सरकारी तंत्र की पूरी व्यवस्था को संभालने की जिम्मेदारी वहां के मुखिया यानी मुख्यमंत्री तथा मंत्रियों की होती है. आज राज्य गठन को 13 साल से भी ज्यादा हो गये, पर झारखंड की स्थिति पहले से भी बदतर हो गयी है.अपराध, हत्या, भ्रष्टाचार और अराजकता के मामले दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे हैं. राज्य गठन के वक्त लोगों के चेहरे पर एक खुशी थी कि अब हमारे खनिज, जल, जंगल , जमीन विश्व के मानचित्र पर एक अमिट छाप छोड़ेंगे. अब हम तरक्की के मार्ग पर चलेंगे.
लेकिन हुआ ठीक इसका उल्टा. हमने जिन हुक्मरानों के हाथों अपना राज्य सौंपा, आज वही दुर्योधन बन कर इसका चीरहरण कर रहे हैं और जनता सब कुछ लुटता देख बेबस है. भाजपा यहां सत्ता में ज्यादा रही, लेकिन उसने भी राज्य का बड़ा भला नहीं किया. अब चुनावी मौसम में सियासी ड्रामेबाजी कर रही है.
सुनील तिवारी, ई-मेल से