अलगाववाद, आक्रोश और छद्म युद्ध से त्रस्त कश्मीर घाटी के हालात को बेहतर बनाने की दिशा में कोशिशें जारी हैं. तीन दशकों की हिंसा ने कश्मीर के सामने अनगिनत चुनौतियां खड़ी कर दी हैं.
कश्मीर मसले के समाधान के लिए केंद्र सरकार वार्ताकार दिनेश्वर शर्मा के माध्यम से आम कश्मीरी जनमानस तक पहुंचने की पहल कर रही है. हालांकि, बीते डेढ़ दशकों में चार बार वार्ताकारों के माध्यम से समाधान के प्रयास हुए, पर कोई सफलता नहीं मिली. किसी भी बातचीत की सफलता के लिए संदेश का सीधा, स्पष्ट और निरंतर होना आवश्यक है. ऐसे में प्रयास भले ही छोटा हो, लेकिन मौजूदा हालत के मद्देनजर इसे बड़े संदेश के तौर पर देखा जाना चाहिए. शर्मा की सलाह पर पहली बार पत्थर फेंकने के आरोप में युवाओं पर दर्ज मामलों को सरकार ने वापस लेने का फैसला किया है. ऐसे मामलों की संख्या साढ़े चार हजार के आसपास है. वार्ताकार शर्मा राजनीतिक बंदियों की रिहाई के भी पक्षधर हैं, ताकि बातचीत के लिए भरोसेमंद माहौल बन सके.
पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकियों के अलावा पिछले एक वर्ष में 88 स्थानीय युवा आतंकी समूहों में शामिल हुए हैं. ऐसे में जरूरी है कि अलगाववाद तथा पाकिस्तान समर्थित जारी आतंकवाद से निपटने की रणनीति में युवाओं को मुख्यधारा में लाने का प्रयास भी महत्वपूर्ण हो. निश्चित ही यह कार्य सुरक्षाबलों की कार्रवाई के जरिये नहीं किया जा सकता है. इसके लिए घाटी के लोगों में सरकार और उसकी पहलों के प्रति विश्वास बढ़ाने की जरूरत है.
मां की भावनात्मक अपील से प्रभावित होकर फुटबॉल खिलाड़ी से आतंकियों के गिरोह में शामिल हुए माजिद खान के समर्पण की घटना शांति प्रयासों के लिए बड़ी उम्मीद है. पत्थरबाजी के लिए आरोपित युवाओं पर से मामले हटाने जैसी पहलों से कश्मीरी परिवारों को भी सुकून मिलेगा. सामूहिक डर से परेशान समुदाय उकसावे का आसान शिकार हो जाते हैं और उन्हें हिंसक रास्ता अपनाने से भी भय नहीं लगता है.
कश्मीर इसी त्रासदी को भोग रहा है, जहां हिंसा-प्रतिहिंसा के लंबे दौर ने शांति और विकास की संभावनाओं को कुंद कर दिया है. पाकिस्तान ने हाफिज सईद जैसे आतंकी को रिहाई देकर तथा मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय पाबंदी से बचाकर फिर यह संकेत दिया है कि वह भारत को परेशान करने की अपनी पुरानी नीति से बाज नहीं आयेगा. प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले की प्राचीर से दिये गये ‘गले लगाने के संदेश’और वार्ताकार शर्मा द्वारा सकारात्मक माहौल तैयार करने के लिए किये जा रहे प्रयासों से गतिरोध खत्म करने की उम्मीद जगी है.
यह जरूर है कि आतंकवाद के प्रति कठोर रवैया रखा जाना चाहिए, लेकिन आम नागरिकों के साथ लगाव तभी बन सकता है, जब हम उन्हें यह भरोसा दिलायें कि आजादी के नाम पर हिंसा और अराजकता से कुछ नहीं मिलनेवाला है तथा शासन-प्रशासन के स्तर पर उनकी रोजमर्रा के जीवन को अच्छा बनाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है.