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घाटी में संवाद जरूरी
जम्मू-कश्मीर में तीर्थयात्रियों पर हमले के बाद यह सवाल तो है ही कि सुरक्षा-व्यवस्था में चूक कहां और कैसे हुई, इस घटना के मायने जम्मू-कश्मीर के अलगाववाद से निपटने की कोशिशों की कामयाबी और नाकामी से भी जुड़े हैं. नये आंकड़े बताते हैं कि राज्य में पहले की तुलना में हालात 2017 में अधिक बिगड़े […]
जम्मू-कश्मीर में तीर्थयात्रियों पर हमले के बाद यह सवाल तो है ही कि सुरक्षा-व्यवस्था में चूक कहां और कैसे हुई, इस घटना के मायने जम्मू-कश्मीर के अलगाववाद से निपटने की कोशिशों की कामयाबी और नाकामी से भी जुड़े हैं. नये आंकड़े बताते हैं कि राज्य में पहले की तुलना में हालात 2017 में अधिक बिगड़े हैं. जम्मू-कश्मीर में जारी आतंकी हिंसा से निपटने में कामयाबी का दावा करते हुए केंद्र सरकार ने 2016 के दिसंबर में कुछ आंकड़े गिनाये थे. इन आंकड़ों से कहानी यह निकल रही थी कि साल भर के भीतर सुरक्षा बलों की मुस्तैदी के कारण एक तो पहले की तुलना में कहीं ज्यादा आतंकियों को मार गिराने या गिरफ्तार करने में सफलता मिली है, दूसरी सुरक्षा-बलों की चौकसी की बदौलत आतंकी घटनाओं को बड़े हद तक थामने में मदद मिली है, उसमें इजाफा हुआ है, लेकिन इतना ज्यादा नहीं जो कोई कहे कि 2015 की तुलना में 2016 में लोगों की हिफाजत के मोर्चे पर स्थिति बेकाबू हो गयी है.
तब संसद को केंद्रीय गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने बताया कि पिछले साल की तुलना में जम्मू-कश्मीर में तीन गुना ज्यादा आतंकी मारे गये हैं और आत्मसमर्पण करनेवाले आतंकियों की संख्या में सात गुना की बढ़ोतरी हुई है. उन्होंने यह भी कहा कि बेशक आतंकी घटनाएं 2015 के 208 की तुलना में 2016 में बढ़ कर 305 हुई हैं, परंतु सुरक्षा व्यवस्था की चौकसी के कारण आतंकियों को खास कामयाबी नहीं मिली है. यही वजह है जो एक साल के भीतर आतंकी घटनाओं में मारे गये आम नागरिकों की तादाद घटी (17 से घट कर 14) है. लेकिन, छह महीने के भीतर सरकारी आंकड़ों से झांकता इस आशावाद का रंग फीका पड़ता नजर आ रहा है.
साऊथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एक साल (जून, 2016 से जून, 2017 तक) के भीतर जम्मू-कश्मीर में आतंकी वारदातों में मौत की घटनाओं में 45 फीसदी का इजाफा हुआ है. इसमें आम आदमी की मौतों की तादाद तुलनात्मक रूप से 164 फीसदी बढ़ी है. नये आंकड़ों से निकलते संकेतों से जम्मू-कश्मीर में किये जा रहे सुरक्षा बंदोबस्त और उसकी कामयाबी को लेकर शंका पैदा होती है.
कश्मीर की हिंसा के लिए पाकिस्तान प्रेरित आतंकवाद और घाटी के कई लोगों का इस आतंकवाद में सहायक होना समान रूप से जिम्मेवार है. इस चिंताजनक स्थिति को देखते हुए सरकार को एक तरफ पाकिस्तान पर कूटनीतिक दबाव बढ़ाने तथा दूसरी तरफ घाटी में विभिन्न समूहों और संगठनों से नये सिरे से बातचीत की राह अपनाने की जरूरत है. अमन-चैन की बहाली के लिए बेहतर विकल्प यही हैं.
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