राज्य का स्थापना दिवस जहां एक ओर बीते सालों की उपलब्धियों पर प्रसन्न होने तथा आगे की यात्रा की तैयारियों पर विश्वास जताने का एक अहम अवसर है, वहीं दूसरी ओर कमियों, विफलताओं और गलतियों के ईमानदार आकलन का भी जरूरी मौका है. विगत 17 सालों में सड़कों के विस्तार, इ-गवर्नेंस और सीधा लाभ हस्तांतरण जैसे कामों के साथ खेती और उद्योग में उल्लेखनीय काम हुए है.
लेकिन, देश की खनिज-संपदा और मानव-संसाधन में बड़ा हिस्सेदार होने के बावजूद झारखंड की गिनती पिछड़े राज्यों में होती है. अशिक्षा, गरीबी, कुपोषण जैसी व्याधियों से राज्य की बड़ी आबादी पीड़ित है. राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के मुताबिक, झारखंड में कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ी है.
कुपोषण और खून की कमी की शिकायत आदिवासी समुदाय में सर्वाधिक है, जो निर्धनता, अशिक्षा और रोजगार की कमी जैसी मुश्किलों से जूझ रहा है. आदिवासियों के समुचित विकास के मुद्दे पर बने इस राज्य में उनकी यह दशा शोचनीय है. आदिवासी समुदाय के कल्याण और प्रगति के लिए सरकार को मुस्तैदी से कदम बढ़ाने चाहिए. शिक्षा और स्वास्थ्य पर ठोस पहल के बिना विकास अधूरा और अस्थायी साबित होगा. स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों में पद रिक्त हैं, भवन जर्जर हैं तथा सुविधाओं का अभाव है. माओवादी हिंसा में कमी तो आयी है. पर, अब भी अधिकतर जिलों में यह चुनौती बनी हुई है.
मुख्यमंत्री रघुवर दास ने उचित ही कहा है कि विकास हर मुश्किल का हल है. लेकिन, विकास को समाज के हर तबके तक समान रूप से पहुंचाना भी जरूरी है. राज्य के कुछ जिले सूचकांक में बहुत ऊपर हैं, तो कुछ बहुत नीचे. राज्य में रोजगार के अवसरों की कमी के कारण लोगों के पलायन का सिलसिला बदस्तूर जारी है. पर्यावरण का ह्रास और वन क्षेत्रों का संकुचन भी चिंता का विषय है. कुछ माह पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में अनेक नयी विकास परियोजनाएं शुरू की गयीं. राज्य सरकार ने भी नीतिगत और योजनागत फैसले लिये हैं.
झारखंड में पूंजी निवेश की उम्मीदें भी मजबूत हुई हैं और इस संबंध में कुछ बड़े समझौते भी हुए हैं. आशाओं और आकांक्षाओं को काफी हद तक पूरा कर पाने का भरोसा बढ़ा है. परंतु, मौजूदा सरकार को अपने और पूर्ववर्ती सरकारों में कामकाज के अनुभवों से भी सीख लेने की जरूरत है, ताकि पहले की गलतियों और गड़बड़ियों के दोहराव से बचा जा सके.
झारखंड के साथ ही उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ की भी स्थापना हुई थी. ये राज्य कई पैमानों पर झारखंड से बेहतर हाल में हैं. मानव संसाधन और खनिज संपदा के साथ राज्य में उद्योगों की भारी उपस्थिति के बावजूद विकास का संतोषजनक नहीं होना बड़ी चिंता की बात है. राज्य के स्थापना दिवस के मौके पर राजनीतिक सीमाओं से ऊपर उठकर झारखंड की बेहतरी के लिए मंथन, चिंतन और विचार किया जाना चाहिए.