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महंगाई कम होने के कारण

डाॅ. अश्विनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, पीजीडीएवी कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय ashwanimahajan@rediffmail.com यूपीए शासन के दौरान महंगाई दर दो अंकों तक पहुंच गयी थी, अब थम चुकी है. उपभोक्ता महंगाई लगातार तीसरे महीने घटकर, अक्टूबर में 3.31 प्रतिशत पहुंच गयी है. सितंबर में यह 3.77 प्रतिशत रिकॉर्ड की गयी थी. हालांकि, अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की बढ़ती […]

डाॅ. अश्विनी महाजन

एसोसिएट प्रोफेसर, पीजीडीएवी कालेज, दिल्ली विश्वविद्यालय

ashwanimahajan@rediffmail.com

यूपीए शासन के दौरान महंगाई दर दो अंकों तक पहुंच गयी थी, अब थम चुकी है. उपभोक्ता महंगाई लगातार तीसरे महीने घटकर, अक्टूबर में 3.31 प्रतिशत पहुंच गयी है. सितंबर में यह 3.77 प्रतिशत रिकॉर्ड की गयी थी.

हालांकि, अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की बढ़ती कीमतों के चलते ईंधन और बिजली के वर्ग में महंगाई सितंबर के 8.47 प्रतिशत से बढ़कर, अक्टूबर में 8.55 प्रतिशत हो गयी. खाद्य पदार्थों में, खासकर फल-सब्जी की कीमतों में 8.06 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई, जबकि सितंबर में इस वर्ग में 4.15 प्रतिशत गिरावट दर्ज हुई थी. खाने-पीने की चीजों, जैसे अनाज, अंडे, दूध और दुग्ध उत्पादन सरीखे खाद्य पदार्थों में सर्वाधिक गिरावट देखने को मिल रही है.

महंगाई में पिछले 4 सालों से ज्यादा समय से गिरावट हो रही है. यूपीए के शासनकाल में खाद्य पदार्थों में सर्वाधिक महंगाई देखने को मिली थी. क्या कारण रहे कि उस समय महंगाई बढ़ रही थी और एनडीए के शासनकाल में नीचे आती गयी है? बढ़ती महंगाई आम आदमी का जीवन दूभर करती है. सीमित आमदनी और संसाधनों वाले लोगों के लिए महंगाई जीवन-मरण का प्रश्न बनती है.

इसके कारणों में, पहला कारण सरकारों की वित्तीय अनुशासन बरतने में असफलता है. बढ़ते घाटे की भरपायी, नोट छापकर या उधार लेकर होती है.

अतिरिक्त नोट छापने से महंगाई बढ़ती है व कर्ज से अगली पीढ़ियों पर ब्याज का बोझ बढ़ता है. महंगाई बढ़ने का दूसरा कारण कृषि का उत्पादन कम होना है. कृषि पदार्थों की कमी खाद्य मुद्रास्फीति को जन्म देती है. खाद्य मुद्रास्फीति वृद्धि द्वारा जीवन लागत बढ़ने के कारण देश में मजदूरी भी बढ़ जाती है और उद्योगों की प्रतिस्पर्धा शक्ति प्रभावित होती है. महंगाई का तीसरा कारण है भ्रष्टाचार. इससे बड़ी मात्रा में कालेधन का प्रसार होता है व रियल इस्टेट आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाती है.

यूपीए के शासनकाल में यह मंहगाई बढ़ती गयी. साल 2009-10 में राजकोषीय घाटे का जीडीपी का 6.4 प्रतिशत और साल 2011-12 में 5.7 प्रतिशत होना इसका कारण था. यह आंकड़ा साल 2017-18 में 3.2 प्रतिशत पर आ गया है. अतिरिक्त करेंसी का सृजन न्यूनतम रहा. विमुद्रीकरण के चलते करेंसी का बाजार में विस्तार और कम हो गया.

