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ट्रंप की आक्रामकता ठीक नहीं

ज्योति मल्होत्रा वरिष्ठ पत्रकार जिस तरह से अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ मुसलिम देशों के नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है, वह मुसलिम देशों के लिए ही नहीं, बल्कि खुद अमेरिका के लिए भी ठीक नहीं है. ट्रंप ने सीरिया, ईरान, इराक, सोमालिया, सूडान, लीबिया और यमन से […]

ज्योति मल्होत्रा
वरिष्ठ पत्रकार
जिस तरह से अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कुछ मुसलिम देशों के नागरिकों के अमेरिका में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है, वह मुसलिम देशों के लिए ही नहीं, बल्कि खुद अमेरिका के लिए भी ठीक नहीं है. ट्रंप ने सीरिया, ईरान, इराक, सोमालिया, सूडान, लीबिया और यमन से आनेवाले लोगों के लिए अमेरिका में ‘नो एंट्री’ की घोषणा की है.
इस कदम के चलते ट्रंप का दुनिया भर में तो विरोध हो ही रहा है, लेकिन यहां इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि खुद अमेरिका के लोग इसका सख्ती से विरोध कर रहे हैं. सिलिकॉन वैली की बड़ी तकनीकी कंपनियां जैसे- गूगल, एप्पल, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक वगैरह ने भी विरोध में अपनी आवाज उठायी है. अंतरराष्ट्रीय मामलों के चलते यह सिर्फ नैतिकता का प्रश्न नहीं है कि बाहरी लोगों को अमेरिका में आने से रोका जाये, इसलिए लोग विरोध कर रहे हैं, बल्कि यह प्रतिबंध अमेरिका की लोकतांत्रिक भावना के विरुद्ध है, इसलिए अमेरिका के लोग ज्यादा विरोध कर रहे हैं.
तकरीबन सौ-डेढ़ सौ साल पहले जब अमेरिका एक देश के रूप में स्थापित हुआ था, तब दुनिया के हर हिस्से से लोग वहां आये थे और सबने मिल कर ही अमेरिका को अमेरिका बनाया. सौ-डेढ़ सौ साल के अमेरिकी इतिहास को देखें तो हम कह सकते हैं कि ‘अमेरिका शरणार्थियों की भूमि है’.
इसलिए अमेरिका का नागरिक समाज भी ट्रंप के इस कदम के विरोध में उतर आया है. आम आदमी ही नहीं, बल्कि खुद रिपब्लिकन पार्टी भी इस विरोध का एक सशक्त हिस्सा बनी है. ऐसे में यह तो स्पष्ट है कि इस तरह की राजनीति करनेवाले ट्रंप के लिए यह आसान नहीं होगा कि वे बिना किसी हद के अपनी मनमानी करते रहेंगे. कोई मुसलमान है या कोई किसी मुसलिम देश से आकर अमेरिका में काम कर रहा है, इसलिए उसके साथ इस तरह का व्यवहार होगा, यह अमेरिकी राष्ट्रपति का काम नहीं होना चाहिए.
वहीं दूसरी ओर, भारत में न तो सरकार की ओर से और न ही नागरिक समाज की ओर से कोई विरोध देखने को मिल रहा है. एक तरह की चुप्पी बनी हुई, क्योंकि मोदी सरकार यह चाहती है कि वह ट्रंप के साथ रिश्ते को आगे बढ़ाये. और वह इसलिए भी चुप रहना चाहती है कि शायद ट्रंप पाकिस्तान के खिलाफ कुछ सख्ती से पेश आयेंगे. खुद नरेंद्र मोदी और आरएसएस की सोच में मुसलमानों को लेकर कोई सहानुभूति का रवैया नहीं है, क्योंकि वह सबका साथ सबका विकास के राजनीतिक नारे में कहीं छुप जाता है.
वैसे भी, भारत-पाकिस्तान के रिश्ते इतने अच्छे नहीं हैं कि सरकार विरोध करके उस रिश्ते को मजबूत बनाये. अगर ट्रंप पाकिस्तान पर कुछ सख्ती रखने की कोशिश करते हैं, या फिर पिछले पंद्रह वर्षों में अमेरिका ने पाकिस्तान को खूब मदद मिलती रही है, जिससे कोई फायदा नहीं हुआ और पाकिस्तान का झुकाव चीन की तरफ बढ़ता गया, इसे देखते हुए ट्रंप अब कोई मदद नहीं करते हैं, तो यह स्थिति भारत के लिए ठीक होगा. इसीलिए प्रधानमंत्री मोदी चाहते हैं कि ट्रंप के साथ भी अोबामा जैसी ही गहरी दोस्ती रखी जाये, ताकि पाकिस्तान पर एक प्रकार का अंतरराष्ट्रीय दबाव बना रहे.
भारत की मौजूदा लोकतांत्रिक भावना जिस प्रकार की है और ट्रंप जिस प्रकार की राजनीति कर रहे हैं कि वह मेक्सिको के बीच दीवार खड़ी कर देंगे, तो इससे दो देशों की गहरी दोस्ती के औचित्य पर सवाल उठता है कि आखिर यह संभव कैसे होगा. दूसरी बात यह है कि ट्रंप की राजनीति जॉर्ज बुश सीनियर और जूनियर जैसी दिख रही है, जो अपनी व्यक्तिगत विद्वेष के चलते कोई भी मनमाना फैसला ले लेते थे.
शायद इसीलिए रिपब्लिकन पार्टी खुद ट्रंप से नाराज है और उसके बड़े दिग्गज ट्रंप की आलोचना करते रहे हैं. अब यहां संभावना यह भी है कि रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से खुद प्रोटेस्ट होगा, क्योंकि वे अपने वोटरों को नाराज नहीं करना चाहेंगे. हिस्पैनिक और अफ्रीकन-अमेरिकन वोटरों का रिपब्लिकन को समर्थन रहा है, उन्हें नाराज करने का पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहेगी, इसलिए भी ट्रंप का िवरोध वे लोग कर रहे हैं.
दूसरी ओर यह बात भी है कि वे अमेरिकी नागरिक जो अपनी कंपनियों के लिए बाहर के देशों में जाकर काम कर रहे हैं, उनके लिए भी एक प्रकार की मुसीबत का सबब बन जायेगा. गूगल के सीइओ पिचाई ने तो यह बात कह भी दी है कि वे बाहर के देशों से अपने कर्मचारियों को वापस बुला रहे हैं. भले ही यह बात पिचाई ने गुस्से में कही हो, लेकिन अगर इसी तरह का गुस्सा हर जगह हर किसी में फूटेगा, तो यह ट्रंप प्रशासन के लिए ठीक नहीं होगा. जाहिर है, राष्ट्रपति बनने के तुरंत बाद ट्रंप की यह आक्रामकता न तो अमेरिका के लिए ठीक है, और न दूसरे देशों के लिए.
ट्रंप की डर पैदा करनेवाली यह राजनीति अमेरिकी समाज को गहरे तक प्रभावित कर सकती है और वहां मुसलिम समाज को लेकर भेदभाव उत्पन्न हो सकते हैं. यह अमेरिकी लोकतंत्र के भावना के विरुद्ध है. और इसका सबसे बड़ा फायदा चीन को मिलेगा. चीन आज हंस रहा होगा कि ट्रंप अपने देश को बांटने की ओर ले जा रहे हैं.

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