अब इनसान को किसी मौसम में चैन नहीं मिलता. कभी इतना जाड़ा कि हाड़ कंपा दे, तो कभी इतनी ज्यादा बरसात कि हाय-हाय होने लगे. अब भीषम गर्मी पड़ रही है, तो सब तरफ पसीने से तर-बतर लोगों की एक ही चिंता है कि आखिर मानसून कब आयेगा. कुछ बूढ़े-बुजुर्गो से बात कीजिए, तो कहते हैं कि झारखंड में पहले कभी इतनी गर्मी नहीं पड़ती थी.
चारों तरफ हरियाली थी, ऊंचे-ऊंचे पहाड़ थे. थोड़ी भी गर्मी बढ़ती थी, तो शाम तक बारिश से मौसम सुहाना हो जाता था. पर, अब ऐसा नहीं होता. झारखंड में भी मैदानी इलाकों की तरह लू बहने लगी है. चिलचिलाती धूप ने सबको बेहाल कर दिया है. अब कितनी भी गर्मी बढ़े बारिश नहीं होती. पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों से बात कीजिए तो वो कहते हैं कि अंधाधुंध जंगल की कटाई और बेतरतीब बढ़ते कंक्रीट के जंगलों की वजह से झारखंड बरबाद हो गया. प्रदूषण कोढ़ में खाज का काम कर रहा है. तो, कुल मिला कर झारखंड के मौसम को इस तरह तबाह करने के पीछे सीधे तौर पर यहां के आम से लेकर खास लोग ही जिम्मेदार हैं. बड़े लोगों के घर एसी समेत तमाम आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं, मरन तो आम आदमी का है.
गरीब आदमी को इस भीषण गर्मी में पीने के पानी तक के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है. झारखंड के दूरदराज गांवों की बात तो दूर राजधानी रांची, जमशेदपुर, धनबाद और देवघर जैसे शहरों के अधिकांश इलाके इस गर्मी के मौसम में पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं. गुरुवार को झारखंड में भी विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया. 45 डिग्री की गर्मी में उत्साहित लोगों ने पौधे लगाये, थोड़ी साफ -सफाई की, पर्यावरण बचाने की कसमें खायीं, जोरदार भाषण हुए और किस्सा खत्म. अब ले-दे कर भीषण गर्मी से राहत दिलाने के लिए मानसून का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा है.
लेकिन खबर है कि मानसून भी इस बार विलंब से आयेगा. मानसून पर अल नीनो का असर माना जा रहा है. दुआ करें मानसून आये और गर्मी से निजात मिले. फिर हम लोग भारी बरसात का रोना-रोना शुरू कर दें. बरसात खत्म हो, जाड़े की चिंता में दुबले होने लगें. प्रकृति अपना काम करती रहे और हम लोग अपनी चिंता में व्यस्त रहें. तभी तो कहते हैं कि जो मौसम आता है.. वही रुला जाता है.