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जीवन का अंत नहीं है हार्ट फेल्योर

डॉ अजय कुमार सिन्हा प्रेजिडेंट ऑफ कार्डियोलॉजी एंड डायबिटोलॉजिस्ट एसोसिएशन, बिहार एंड झारखंड चैप्टर पूर्व डायरेक्टर (कार्डियोलॉजी) पारस हॉस्पिटल, पटना sinha_ajaykr@yahoo.co.in भारत में हार्ट फेल्योर से मरने वाले लोगों में से अधिकांश ऐसे होते हैं, जिन्हें समय पर उपचार नहीं मिल पाता. ज्यादातर मामलों में लोग इलाज के लिए तब पहुंचते हैं, जब बीमारी चरम […]

डॉ अजय कुमार सिन्हा
प्रेजिडेंट ऑफ कार्डियोलॉजी एंड डायबिटोलॉजिस्ट एसोसिएशन, बिहार एंड झारखंड चैप्टर
पूर्व डायरेक्टर (कार्डियोलॉजी) पारस हॉस्पिटल, पटना
sinha_ajaykr@yahoo.co.in
भारत में हार्ट फेल्योर से मरने वाले लोगों में से अधिकांश ऐसे होते हैं, जिन्हें समय पर उपचार नहीं मिल पाता. ज्यादातर मामलों में लोग इलाज के लिए तब पहुंचते हैं, जब बीमारी चरम पर पहुंच चुकी होती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक जिन लोगों में हृदय रोग का पता काफी देर से चलता है, उनमें से करीब 50% लोग ही एक साल से ज्यादा जीवित रह पाते हैं.
दरअसल, हृदय रोगों को बढ़ने से रोकने के लिए जीवनशैली में सुधार सबसे महत्वपूर्ण है. खान-पान पर नियंत्रण रखने के साथ ही समय पर दवाइयां लेना बेहद जरूरी हैं, जो कि आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में अक्सर संभव नहीं हो पाता.
हार्ट फेल्योर के दो प्रमुख कारण : पहला कारण हार्ट अटैक, जो मुख्य रूप से धमनी में ब्लॉकेज के कारण होता है. इस स्थिति में ध्यान रखना पड़ता है कि मरीज को जितनी जल्दी हॉस्पिटल पहुंचाया जाये, जिससे उसके बचने की संभावना उतनी अधिक होगी. यानी यदि मरीज को अटैक के एक से दो घंटे के अंदर अस्पताल ले जाते हैं, तो इलाज बेहतर हो सकता है.
यदि एक दिन की देरी करते हैं, तो हार्ट का फंक्शन 25% ही रह जाता है. बेहतर है कि आप लक्षणों को पहचानें. उदाहरण के लिए, यदि थोड़ी दूर चलने पर भी सांस फूलने लगे यानी 250 मीटर भी नहीं चल सकें, तो सतर्क हो जाएं और डॉक्टर से जांच कराएं. हार्ट फेल्योर का दूसरा प्रमुख कारण- डायबिटीज, ब्लड प्रेशर आदि रोगों का होना है. ब्लड प्रेशर प्रमुख कारण है. इसके लिए जीवनशैली सुधारें. ब्लड प्रेशर 130/80 रखने का प्रयास करें. नियमित व्यायाम करें.
नयी दवाएं हैं कारगर : हार्ट फेल्योर से निबटने लिए कई नयी दवाएं कारगर हैं. ऐसी ही एक प्रमुख दवा एआरएनआइ है. यह दवा हार्ट को सही तरीके से पंप करने में मदद करती है. डॉक्टर मरीज की जांच कर जरूरत के अनुसार यह दवा लेने की सलाह देते हैं.
हार्ट ट्रांसप्लांट : हार्ट फेल्योर के बाद इस उपाय से भी मरीजों की जान बचायी जा सकती है. इस प्रक्रिया में हार्ट डोनर से हार्ट लेकर मरीज में ट्रांसप्लांट किया जाता है. भारत में इसे बारे में अभी जागरूकता का अभाव है. यहां अभी डोनर बहुत ही मुश्किल से मिलते हैं. इसी कारण यहां अभी तक बहुत ही कम हार्ट ट्रांसप्लांट हुए हैं.
