बीते दो दशकों में स्वास्थ्य के मोर्चे पर बड़ी उपलब्धियों के बाद भी भारत उन विकासशील देशों में शुमार है, जो स्वास्थ्य सेवा पर बहुत कम खर्च करते हैं.
केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा इस मद में कुल घरेलू उत्पादन का 1.13 फीसदी हिस्सा ही लगाया जाता है. इस कारण स्वास्थ्य सेवा पाने के लिए 62 फीसदी खर्च लोगों की जेब से आता है. सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों की कमी और कुप्रबंधन के चलते निजी क्षेत्र के डॉक्टरों और अस्पतालों के मनमाने हिसाब से रोगियों को इलाज के लिए मजबूर होना पड़ता है.
देश में 95 फीसदी से अधिक चिकित्सा सुविधा केंद्र ऐसे हैं, जहां कार्यरत लोगों की संख्या पांच से कम है. दूर-दराज और देहात को छोड़ दें, शहरी इलाकों में भी सरकारी अस्पताल बदहाली और लापरवाही के चंगुल में हैं. पांच सरकारी स्तर पर और निजी बीमा कंपनियों की अनेक उपचार योजनाएं भी चलती रही हैं, पर इनमें समुचित सामंजस्य न होने से सेवाओं की गुणवत्ता सुधारने में समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है. कुछ समय पहले तक आबादी के बहुत बड़े हिस्से को बीमा सुरक्षा भी मयस्सर नहीं थी. इलाज के बोझ से सालाना करीब पांच करोड़ लोगों के गरीबी रेखा से नीचे चले जाने का भयावह आंकड़ा भी हमारे सामने है.
गरीबी और कम आमदनी से जूझती जनसंख्या के लिए यह स्थिति अभिशाप ही है. इसे बेहतर करने के लिए पिछले चार सालों में केंद्र सरकार ने योजनाओं और कार्यक्रमों का ऐसा सिलसिला चलाया है, जिससे स्वास्थ्य सेवा की समूची व्यवस्था को समेकित रूप से सक्षम बनाया जा सके. नीति आयोग के तीन वर्ष के एजेंडा कार्यक्रम के मुताबिक सरकारी नेतृत्व में स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार तथा निजी क्षेत्र के साथ मिल कर इसके विस्तार के प्रयास अच्छे परिणाम देने लगे हैं.
आयुष्मान भारत के नाम से प्रचलित प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना नीतिगत पहल का प्रमुख चरण है. इसके तहत डेढ़ लाख स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना कर सेवाओं को देश के हर कोने तक ले जाना है ताकि बीमारियों का इलाज समय रहते हो जाए. इसका दूसरा आयाम बीमा के माध्यम से उपचार के बड़े खर्चों के बोझ से गरीब और कम आमदनी के लोगों को छुटकारा दिलाया जाए. इस योजना के दायरे में लगभग दस करोड़ परिवारों को लाया गया है और उन्हें सैकड़ों बीमारियों के इलाज के आर्थिक भार की चिंता से मुक्त किया गया है.
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण स्थापित किया जाना इसी कड़ी में एक अहम कदम है. मिशन इंद्रधनुष के तहत टीकाकरण में तेजी, आयुष पर ध्यान, पोषण कार्यक्रम, स्वच्छ भारत अभियान, ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के प्रयास भी स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने की नीति के अंग हैं.
ठोस स्वास्थ्य प्रणाली बनाने और हर व्यक्ति तक उसे पहुंचाने में अभी काफी वक्त लग सकता है, पर एक समेकित नीतिगत और व्यावहारिक पहल इस दिशा में हो चुकी है. निवेश, निर्देश और नेतृत्व से स्वस्थ भारत के लक्ष्य को पाने की आशा अब बलवती हो चली है.