किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में सत्ता पक्ष और विपक्ष एक गाड़ी के दो पहिये के समान हैं. लोकतंत्र की जीत के लिए यह पहली शर्त है कि इसके दोनों पहियों का स्वस्थ और गतिमान होना निहायत जरूरी है.
लोकतंत्र की सफलता दोनों पक्षों की सक्रि यता पर निर्भर करती है. यदि एक भी पहिया अपनी राह से भटक जाये, तो देश में राजनीतिक शून्यता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है. इससे लोकतंत्र अपने वास्तविक उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रहेगा. दरअसल कई दशकों से भारतीय लोकतंत्र में एक गलत परंपरा की शुरु आत हुई है.
यहां केंद्रीय और राज्य स्तर पर सत्ता पक्ष में बैठे लोग कितनी भी अच्छी नीतियां देशहित में क्यों न बना लें, विपक्ष उसके विरोध में सत्र में हो-हल्ला करता ही है. गलत नीतियों, विचारों का विरोध तो जरूरी है, परंतु हितकारी नीतियों पर जबरदस्ती विरोध कर सत्र का समय व्यर्थ करना समझ से परे है.
सुधीर कुमार, गोड्डा