा का इस्तेमाल कर रहे हैं. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस प्रोजेक्ट के जरिये उन भारतीय मनीषाओं को मदद मिल सकेगी, जो तकनीक और ज्ञान-विज्ञान की दुनिया में बेहतर करना चाहते हैं, लेकिन भारतीय भाषा माध्यम में पढ़ाई की पृष्ठभूमि के चलते पिछड़ते रहे हैं. उन्हें अब उड़ान के माध्यम से अनुदित ज्ञान-विज्ञान और तकनीक की बेहतरीन पुस्तकें अपनी ही भाषाओं में पढ़ने को मिल सकेंगी.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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