यह महंगाई में गिरावट का मुख्य कारण बना. वर्ष 2015 के बाद कृषि उत्पादन में भी वृद्धि हुई. खाद्यान उत्पादन साल 2014-15 के 257 मिलियन टन से बढ़कर साल 2017-18 में 277.5 मिलियन टन हो गया है. दालों के उत्पादन में भी वृद्धि हुई और साल 2014-15 के 184 लाख टन से बढ़कर, दालों का कुल उत्पादन साल 2017-18 में 240 लाख टन पहुंच गया है.

इससे दालों की कीमतों में भारी कमी हुई. फल-सब्जी का भी उत्पादन बढ़ा और इससे न केवल गरीबों की क्रय क्षमता बढ़ी, बल्कि खाद्य मुद्रास्फीति में भी भारी कमी आयी. तिलहनों के उत्पादन में भी खासी वृद्धि देखने को मिली और तिलहन उत्पादन साल 2014-15 के 298 लाख टन से बढ़कर साल 2017-18 में 313 लाख टन हो गया है.

यूपीए शासन काल में स्थिर औद्योगिक उत्पादन में कई वर्षों की गिरावट के बाद, साल 2015 में वृद्धि देखने को मिली. यूपीए शासन के दौरान कोयला, 2-जी, काॅमनवेल्थ आदि घोटालों के चलते देश में कालेधन में वृद्धि हुई थी.

कालेधन के कारण खर्चे बढ़े और महंगाई बढ़ती गयी. एनडीए शासनकाल में घोटालों पर अंकुश लगा, साथ ही साथ कालेधन का विस्तार थमा और विमुद्रीकरण से सारा कालाधन बैंकिंग प्रणाली में स्थानांतरित हो गया. सरकारी सख्ती से लोगों में टैक्स भरने की प्रवृत्ति में भी वृद्धि हुई. साल 2013-14 में जहां केवल 3.31 करोड़ व्यक्तियों ने विवरणी दाखिल की थी, साल 2017-18 में यह संख्या बढ़कर 5.44 करोड़ हो गयी है. जीएसटी लागू होने और कर व्यवस्था में सुधारों के चलते व्यवसायों द्वारा अप्रत्यक्ष करों में भी वृद्धि हुई. जिससे, कालेधन की प्रवृत्ति पर अंकुश लगने से महंगाई पर रोक लग सकी है.

राजकोषीय प्रबंधन, भ्रष्टाचार पर रोक और कृषि एवं औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि से महंगाई में कमी की इस प्रवृत्ति को जारी रखना जरूरी है. अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने से भारत में पेट्रोल-डीजल और परिवहन लागत की कीमतों में वृद्धि होती है.

लेकिन, पिछले कुछ महीनों में अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कीमतें बढ़ने पर पेट्रोल-डीजल की कीमत तो बढ़ी, पर महंगाई काबू में रही. क्योंकि, खाद्य वस्तुओं में कीमतें घटीं या बहुत कम बढ़ीं. कीमतें स्थिर रहने पर रिजर्व बैंक ब्याज दरों को घटा सकता है, जिससे औद्योगिक और इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश बेहतर होता है. जरूरी है कि कालेधन पर रोक लगे, सरकार को टैक्स ज्यादा मिले, किसानों को अपनी उपज बढ़ाने हेतु प्रोत्साहन मिले और गैरजरूरी सरकारी खर्चों पर रोक लगे.

वर्तमान सरकार ने लाभार्थियों के बैंक खातों में सीधे सब्सिडी देकर फर्जीवाड़े का खात्मा किया है. हमें देखना होगा कि यह सभी प्रवृत्तियां जारी रहें और महंगाई को काबू में रखते हुए देश का विकास हो. इतिहास गवाह है कि जब-जब कीमतें नियंत्रण में रही हैं, तब-तब देश में आर्थिक संवृद्धि भी बढ़ी है.

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