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बढ़ती नारी भागीदारी

चुनाव जैसी महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया के आकलन में हार-जीत और समीकरणों के अलावा कई अन्य आयाम होते हैं, जिनके आधार पर भारत की बदलती तस्वीर को देखा जा सकता है. ऐसा ही एक आयाम हैं महिला मतदाताओं की बढ़ती भागीदारी. मौजूदा आम चुनाव में 13 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में पुरुषों से अधिक संख्या […]

चुनाव जैसी महत्वपूर्ण लोकतांत्रिक प्रक्रिया के आकलन में हार-जीत और समीकरणों के अलावा कई अन्य आयाम होते हैं, जिनके आधार पर भारत की बदलती तस्वीर को देखा जा सकता है. ऐसा ही एक आयाम हैं महिला मतदाताओं की बढ़ती भागीदारी. मौजूदा आम चुनाव में 13 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में पुरुषों से अधिक संख्या में महिलाओं ने मतदान किया है.

ये प्रदेश हैं- केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, बिहार, मणिपुर, मेघालय, पुद्दुचेरी, गोवा, अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मिजोरम, दमन और दीव तथा लक्षद्वीप. पूरे देश का हिसाब लें, तो पुरुष और महिला मतदाताओं की भागीदारी का अंतर भी अब मामूली रह गया है.
साल 2009 में यह आंकड़ा नौ फीसदी था, जबकि 2014 के चुनाव में यह अंतर 1.4 फीसदी रह गया था. 2019 में यह अंतर महज 0.4 फीसदी है. गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक ऐसे राज्य रहे हैं, जहां पुरुषों ने महिलाओं से बहुत अधिक मतदान किया है, लेकिन यह संतोषजनक है कि इन राज्यों में भी पिछले चुनाव की तुलना में महिलाओं की भागीदारी में बढ़त रही.
इन आंकड़ों में उन राज्यों की संख्या बढ़ सकती है, जहां महिलाओं की अपेक्षाकृत अधिक भागीदारी रही है. साल 2014 में ऐसे राज्यों की कुल संख्या 16 रही थी. ऐसे समय में, जब देश के अनेक हिस्सों में लिंगानुपात का स्तर चिंताजनक है तथा कार्य बल में भी महिलाओं की संख्या बहुत कम है, मतदान में उनकी बढ़त एक स्वागतयोग्य संकेत है. यह हमारे लोकतंत्र के मजबूत होने का सबूत है.
साल 1962 के तीसरे आम चुनाव में 46.6 फीसदी महिलाओं ने मतदान किया था, जबकि पुरुषों का आंकड़ा 63.3 फीसदी रहा था. भले ही लगभग 17 फीसदी के अंतर को 0.4 फीसदी लाने में छह दशक का समय लगा है, पर यह हमारी लोकतांत्रिक यात्रा की विशिष्ट उपलब्धि के रूप में रेखांकित होना चाहिए. राजनीतिक बराबरी का यह मोड़ सामाजिक और आर्थिक बराबरी के लिए ठोस आधार बन सकता है.
महिला, ट्रांसजेंडर और दिव्यांग मतदाताओं को प्रोत्साहित करने के लिए चुनाव आयोग ने बड़ा अभियान चलाया, जिसका शानदार परिणाम हमारे सामने है, परंतु हमारी राजनीति में अब भी पुरुषों का बड़ा वर्चस्व है. इस बार कुल आठ हजार उम्मीदवारों में महिलाओं की संख्या आठ सौ भी नहीं है. संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के हिसाब से भारत 193 देशों की सूची में 149वें पायदान पर है. इस मामले में हम बांग्लादेश, पाकिस्तान और सऊदी अरब से भी पीछे हैं.
मौजूदा लोकसभा में सिर्फ 66 महिला सदस्य हैं. निश्चित रूप से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए यह बेहद चिंताजनक स्थिति है. एक ओर आज हर क्षेत्र में स्त्रियां आगे बढ़ रही हैं, वहीं उनके विरुद्ध अपराध भी बढ़ रहे हैं. पढ़ाई से लेकर पेशेवर जीवन तक तथा पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर उन्हें बाधाओं और चुनौतियों से जूझना पड़ता है. लोकतंत्र और विकास की गति को बेहतर करने के लिए महिलाओं की सहभागिता अनिवार्य है.

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