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उचित व्यापारिक निर्णय

भारत ने 16 देशों के क्षेत्रीय व्यापारिक समझौते में शामिल नहीं होने का निर्णय किया है. सदस्य देशों के प्रमुखों की बैठक में इस घोषणा के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने, मुक्त व्यापार और नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का पक्षधर रहा है. इस समझौते पर […]

भारत ने 16 देशों के क्षेत्रीय व्यापारिक समझौते में शामिल नहीं होने का निर्णय किया है. सदस्य देशों के प्रमुखों की बैठक में इस घोषणा के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने, मुक्त व्यापार और नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का पक्षधर रहा है. इस समझौते पर सात वर्षों से अधिक समय से चले विचार-विमर्श में हमने बढ़-चढ़ कर भागीदारी की है.
इस अवधि में हुए वैश्विक परिवर्तनों के अनुसार अन्य देश भारत की चिंताओं को दूर करने तथा संतुलित आयात-निर्यात की नीति बनाने में असफल रहे हैं. मसौदे में भारत को आसियान, जापान और दक्षिण कोरिया से आयातित लगभग 90 प्रतिशत वस्तुओं से तथा चीन, ऑस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैंड से आयातित 74 प्रतिशत से अधिक वस्तुओं से शुल्क हटाने या उनमें बड़ी कटौती का प्रस्ताव था.
यदि भारत इसे स्वीकार कर लेता, तो घरेलू उत्पादन के चौपट होने तथा बाजार में दूसरे देशों की चीजों की भरमार होने में बहुत देर नहीं लगती. चीनी सामानों से हमारे बाजार भरे पड़े हैं. हमारे कुल व्यापार घाटे का 50 प्रतिशत हिस्सा चीन से आयात की वजह से है. इसे नियंत्रित करने के लिए भारत ने कई चीनी उत्पादों पर शुल्क बढ़ाया है, ताकि घरेलू उद्योग को संरक्षण मिल सके. चीन के अलावा समझौते के 10 अन्य देशों से भी निर्यात की अपेक्षा आयात अधिक होता है.
इस प्रावधान के बावजूद सेवा क्षेत्र में भारत के लिए विभिन्न देशों में बाजार उपलब्ध कराने के अनुरोध पर सकारात्मक रवैया नहीं अपनाया गया. दस देशों के संगठन आसियान, जापान और दक्षिण कोरिया के साथ मुक्त व्यापार के मौजूदा समझौतों के अनुभव भी भारत के लिए बहुत उत्साहवर्द्धक नहीं रहे हैं. इनके लागू होने के बाद से हमारा व्यापार घाटा बढ़ता ही जा रहा है.
एशियन डेवलपमेंट बैंक के अनुसार, मुक्त व्यापार समझौतों को उपयोग में लाने की भारत की दर केवल 25 प्रतिशत है, जो एशिया में सबसे कम है. नुकसान के अंदेशे वाले उद्योगों के लिए संरक्षण, सेवाओं में अवरोधों को कम करने तथा कुशल कामगारों के लिए अधिक वीजा देने जैसे उपायों के सहारे भारत के भरोसे को जीत कर 16 सदस्यीय व्यापार समझौते को उपयोगी बनाया जा सकता था. आज अनेक कारणों से वैश्विक आर्थिक व वित्तीय वातावरण में उथल-पुथल है. इसमें आप्रवासन पर भी ग्रहण लग रहा है. ऐसी चिंताओं को दूर करने का प्रयास जरूरी है. भारत के सामने एक विकल्प अपने प्रमुख बाजारों के साथ मुक्त व्यापार समझौते करने का भी है. यूरोपीय संघ, अमेरिका और यूएइ हमारे वस्त्र निर्यात पर 30 प्रतिशत तक शुल्क लगाते हैं, पर प्रतिस्पर्द्धियों को पूरी छूट है.
समुचित समझौते से इस स्थिति में बदलाव हो सकता है. बहरहाल, क्षेत्रीय व्यापार समझौते में भी शामिल होने का रास्ता खुला है तथा भविष्य में अपने हितों के अनुरूप प्रावधान जोड़ने की गुंजाइश बनी हुई है. हमें अपने उत्पादों की गुणवत्ता और निर्यात पर अधिक जोर देने की जरूरत है.

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