।। कमलेश सिंह ।।
(इंडिया टुडे ग्रुप डिजिटल के प्रबंध संपादक)
किसी जमाने में जमाना खराब था तो पंकज उधास रेडियो पर बेनकाब नहीं निकलने की नसीहत देते थे. अभी जमाना इतना खराब है कि नकाब बेमानी है और रुआब खतरे में. रेडियो-टीवी पर कीचड़ ही फीचर है. आम आदमी ने पार्टी बना ली, तो खास आदमी खतरे में है. खास आदमी की खुन्नस से आम आदमी खतरे में है. अन्ना कहते रहे कजरी की कोठरी में मत घुसियो, केजरीवाल ने एक न सुनी. कोठरिया से चढ़ कर अटरिया पे बैठे हैं, पर सांवरिया के दामन पर दाग तो लगा ही. झाड़ू से दिल्ली को भले ही बुहार लें, पर राजनीति में आने के बाद आप एक पार्टी ज्यादा हैं और आम आदमी कम. आम आदमी तो वोटर है, जिसको और भी गम हैं जमाने में सियासत के सिवा. अन्ना अनशन पे बैठे हैं रालेगण सिद्धी में, क्योंकि दिल्ली की दलगत दलदल में धंसे तो फंसे. कल पोलिंग का पोल खुलनेवाला है. कहते हैं कीचड़ में कमल खिलेगा. मर्जी है आपकी, आप जो भी खिलाएं. कमल खिलता है, मुरझाता है, फिर खिल जाता है. वह टेंपररी है. कीचड़ परमानेंट है, स्थायी है. 66 साल में हमने ये दुर्गत बनायी है. ना काहू से दोस्ती, ना काहू से वैर. धर्मनिरपेक्ष, पंथनिरपेक्ष, वर्णनिरपेक्ष कीचड़.
इसरो के बड़े वैज्ञानिक नंबीनारायणन पर देशद्रोह का मामला झूठा निकला. पर जो अंतरिक्ष में उपग्रह भेजते थे, वह जेल भेजे गये, नौकरी गयी, नाम गया और जीवन भर का काम गया. इंसाफ देर आयद पर दुरुस्त तो कुछ नहीं आयद. दाग अच्छे होते हैं विज्ञापनों में ही. असल जिंदगी में दाग डिटर्जेट से नहीं धुलते. अगर धुल भी जाएं धुलते-धुलते, तो दामन, दामन नहीं रहता. जॉर्ज फर्नाडिस की बेदाग खद्दर पर छींटा पड़ा, तो उस कद्दावर का कद सदचाक हो गया. ताबूत की आखिरी कील तो भ्रम है, पहली का अर्थ ही अर्थी है. तहलका ने भाजपा के लक्ष्मण को चौदह साल का वनवास दिया. भाजपा के एक राम ने तहलका में निवेश भी किया. पार्टी पर जो दाग लगा उसे धोने की पुरजोर कोशिश हुई. इंडिया शाइनिंग की चमकार मगर झूठी थी. दाग गहरे थे. उसके बाद फिर दिल्ली में कमल नहीं खिला. पर यूपीए के 10 वर्षो में कीचड़ इतना गहरा और उर्वर हो चुका है कि अब खिल जाये, तो ताज्जुब नहीं होगा.
आज तहलका के दामन पर जो कीचड़ है, उसे गैरों ने नहीं उछाला. तहलका की तह में जो कीचड़ था, वही सतह पर आया है. अब तेजपाल जितना चाहे टीनोपाल लगा लें. कीचड़ स्थायी है. और उनकी अपनी कमाई है. 2जी, कोयले और कॉमनवेल्थ के आरोप अभी अदालत में साबित नहीं हुए. कीचड़ को सबूत की दरकार नहीं. आरोप ही हाथ के कंगन हैं, आरसी क्या चीज है? अदालत तो जब देती है तब सजा देती है. कीचड़ आजीवन कारावास है. एक बार आरोपों की गिरफ्त में आ गये, तो गये. राजद के लालू बिरसा मुंडा जेल की जद से बाहर आ ही जायेंगे, पर चारे की चिपचिपाहट कहीं नहीं जायेगी. दो दशकों तक बाहर रहे तो कौन सा मिटा पाये? महीनों में छूट जायेंगे, तो कौन सा छुड़ा लेंगे? कांग्रेस को चौरासी कोसता ही रहेगा, चौरासी साल बाद भी. नरेंद्र मोदी के पौबारह हैं, पर ग्यारह वर्षो से एक कीचड़ उनकी पीठ में चिपका है और हर शुभ मुहूर्त पर उनकी सूरत पर चढ़ आता है.
अदालत के फैसले आपको बरी कर सकते हैं, पर धो नहीं सकते. आपके बनाये आयोग आपकी चिट को क्लीन बता सकते हैं, पर इमेज को क्लीन चिट देनेवाला आयोग अभी तक बना ही नहीं. मैल भले मायाजाल हो, पर मुखड़ा तो मलिन हो ही जाता है. आत्मा की कोरी चुनरिया कचोटती भी है, पर सुनता कौन है! इस चोट का, इस कचोट का परमात्मा कुछ नहीं कर पाये. सीता की पवित्रता पर प्रश्न उठा, तो पुरुषोत्तम की मर्यादा पर चिह्न् लगा गया. सीता ने धरती की छाती में उत्तर ढूंढा. राम की गंगा भी मैली हो गयी. हिमालय से अमृत समेटे हरिद्वार से निकल कर पौराणिक गंगा जब वास्तविकता के धरातल पर उतरती है, तो उस पर नया रंग चढ़ता है. समुद्र तक जाते-जाते उसका पानी कीटाणुओं के लिए भी कालापानी हो जाता है.
कोई दीवार आपको साफ दिखेगी नहीं. आपको उस पर बड़े, काले अक्षरों में लिखा मिलेगा, कृपया इस दीवार को गंदा न करें. साफ रखने के लिए गंदा करना पड़ता है. काजल का टीका और क्या होता है? हर कोने में पीक है, बाकी सब ठीक है. जहां भी सफाई है, अस्थायी है. कीचड़ परमानेंट है, स्थायी है. आपके कपड़े टेफ्लॉन-युक्त भले हों, पर कीचड़ से बचने की गारंटी नहीं. जो पहले से लथपथ हैं, उन पर कभी-कभी कीचड़ भी फबता है. अगर आप साफ हैं, तो ज्यादा खतरे में हैं. क्योंकि दूध सी सफेदी पर कीचड़ खिलता-खिलखिलाता है. जब भी निकलियेगा, संभल कर चलियेगा. आगे कीचड़ है. स्थायी है.