जगह-जगह सरकार द्वारा चलाये जा रहे ‘स्कूल चलें, चलायें अभियान’ से नामांकन में कुछ हद तक तेजी आ सकती है, लेकिन शिक्षा प्रणाली में कभी सुधार नहीं हो सकता है. इसका एकमात्र वजह यह है कि इस अभियान के तहत लोगों को अपने बच्चों को साक्षर करने के लिए कहा जा रहा है, न कि शिक्षित बनाने के लिए.
सबसे अहम बात तो यह है कि बच्चे सरकार स्कूलों में दाल-भात, अंडा खाने के लिए जाना चाहते हैं, न कि पठन-पाठन के लिए. सरकार के पास इसके सिवाय दूसरा कोई विकल्प ही नहीं है, जिससे बच्चों में पठन-पाठन के प्रति रुचि बढ़े.
शिक्षा शब्द का प्रयोग कर सरकार शिक्षा प्रणाली में सुधार के बजाय लुका-छिपी का खेल खेल रही है. गौर करनेवाली बात यह है कि सरकारी पदाधिकारियों के बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते. इसलिए नीतियां भी वैसी ही बनती हैं.
विकास कुमार भकत, पोटका, पू सिंहभूम