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जेलों की सुरक्षा

भोपाल के जेल से आठ बंदियों के भागने की घटना को अभी एक माह भी पूरा नहीं हुआ है कि पंजाब के पटियाला जिले के नाभा जेल पर हमला और छह कैदियों की फरारी की खबर सुर्खियों में है. जेलब्रेक की दोनों घटनाओं में बहुत कुछ समानता है. दोनों जगहों से भागनेवाले कैदियों पर आतंकी […]

भोपाल के जेल से आठ बंदियों के भागने की घटना को अभी एक माह भी पूरा नहीं हुआ है कि पंजाब के पटियाला जिले के नाभा जेल पर हमला और छह कैदियों की फरारी की खबर सुर्खियों में है. जेलब्रेक की दोनों घटनाओं में बहुत कुछ समानता है. दोनों जगहों से भागनेवाले कैदियों पर आतंकी हिंसा के गंभीर आरोप हैं.
मानीखेज यह भी है कि फरारी की ये दोनों घटनाएं केंद्रीय कारागारों से हुई हैं, जिनके बारे में माना जा सकता है कि वहां सुरक्षा के इंतजाम जिला जेलों से कहीं ज्यादा चाक-चौबंद होते हैं. राष्ट्र की एकता को चुनौती देने का दुस्साहस करनेवाले तत्वों का अति सुरक्षित केंद्रीय कारागारों से भागने में कामयाब होना कारागार-प्रबंधन और सुरक्षा तंत्र के लचर होने का संकेत है. दो कारों में दस बंदूकधारियों का बेखौफ जेल के दरवाजों तक चले आना और गोलियों की बौछार करके कैदियों को भगा ले जाना (जैसा कि नाभा जेलब्रेक में हुआ) या आठ कैदियों का जेल की ऊंची दीवार फांदना और सीसीटीवी कैमरे का बंद रहना (जैसा भोपाल जेलब्रेक में हुआ) इसी कुप्रबंधन की मिसाल हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकाॅर्ड ब्यूरो के नये आंकड़े भी इस कुप्रबंधन की पुष्टि करते हैं. रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक, साल 2015 में देश के विभिन्न जेलों से कुल 371 बंदी फरार हुए. जेलब्रेक की कुल 15 घटनाएं हुईं और जेल में बंदियों के बीच मार-पीट की 187 घटनाएं सामने आयीं, जिनमें 201 बंदी घायल हुए और नौ मारे गये. चूंकि ब्यूरो की रिपोर्ट पुलिस थानों और जेल की पंजियों पर दर्ज सूचनाओं के आधार पर तैयार होती है, इसलिए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि सच्चाई इन आंकड़ों में पेश तसवीर से कहीं ज्यादा बड़ी है.
जेल के भीतर की दुनिया बुनियादी ढांचे की भारी खस्ताहाली के बीच जी रही है और जेल की सुरक्षा संबंधी तैयारियों की कमी इसका एक हिस्सा भर है. रिकॉर्ड ब्यूरो के तथ्य बताते हैं कि कैदियों की संख्या जेलों की क्षमता पर भारी पड़ रही है. देश में शायद ही कोई ऐसी जेल है, जहां निर्धारित संख्या के बराबर या उससे कम कैदी रखे गये हैं. कारागारों की सुरक्षा के लिए प्रहरियों की संख्या भी निर्धारित है, लेकिन भोपाल जेल से हुई फरारी के बाद पता चला था कि जिन पुलिसकर्मियों को जेल की जिम्मेवारी है, वे मंत्रियों और विधायकों की सुरक्षा में तैनात कर दिये गये हैं. कमोबेश देश के अन्य जेलों के साथ भी यही कहानी है.
जेलों की सुरक्षा-व्यवस्था में सुधार का सवाल जेलों के बुनियादी ढांचे में सुधार से अलग नहीं है. उम्मीद है कि भोपाल और नाभा की घटनाओं के बाद केंद्र और राज्य सरकारें निगरानी की व्यवस्था ठीक करने के साथ ही कैदियों की भारी संख्या तथा उनके कानूनी अधिकारों के उल्लंघन की समस्याओं के समाधान के लिए तत्पर होंगी.

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