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दक्षिण एशिया में आतंक

अमेरिका ने कहा है कि भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंक के हाथों बड़ी संख्या में बच्चे, महिलाएं और पुरुष मारे गये हैं. विदेश विभाग के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने यह उम्मीद भी जतायी है कि भारत और पाकिस्तान की सरकारें आपसी बातचीत से मौजूदा तनाव का हल निकाल लेंगी़ आतंकी और कट्टरपंथी हिंसा से […]

अमेरिका ने कहा है कि भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में आतंक के हाथों बड़ी संख्या में बच्चे, महिलाएं और पुरुष मारे गये हैं. विदेश विभाग के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने यह उम्मीद भी जतायी है कि भारत और पाकिस्तान की सरकारें आपसी बातचीत से मौजूदा तनाव का हल निकाल लेंगी़ आतंकी और कट्टरपंथी हिंसा से इस इलाके के इन देशों की अवाम ने जान-माल का भयावह नुकसान तो झेला ही है, साथ ही सामाजिक और आर्थिक स्तर पर इस हिंसा के दीर्घकालीन परिणामों से भी अभिशप्त हैं.

एशिया का यह हिस्सा गरीबी, बीमारी और अशिक्षा से त्रस्त है. ऐसे में हिंसात्मक विचारधाराओं से प्रभावित गिरोहों की ज्यादतियों ने विकास के लाभ को बहुसंख्यक आबादी तक पहुंचने से भी रोका है. लेकिन इन बातों पर गौर करते हुए हमें इस सच को भी सामने रखना होगा कि भारत और अफगानिस्तान को तबाह करने के लिए साजिशें पाकिस्तान की सरकारों और उसके सैनिक तंत्र के सरंक्षण में दशकों से की जाती रही हैं.

यह भी सही है कि भारत और अफगानिस्तान को अमेरिका और कई अन्य देशों का समर्थन भी मिलता रहा है, पर पाकिस्तान के रवैये में बदलाव के लिए वे पर्याप्त दबाव नहीं बना सके हैं. एक ओर पाकिस्तान को वे आतंक के विरुद्ध वैश्विक संघर्ष में सहयोगी मानते हैं और उसे आर्थिक और सैन्य मदद देते हैं, और दूसरी ओर आतंक को पनाह देने की नीति पर ढुलमुल रुख भी अपनाये रहते हैं. संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद पर ठोस निर्णय लेने के भारत का प्रस्ताव दो दशकों से लंबित है.

आतंकी सरगना मसूद अजहर पर पाबंदी के भारतीय प्रस्ताव पर सुरक्षा परिषद किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सका है. ऐसे में बिना पाकिस्तानी सरकार और सेना पर दबाव बनाये शांति की तमाम अपीलें निरर्थक ही साबित होंगी. जान-माल का नुकसान सिर्फ आंकड़ों या कूटनीति का मसला नहीं है, बल्कि एक भयावह मानवीय संकट का संकेत है. यह ठीक है कि संबद्ध सरकारों को परिपक्वता के साथ आपसी विचार-विमर्श से एक स्थायी समाधान की ओर अग्रसर होना चाहिए, परंतु इस क्षेत्र को आतंक के साये से निजात दिलाने के लिए अमेरिका समेत वैश्विक महाशक्तियों को भी सकारात्मक भूमिका निभाने की आवश्यकता है.

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