महिलाओं के सशक्तीकरण कार्यक्रमों में यह बात अक्सर कही जाती है कि जब एक लड़की पढ़ती है, तो सिर्फ उसका जीवन नहीं बदलता, बल्कि पूरा परिवार और समाज मजबूत बनता है.इसलिए लड़कियों की शिक्षा पर खास जोर देने के कई सरकारी कार्यक्रम चल रहे हैं. कहीं उन्हें ‘विद्या धन’ और विशेष वजीफा दिया जा रहा है, तो कहीं साइकिल, पोशाक, सैनिटरी नैपकिन वगैरह. इसी सिलसिले के तहत झारखंड में भी एक अच्छी घोषणा हुई थी. साल 2012-13 में राज्य में नौवीं से लेकर 12वीं तक की छात्राओं को मुफ्त किताबें, पोशाक और सोलर लैंप देने का एलान किया गया था.
इसके लिए बजट में 20 करोड़ रुपये का प्रस्ताव रखा गया था और पांच करोड़ की रकम भी मंजूर कर दी गयी थी. लेकिन, अफसोस की बात है कि दो साल बाद भी इस घोषणा को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका है. पूरी योजना लालफीताशाही में फंस कर रह गयी है. इसकी फाइल विभागों के चक्कर काट रही है. अगर इस योजना पर काम हुआ होता, तो लगभग ढाई लाख लड़कियों को इसका फायदा हुआ होता.
यानी, उन्हें आगे बढ़ने में मदद मिलती. सामाजिक भेदभाव की वजह से लड़कियों की शिक्षा को लड़कों के मुकाबले दूसरी प्राथमिकता पर रखा जाता है. अगर लड़कियों को सरकार की ओर विशेष मदद मिलती है, तो उनके घरवाले उन्हें पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित होते हैं. फिर लोगों के पास यह बहाना नहीं रह जाता कि गरीबी के इस हाल में लड़कियों को पढ़ाने के लिए पैसा कहां से लायें? कई बार लोग खानापूरी के लिए लड़कियों का दाखिला तो करा देते हैं, पर उन्हें कॉपी-किताबों के लिए तरसना पड़ता है. अगर मुफ्त में किताब मिले, तो लड़कियों को इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा. सोलर लैंप भी बहुत जरूरी है, क्योंकि देहात के इलाकों में बिजली संकट बहुत गंभीर है. बहुत से गांवों में बिजली पहुंची नहीं है. बिजली पहुंची है, तो रहती नहीं है.
अगर सोलर लैंप होगा, तो वे बेफिक्र होकर रात में पढ़ाई कर सकेंगी. हाई स्कूल और इंटर में, घर में खुद पढ़ाई किये बिना बेड़ा पार होना मुश्किल होता है. सोलर लैंप इसमें काफी मददगार हो सकता है. सरकार को लालफीताशाही खत्म करते हुए इस पर तुरंत अमल करना चाहिए.