डॉ हरि देसाई
निदेशक, सरदार पटेल शोध संस्थान, गुजरात
अखंड भारत के शिल्पी सरदार वल्लभभाई पटेल सवर्ण एवं धार्मिक आरक्षण के घोर विरोधी थे. इसके बावजूद गुजरात में उनके नाम पर सवर्ण पाटीदार आरक्षण आंदोलन चल पड़ा है.
गुजरात के लिए मंगलवार (25 अगस्त) अमंगल रहा. गुजरात की जनता अपने काम में ही व्यस्त रहने के लिए जानी जाती है और शांत प्रजा की उसकी छवि है, किंतु किसी एक मसले को लेकर वह जब आंदोलन करने पर उतारू हो जाती है, तो फिर सत्तापरिवर्तन तक स्थिति को पहुंचाती है.
गुजरात के पटेल यानी पाटीदार समाज खुद को अन्य पिछड़े वर्गो की जातियों (ओबीसी) में शामिल कराने के लिए गत लगभग दो महीनों से आरक्षण रैलियां कर रहा है.
गत 25 अगस्त को अहमदाबाद के जीएमडीसी ग्राउंड पर लाखों की तादाद में पटेल महिला एवं पुरुष उमड़े और अपने लिए ओबीसी आरक्षण की मांग रखी.
उनका आग्रह था कि जिला कलक्टर आयें और रैली आयोजकों के ज्ञापन को स्वीकार करें, किंतु कलक्टर ने रैली में जाने से इनकार कर दिया. तब पाटीदार समाज के 22 वर्षीय नेता हार्दिक पटेल ने ऐलान किया कि अब तो मुख्यमंत्री स्वयं यहां आकर ज्ञापन स्वीकार करें, अन्यथा हम अनशन पर बैठ जायेंगे.
26 अगस्त की सुबह का सूरज गुजरात के विभिन्न इलाकों से हिंसक वारदातों और पुलिस के अत्याचारों के अशुभ समाचार लेकर आया. गुजरात की जनता शांति का माहौल बनाये रखने के लिए मशहूर है, लेकिन जब किसी मसले को लेकर आंदोलन करने की ठान लेती है, तो मुख्यमंत्री की बलि तय है.
1973 के नवनिर्माण आंदोलन, जो कि जयप्रकाश नारायण की प्रेरणा से हुआ था, ने चीमनभाई पटेल और आरक्षण विरोधी आंदोलन ने माधव सिंह सोलंकी की कुर्सी छीनी थी.
आम तौर पर समृद्ध एवं सवर्ण मानी जानेवाली पटेल जाति को एकाएक क्या हुआ कि वह अपने आपको पिछड़ों में शामिल कराने के लिए आंदोलन के लिए विवश हुई और वह भी जब पटेल समाज की मुख्यमंत्री की कैबिनेट में अन्य छह पटेल मंत्री हैं और राज्य के कुल 182 विधायकों में से 44 पटेल विधायक हैं! आक्रोश काफी समय से पनप रहा था, किंतु आरक्षण के मसले ने उसे ज्वालामुखी बन कर बाहर आने को विवश किया.
गुजरात की 6 करोड़ 24 लाख की जनसंख्या में से पटेलों की तादाद 1.5 करोड़ के निकट है और सामाजिक, शैक्षणिक एवं व्यापार-उद्योग के क्षेत्र में भी उनका बोलबाला है. उत्तर गुजरात के मेहसाना जिले में कडवा पटेलों की जनसंख्या अधिक है, लेकिन वहीं की मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल लेउवा पटेल हैं.
यहां से ही कडवा पटेल समाज के उनके साथी मंत्री एवं प्रतिद्वंद्वी नितिन पटेल भी आते हैं. मेहसाना एवं उत्तर गुजरात के अन्य जिलों में प्रभाव रखनेवाले आंजना पटेलों को हालांकि मंडल कमीशन ने सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ी जातियों (ओबीसी) में शामिल किया हुआ है.
वैसे भी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में गुजरात के पाटीदार उत्तर-भारत के कुर्मी क्षत्रिय से अपना नाता जोड़ते हैं.
दक्षिण में महाराष्ट्र के मराठा समाज एवं आंध्र के रेड्डी से संबंध रखते हैं. हार्दिक पटेल ने अपने आपको किसी भी राजनीतिक दल से अलग रखा है, फिर भी बिहार के नीतीश कुमार से अपनत्व जताया.
कुर्मी समाज के कुमार ने भी पाटीदार आरक्षण को न्यायोचित ठहराते हुए अपना समर्थन घोषित किया है. गौरतलब है कि अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महासभा के दो आदर्श पुरुषों में सरदार पटेल एवं छत्रपति शिवाजी हैं.
उत्तर प्रदेश, बिहार एवं अन्य राज्यों में कुर्मी को ओबीसी आरक्षण दिया गया है, उसी तर्ज पर पटेल समाज को ओबीसी आरक्षण दिया जा सकता है.
महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में तो पटेलों के साथ ही लेवा पटेलों को भी ओबीसी का लाभ केंद्रीय स्तर पर मिला है. साथ ही मोदी सरकार के प्रयासों और विपक्ष के सहयोग से गुजरात का आरक्षण कोटा तमिलनाडु की तरह बढ़ाया जा सकता है.
देखना यह है कि आनेवाले दिनों में इस आरक्षण को लेकर क्या होगा?
पटेल समाज में फूट डालने के सभी प्रयास विफल होते हुए नजर आने से भाजपा के कुछेक विधायकों ने खुल कर राज्य सरकार और आलाकमान के खिलाफ बोलना शुरू किया है.
अपने समाज के बलबूते पर चुने गये इन विधायकों को समाज के साथ रहने में ही अपनी भलाई नजर आती है. हो सकता है विगत आंदोलनों की भांति आरक्षण आंदोलन के आक्रोश को शांत करने के लिए राज्य में नेतृत्व परिवर्तन का निर्णय भाजपा आलाकमान को लेना पड़े.
वैसे भी विगत कुछेक महीनों से मुख्यमंत्री आनंदीबेन को दिल्ली में कैबिनेट मंत्री बनाये जाने और अंबानी उद्योग समूह के दामाद एवं वर्तमान मंत्री सौरभ पटेल को गुजरात के मुख्यमंत्री पद का दायित्व सौंपे जाने की चर्चा चल रही है.