जीवनरक्षक है एलवीएडी मशीन : अगर किसी को हार्ट फेल्योर होता है, तो यह अर्थ नहीं कि अब जीवन खत्म हो गया. यदि मरीज में हार्ट ट्रांसप्लांट संभव नहीं, तब गंभीर स्थिति से निबटने के लिए लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस (एलवीएडी) बेहद कारगर है. यह मशीन वह सारे काम कर सकती है, जो इंसानी शरीर में हार्ट का काम होता है.
हार्ट ट्रांसप्लांट के दौरान यह मध्यस्थ की भूमिका निभाता है. जब तक ट्रांसप्लांट के बाद हार्ट सही तरीके से धड़कने न लगे, एलवीएडी हृदय के सारे काम खुद करता रहता है. इसकी कीमत अभी भारत में 60 लाख के करीब है. यदि भारत में ही इसे बनाया जाये, तो कीमत काफी कम हो सकती है.
एम्स में हार्ट फेल्योर क्लिनिक : एम्स में एक हार्ट फेल्योर क्लिनिक चलाया जा रहा है. यहां ऐसी नर्सें मरीजों की देखभाल करती हैं, जिन्हें सिर्फ पेशेंट ही नहीं, उनके परिजनों की काउंसेलिंग के लिए भी ट्रेंड किया जाता है. ये नर्सें उन्हें दवाएं सही समय पर लेने, लिक्विड फूड कम मात्रा में लेने, खाने में नमक की मात्रा सीमित करने और प्रतिदिन एक्सरसाइज करने जैसी जरूरी बातों से रू-ब-रू करवाती हैं.
हालांकि कई अन्य अस्पतालों भी यह सुविधा दी जा रही है. नर्सों की भूमिका इसलिए महत्वपूर्ण होती है कि वे मरीज का हालचाल पूछ कर रोग की हालत का अनुमान लगा लेती हैं. इसके अलावा रोज मरीज का वजन लेना, ब्लड प्रेशर मापने आदि का काम भी करती हैं. ताकि मरीज की स्थिति पर नजर रखी जा सके, क्योंकि हार्ट अटैक आने के बाद भी यदि वजन बढ़ रहा है, तो यह खतरनाक है. वजन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है.
ऐसा माना जाता है कि एक सामान्य वजन मापनेवाली मशीन आपकी जान बचा सकती है व आपको डॉक्टर के खर्च को भी कम कर सकती है. यदि आप नियमित वजन मापते हैं और वजन को नियंत्रित रखते हैं, तो हृदय रोगों से बचे रह सकते हैं. इसके अलावा ब्लड प्रेशर आदि समस्याओं से बचने के लिए नमक का सेवन कम करें.
अन्य देशों में क्या है स्थिति : पश्चिमी देशों के मुकाबले देखा जाये, तो भारत में लोग काफी कम उम्र में ही हृदय रोग से ग्रसित हो रहे हैं. अमेरिका में जहां हार्ट फेल्योर के मामले पहले औसतन 72 साल की उम्र थी, वहीं भारत में यह 10 साल पहले यानी करीब 61 साल तक की उम्र थी.
धीरे-धीरे यह उम्र भी घटकर अब 56 वर्ष तक चली गयी है. भारत में हार्ट फेल्योर के मामलों की वजह भी पश्चिमी देशों से बिल्कुल अलग होती हैं. हालांकि इस्कीमिक हार्ट डिजीज (आइएचडी) के मामले भारत और अमेरिका दोनों ही जगहों पर भारी संख्या में देखे जाते हैं.
वहीं रूमेेटिक हार्ट डिजीज के मामले भारत में तो बहुतायत में देखे जाते हैं, लेकिन अमेरिका में न के बराबर देखने को मिलते हैं. ऐसे में आइएचडी, आरएचडी और हाइपरटेंशन जैसे लक्षणों की पहचान कर समय पर ट्रीटमेंट कराने से हार्ट फेल्योर से बचा जा सकता है.
(डॉ अजय कुमार सिन्हा इन दिनों स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, अमेरिका में चल रहे एकेडमिक प्रोग्राम (कार्डियोलॉजी) के दौरे पर हैं और हाल ही में पेरिस में यूरोपियन सोसाइटी ऑफ कार्डियोलॉजी के एनुअल कॉन्फ्रेंस में मौजूद रहे.)
