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पाकिस्तान पर बेहद सख्त होने की है जरूरत

अजय साहनीरक्षा विशेषज्ञ फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को फरवरी 2020 तक ग्रे सूची में डाल दिया है. एफएटीएफ ने उसको यह निर्देश भी दिया है कि टेरर फंडिंग से निबटने के लिए वह कड़े कदम उठाये. पाकिस्तान के लिए ऐसे निर्देशों का कोई मतलब नहीं है. क्योंकि ऐसी कवायदें कई सालों से […]

अजय साहनी
रक्षा विशेषज्ञ

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को फरवरी 2020 तक ग्रे सूची में डाल दिया है. एफएटीएफ ने उसको यह निर्देश भी दिया है कि टेरर फंडिंग से निबटने के लिए वह कड़े कदम उठाये. पाकिस्तान के लिए ऐसे निर्देशों का कोई मतलब नहीं है. क्योंकि ऐसी कवायदें कई सालों से चलती चली आ रही हैं.
एफएटीएफ अक्सर टेरर को लेकर पाकिस्तान पर कुछ प्रतिबंधों की बात करता रहा है, लेकिन आखिर कुछ हुआ नहीं. हर बार एफएटीएफ यह तय नहीं कर पाता कि वह क्या करे, बस यह कह देता है कि पाकिस्तान ने जो कमिटमेंट किया था, उसने उसे पूरा नहीं किया.
एफएटीएफ के लोग कोई राय नहीं बना पा रहे हैं कि टेरर फंडिंग और आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान के खिलाफ क्या ठोस कदम उठाये जायें. हालांकि, एफएटीएफ के पास सख्त रुख अपनाने का अधिकार नहीं है, लेकिन अगर वह पाकिस्तान को ब्लैकलिस्ट में डाल दे, तो दुनिया के सारे देश और आतंकवाद निरोधी वैश्विक संस्थाएं उस पर प्रतिबंध लगा सकती हैं.
इसमें सबसे पहले तो यह होता कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो फंडिंग एजेंसी हैं, मसलन, आइएमएफ, वर्ल्ड बैंक, यूएन संस्थाएं आदि, ये सब पाकिस्तान को पैसे देना बंद कर देते. पाकिस्तान को जिस दिन फंडिंग बंद हो जायेगी, उसकी सारी हेकड़ी खुद ही बाहर आ जायेगी.
दूसरी बात यह है कि पाकिस्तान को अगर ब्लैकलिस्ट में डाल दिया गया, तो उस पर वैश्विक दबाव बढ़ जायेगा और आतंकवाद को रोकने के लिए कुछ चीजों पर प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं. हालांकि, कुछ देश नहीं मानेंगे और ऐसा करने का विरोध करेंगे, लेकिन फिर भी दुनिया की नजर में पाकिस्तान की वास्तविक छवि सामने आ जायेगी.
इसलिए इस ग्रे लिस्ट का कोई मतलब नहीं है, जब तक कि कोई ठोस कदम न उठाया जाये. जहां तक पाकिस्तान के रोने का सवाल है कि वह तो खुद ही आतंकवाद से परेशान है, यह एक छलावा देने जैसा है. दरअसल, दो तरह के आतंकवाद होते हैं.
एक आतंकवाद वह है, जिसमें आप खुद आतंकवादियों को पालते हैं और आप के खिलाफ आपके देश के ही कुछ लोग खड़े हो जाते हैं. और दूसरा आतंकवाद वह है, जिसमें कोई दूसरा देश आकर आपके यहां आतंकवाद फैलाता है. पाकिस्तान इन दोनों तरह के आतंकवाद का पोषण करता है. वह खुद आतंकवादियों को शरण देता है और दूसरे देशों में आतंक फैलाता भी है.
मसलन, अफगानिस्तान में जितना भी आतंक है, वह सब पाकिस्तान से तैयार होता है. भारत के कश्मीर क्षेत्र में जो आतंकवाद है, वह भी पाकिस्तान से आता है. इसलिए पाकिस्तान के रोने का कोई अर्थ नहीं कि वह खुद भी आतंकवाद से पीड़ित है. इस पर रहम खाने की नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों को आयद करने की दरकार है. किसी भी बीमारी का इलाज सख्ती से होना चाहिए.
आतंकवाद एक बीमारी है, कैंसर है, इसलिए इसका इलाज करने के लिए सख्त होना पड़ेगा. यूरोप और अमेरिका खुद पाकिस्तान से परेशान हैं, लेकिन गाहे-ब-गाहे ये खुद उसकी मदद करते रहते हैं, इसलिए उसको कोई फर्क ही नहीं पड़ता. इस वक्त पाकिस्तान पर सख्त अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों की दरकार है, तभी संभव है कि वह आतंकवाद को काबू करने के लिए मजबूर होगा.

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