हेम श्रीवास्तव
बरियातू, रांची
बीते दस सालों में देश की राजनीतिक क्षितिज पर जिन चुनिंदा नेताओं ने अपनी चमक बिखेरी है, मोदी उनमें से एक हैं. संभवत: वे प्रखरतम भी हों. अपना यह स्थान उन्होंने एक दिन में या किसी चमत्कार स्वरूप नहीं पाया है, बल्कि पूरे होमवर्क के साथ हासिल किया है.
उन्होंने गुजरात में जिस तरह का विकास मॉडल पेश किया, उसकी सराहना देश ही में नहीं, विदेशों में भी हुई. कुछेक अप्रिय घटनाओं को छोड़ दें, तो वह राज्य सुशासन की श्रेणी में आ सकता है. एक दमदार और ईमानदार राज्याध्यक्ष के सारे गुणों से लैस होने और प्रखर राष्ट्रवादी होने के बावजूद ऐसा महसूस होता है कि नरेंद्र मोदी अभी राष्ट्र नेता होने की राह के राही हैं.
राष्ट्रवादी होना और राष्ट्रनेता होना दो अलग–अलग बातें हैं. एक सक्षम मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री पद तक के सफर को बहुत छोटा भी नहीं कह सकते और यह सफर मोदी तय करना चाहते हैं. उनके भाषणों को ध्यान से सुनें, तो उनकी राजनीतिक अवचेतना के केंद्र में गुजरात ही प्रतिध्वनित होता है.
एक भारत भक्त की भी छवि सुस्पष्ट है, पर एक विशुद्ध राष्ट्रीय नेता, जिसकी दरकार है, समय से थोड़ा पीछे नजर आता है. वैसे राजनीतिक काबिलियत और काम के प्रति उनकी ईमानदारी में रंचमात्र भी संदेह नहीं है. उनके भाषण दिनोंदिन केंद्रीय सत्ता पर आमने–सामने के प्रहार को तीव्र करते दिखते हैं.
मोदी को यहीं पर सावधान रहने की जरूरत है. मनमोहन सिंह को कहीं न कहीं अपने मृदुभाषी होने का फायदा भी मिलेगा. यदि मोदी अपनों के बुने भ्रमजाल में फंसे, तो उनके राजनीतिक भविष्य को चोट लगनी तय है. अच्छा होता कि वे सभी राष्ट्रीय मुद्दों को बराबर तरजीह देते. कहीं सत्तासीन दल पर हमला भर करने के लिए उनका इस्तेमाल तो नहीं हो रहा? आने वाला वक्त ही यह बता पायेगा.