जागरूकता की कमी
आज की तेज रफ्तार जीवनशैली में हार्ट फेल्योर सबसे जानलेवा बीमारियों में से एक है. पूरी दुनिया में करीब 26 करोड़ लोग इसकी चपेट में हैं, जिनमें से 1 करोड़ रोगी अकेले भारत में हैं. इस लिहाज से देखें, तो कैंसर के मुकाबले हार्ट फेल्योर कहीं अधिक लोगों की जान ले रहा है.
दुनियाभर में सबसे अधिक लोग दिल की बीमारियों के चलते ही अस्पतालों में भर्ती होते हैं और अधिकांश मामलों में यह कम उम्र में मृत्यु का कारण भी बनता है. हैरत की बात है कि इसे लेकर लोगों में कोई जागरूकता नजर नहीं आती. 60% लोगों की मृत्यु सिर्फ इस वजह से हो जाती है, क्योंकि हार्ट फेल्योर के लक्षण दिखने के बावजूद वे नजरअंदाज कर देते हैं या फिर सही ट्रीटमेंट नहीं ले पाते. हृदय रोगों के प्रति जागरूक करने से इसके मामलों में कमी लाने में मदद मिल सकती है.
आइएचडी और आरएचडी
इस्केमिक हार्ट डिजीज : धमनियों में प्लाक जमा हो जाता है, जिससे ऑक्सीजन युक्त रक्त के प्रवाह का हृदय की मांसपेशी की ओर जाना कम हो जाता है. इसके कारण हार्ट अटैक होता है.
रूमेटिक हार्ट डिजीज : इसके होने का कारण रूमेटिक बुखार है. यह सूजन संबंधी परेशानी है, जो संक्रमण के कारण होती है. इसके कारण हृदय और वॉल्व को नुकसान पहुंचता है.
सतर्क रहना है जरूरी
किसी गंभीर स्थिति के आने से पहले ही सतर्क हो जाने में समझदारी है. जिन्हें पहले कभी हार्ट अटैक आ चुका हो या जो हाइपरटेंशन व डायबिटीज के शिकार हों, उनको रेगुलर बेसिस पर स्क्रीनिंग करवाते रहना चाहिए. इससे समय रहते रोग की गंभीरता का पता चल जाता है.
क्या है हार्ट फेल्योर
हार्ट फेल्योर या दिल का दौरा पड़ना एक ऐसी स्थिति है, जिसमें दिल शरीर की जरूरत के मुताबिक खून और ऑक्सीजन को शरीर में पंप नहीं कर पाता.
इस स्थिति को सुधारने के लिए दिल अपने तरीके से प्रयास करना शुरू करता है
हृदय का बढ़ना : इससे हार्ट में खिंचाव आता है और धड़कन बढ़ जाती है. इस तरह वह शरीर में खून और ऑक्सीजन जरूरत के मुताबिक पहुंचा तो पाता है, मगर आगे हृदय का आकार बढ़ जाता है.
अतिरिक्त मांसपेशियों का निर्माण : इसके कारण वहां और भी मांसपेशियों का निर्माण होने लगता है. इस स्थिति में हार्ट पहले से कहीं अधिक तेजी से पंपिंग करने लगता है. इसके लक्षण हर वक्त थकान, सांस लेने में दिक्कत आदि के रूप में सामने आने लगते हैं. तीव्रता से पंपिंग : रक्त संचार को सुचारु रखने के लिए हृदय तेजी से पंपिंग शुरू कर देता है.
किन्हें है खतरा और क्यों
वैसे लोग जिन्हें हार्ट से जुडी कोई भी बीमारी हो, हाइ बीपी के शिकार हों या जिन्हें पहले कभी हार्ट अटैक आ चुका हो. इनपुट : पूजा कुमारी
बीमारी की क्या है स्थिति : करीब 01 करोड़ लोग भारत में हैं इसके शिकार. शहरी क्षेत्रों में 8-10% और ग्रामीण इलाकों में 4-5% लोग हैं चपेट में.

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