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गलती करनेवाले अंपायर भी दंडित हों

अनुज कुमार सिन्हा चेन्नई सुपर किंग और मुंबई इंडियन के बीच खेले गये अ़ाइपीएल के मैच में अंपायर इलिंगवर्थ ने स्मिथ को गलत तरीके से एलबीडब्ल्यू आउट दिया. इसका नतीजा भुगतना पड़ा चेन्नई की टीम को.ठीक है अंपायर भी इंसान हैं, गलती हो सकती है. यहां भी हुई. मैच के बाद शालीन तरीके से चेन्नई […]

अनुज कुमार सिन्हा

चेन्नई सुपर किंग और मुंबई इंडियन के बीच खेले गये अ़ाइपीएल के मैच में अंपायर इलिंगवर्थ ने स्मिथ को गलत तरीके से एलबीडब्ल्यू आउट दिया. इसका नतीजा भुगतना पड़ा चेन्नई की टीम को.ठीक है अंपायर भी इंसान हैं, गलती हो सकती है. यहां भी हुई. मैच के बाद शालीन तरीके से चेन्नई के कप्तान धौनी ने टिप्पणी की और कहा कि स्मिथ को गलत तरीके से आउट दिया गया. इसके एवज में धौनी पर जुर्माना कर दिया गया. यह गलत है.

खिलाड़ी इसका विरोध नहीं कर पाते. अनुशासन का डंडा चलता है. मैच फी में कटौती कर दी जाती है. सवाल यह उठता है कि अंपायर क्या दूध के धुले हुए हैं. उनका एक गलत फैसला किसी खिलाड़ी का भविष्य चौपट कर सकता है, किसी टीम को हरा सकता है. दुनिया में अनेक ऐसे अंपायर हुए हैं जो गलत फैसला के लिए बदनाम रहे हैं.

आइपीएल बहुत लोकप्रिय हो चुका है. नयी-नयी तकनीक आ चुकी है. क्या दुविधा होने पर अंपायर इन तकनीकों का उपयोग नहीं कर सकते हैं. एक खिलाड़ी सच बोलने पर दंडित हो सकता है, लेकिन एक अंपायर गलत फैसला देकर भी मस्ती में रहेगा, उसे कुछ नहीं होगा. गलत फैसले देनेवाले अंपायरों को भी दंडित किया जाना चाहिए. पैसा कटना चाहिए.

अगर बहुत ज्यादा गलती करें, तो बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए. यही क्रिकेट के लिए बेहतर होगा. आइपीएल में अंपायर देखते हैं कि खिलाड़ी बहुत पहले क्रीज में पहुंच चुका है, लेकिन रन आउट की अपील होने पर थर्ड अंपायर को रेफर कर देते हैं. अपने माथे पर इलजाम नहीं लेना चाहते. तो क्या यही अंपायर एलबीडब्ल्यू में संशय होने पर थर्ड अंपायर को रेफर नहीं कर सकते थे. स्मिथ के मामले में गेंद लेग स्टंप के बाहर जा रही थी.

दुनिया देख रही थी. एक तो गलत आउट दिया, उसके बाद आलोचना करने पर खिलाड़ी को दंड भी मिला. इसका संदेश तो यही है कि अंपायर जो भी करता है, उसे उसका अधिकार है. कोई कुछ नहीं बोल सकता. अनुशासनहीनता होगी. यह क्रिकेट का खेल है या तानाशाही.

गलती होने के बाद जब रिप्ले में अंपायर ने देख लिया कि उनका फैसला गलत था, तो सार्वजनिक तौर पर गलती स्वीकारने से अंपायर छोटा नहीं हो जाता. आइपीएल कमेटी, बीसीसीआइ या आइसीसी को भी ऐसी घटना के बाद भविष्य की क्रिकेट के लिए सबक लेनी चाहिए. नीतिगत बदलाव करना हो, तो करें. जब तकनीक है, तो उसका अधिक से अधिक उपयोग हो, ताकि गलती होने की आशंका नहीं के बराबर रहे. जुर्माना लगा कर मुंह बंद कराना उचित नहीं है.

संभव हो कि मैदान में लगातार गलती करने के बाद अंपायर का सामना किसी सनकी खिलाड़ी से पड़ जाये और वह बगैर अपने भविष्य के बारे में सोचे मैदान में ही अंपायर की फजीहत कर दे. क्रिकेट के लिए ऐसा दिन कभी न आये, इसकी व्यवस्था करनी होगी.

ऐसी बात नहीं है कि पहली बार किसी अंपायर ने गलती की है या पहली बार किसी खिलाड़ी को आर्थिक दंड भुगतना पड़ा है. इससे बड़ी सजा भी मिली है. लेकिन अब दिन बदल चुके हैं. एक जमाना था, जब तकनीक इतनी समृद्ध नहीं थी. अंपायर को जो मन किया, कर दिया, कोई बोलता नहीं था.

अब पलक झपते ही मैदान में लगाया गया बड़ा-सा स्क्रीन अंपायर की गलती की पोल खोल देता है. अगर मैदान में मौजूद अंपायर थर्ड अंपायर की ज्यादा सहायता लेंगे, तो क्या इससे उनकी प्रतिष्ठा खत्म हो जायेगी. यह सब तो बेहतरी के लिए हो रहा है. अपील के बाद अंतिम फैसला देने के पहले क्या एक मिनट बड़े स्क्रीन की ओर अंपायर नहीं देख सकते. अब खेल में पैसा भी ज्यादा है. हार और जीत का असर ज्यादा होता है. इसलिए कोई हारना नहीं चाहता. करोड़ों रुपये का मामला होता है.

समय आ गया है जब क्रिकेट की इन कमियों को दूर करें. गलत फैसले देनेवाले अंपायरों को भी दंड के घेरे में लायें. मैच के बाद इस बात का विश्‍लेषण हो कि कहां-कहां अंपायरों ने गलती की, कहां खिलाड़ियों ने अनुशासनहीनता की. इस पर चर्चा हो. ऐसा कर क्रिकेट के खेल को और बेहतरीन-स्वस्थ बनाया जा सकता है ताकि गलत फैसले न हो.

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