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व्यवस्था ने मजदूरों को बना दिया पशु
देश के तमाम लोगों ने अनाजों और साग-सब्जियों की मंडियां तो देखी होंगी, लेकिन क्या किसी ने मजदूरों की मंडी देखी है? देश के हर छोटे-बड़े शहर में मजदूरों की मंडी रोज सजती है. अलस्सुबह. जिस समय तक ज्यादातर लोग सोकर उठते भी नहीं होंगे, आसपास के गांव के लोग या शहरी मजदूर खुद को […]
देश के तमाम लोगों ने अनाजों और साग-सब्जियों की मंडियां तो देखी होंगी, लेकिन क्या किसी ने मजदूरों की मंडी देखी है? देश के हर छोटे-बड़े शहर में मजदूरों की मंडी रोज सजती है.
अलस्सुबह. जिस समय तक ज्यादातर लोग सोकर उठते भी नहीं होंगे, आसपास के गांव के लोग या शहरी मजदूर खुद को इस मंडी में दिहाड़ी पर बिकने के लिए पेश करते हैं. इस मंडी में कुली, रेजा, कुशल- अकुशल सभी प्रकार के मजदूर मिल जायेंगे.
इनको बेचने और खरीदने के लिए इस मंडी में भी दलालों का बोलबाला है. जिन्हें जितनी संख्या में जितने दिनों के लिए मजदूर की जरूरत होती है, वे उसी मुताबिक इन दलालों से संपर्क करते हैं और तभी शुरू होती है मजदूरों की खरीद-फरोख्त. इन्हें ट्रकों में जानवरों की तरह भर कर कार्यस्थल पर ले जाया जाता है. सवाल है कि क्या मजदूरों को हमारी व्यवस्था ने पशु बना दिया है?
अंबिका दास, जमशेदपुर
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