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दुर्गोत्सव : अलग-अलग रंगों में रंगी होती है देशभर की विजयादशमी

बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार दशहरा यानी विजयादशमी पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दौरान देशभर में अलग-अलग प्रकार की साज-सज्जा का दर्शन किया जा सकता है. नवरात्रि के नौ दिन पूरे होने बाद 10वें दिन कहीं बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है, तो कहीं रावण के पुतले को […]

बुराई पर अच्छाई की जीत का त्योहार दशहरा यानी विजयादशमी पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस दौरान देशभर में अलग-अलग प्रकार की साज-सज्जा का दर्शन किया जा सकता है.

नवरात्रि के नौ दिन पूरे होने बाद 10वें दिन कहीं बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है, तो कहीं रावण के पुतले को जलाने के साथ अपने सभी नकारात्मक विचार, द्वेष, घृणा, लालच और क्रोध के दहन का भी लोग प्रण लेते हैं. विजयादशमी आशा, उमंग और उत्साह का भी त्योहार होता है. खास बात है कि अपने देश की विविधता की झलक इस त्योहार में भी देखने को मिलती है. जानिए ऐसे ही कुछ दशहरा उत्सव की रोचक जानकारी.

कर्नाटक स्थित मैसूर का दशहरा वर्ल्ड फेमस है. दशहरे के मौके पर निकलने वाली झांकी को देखने के लिए दुनियाभर से पर्यटक यहां आते हैं. मैसूर का दशहरा सेलिब्रेशन नौ दिनों तक चलता है और आखिरी दिन यानीं 10वें दिन विजयादशमी का त्योहार काफी धूमधाम से मनाया जाता है.

विजयादशमी के दिन पूजी गयी देवी की मूर्तियां भव्य जुलूस के साथ सजे हुए हाथी पर ले जायी जाती हैं. यह हाथी जुलूस, मैसूर पैलेस से शुरू होता है और दशहरा मैदान तक जाता है. इस दौरान मैसूर पैलेस ही नहीं, बल्कि पूरे शहर को सजाया जाता है.

इसके साथ शहर में लोग टॉर्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभायात्रा का आनंद लेते हैं. हालांकि, इन द्रविड़ प्रदेशों में रावण-दहन का आयोजन नहीं किया जाता है. मैसूर शहर में इस त्योहार का आयोजन, महिषासुर पर चामुंडेश्वरी देवी की जीत के उपलक्ष्य में किया जाता है.

दुर्गा पूजा और रामलीला, दोनों साथ होती है वाराणसी में

उत्तर प्रदेश का वाराणसी शहर दुनिया के सबसे पुराने रामलीला प्रदर्शन के लिए मशहूर है. यहां एक तरफ दिल्ली शैली में रामलीला उत्सव मनाया जाता है और दूसरी तरफ कोलकाता शैली में दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है. वाराणसी से 15 किमी दूर रामनगर जिले में सबसे प्रसिद्ध रामलीला प्रदर्शनों का आयोजन किया जाता है. यहां विजयादशमी के दिन विशेष रूप से रावण दहन उत्सव का आयोजन किया जाता है.

पश्चिम बंगाल में महिलाओं का सिंदूरखेला है विशेष आकर्षण

पश्चिम बंगाल का दशहरा पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. नौ दिन देवी के नौ रूपों की पूजा के बाद विजयादशमी के दिन विशेष पूजा होती है. उसके बाद प्रसाद वितरण किया जाता है. पुरुष आपस में गले मिलते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं. स्त्रियां माता के माथे पर सिंदूर चढ़ा कर उन्हें विदाई देती हैं. इसके साथ ही वे आपस में एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं. इस रीति को सिंदूर खेला कहते हैं. उसके बाद देवी की प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है.

इलाहाबाद में दशहरा उत्सव की शुरुआत रावण पूजा से

पूरे देश में जहां दशहरा उत्सव की शुरुआत देवी की पूजा और अंत रावण दहन से होता है, वहीं इलाहाबाद में दशहरा उत्सव की शुरुआत रावण की पूजा-अर्चना और भव्य शोभा यात्रा के साथ होती है.

शोभा यात्रा निकालने से पहले रावण को सजाया जाता है. फिर दो किलोमीटर तक यात्रा निकाली जाती है. दरअसल, इलाहाबाद में रावण को उनकी विद्वता के चलते पूजा जाता है. यहां विजयादशमी के दिन रावण का पुतला भी नहीं जलाया जाता.

विदेशों में भी होती दशहरा की धूम

विजयादशमी का पर्व केवल भारत में ही नहीं, बल्कि कई अन्य देशों में भी धूमधाम से मनाया जाता है. चीन, नेपाल, इंडोनेशिया, मलेशिया, श्रीलंका और थाइलैंड में भी इसे पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है. नेपाल में विजयादशमी (टीका) के आगमन की भनक के साथ ही पारंपारिक गीत गाये जाने लगते हैं. हर तरफ त्योहार का माहौल होता है. जानिए इस बारे में रोचक जानकारी.

नेपाल में बच्चों को सिखाते हैं गाना

नेपाल में दशमी आने के पहले घर की महिलाएं बच्चों को गोद में बिठा कर उनकी छोटी-छोटी पांचों अंगुलियां अपने हाथों में लेकर एक-एक अंगुली पकड़ कर गीत सिखाती हैं. विजयादशमी आते ही नेपाल के हर घर में चहल-पहल शुरू हो जाती है. नेपाली दशमी के आगमन का एहसास नागपंचमी से ही हो जाता है. नेपाल में दशमी को त्योहारों का राजा माना जाता है. नेपाल या गोरखा सेनाएं बहुत ही अद्भुत ढंग से दशहरा मनाती हैं. इस मौके को शस्त्र पूजा या महाबलिदान के रूप में मनाया जाता है.

इंडोनेशिया में भी होती है रामलीला

इंडोनेशिया में भारत की तरह ही रामायण एक लोकप्रिय काव्य ग्रंथ है, लेकिन दोनों में अंतर है. भारत में राम की नगरी अयोध्या है, वहीं इंडोनेशिया में यह ‘योग्या’ के नाम से स्थित है. यहां राम कथा को ‘ककनिन’, या ‘रामायण काकावीन’ कहा जाता है. इसके रचयि‍ता कवि योगेश्वर हैं. इसमें उन्होंने सीता को सिंता और लक्ष्मण को इंडोनेशियाई नौ सेना का सेनापति के रूप में प्रस्तुत किया है. यहां के मुस्लिम भी भगवान राम को अपने जीवन का नायक और रामायण को अपने दिल के करीब मानते हैं.

मलेशिया में होती है ऑफिशियल छुट्टी

मलेशिया में सात फीसदी से ज्यादा भारतीय मूल के लोग है. वहां हिंदू और सिख धर्मावलंबियों भी अच्छी-खासी संख्या में है. इसी चलते वहां भी दशहरा काफी धूमधाम से मनाया जाता है. वहां सरकार द्वारा ऑफिशियल छुट्टी रहती है. मलेशिया में चीनी, थाइ और अंग्रेजी और पंजाबी भाषाएं बोली जाती हैं. इन्हीं भाषाओं में वहां रामलीला का आयोजन भी किया जाता है. दशहरा के खास मौके पर कई बार भारत से भी रामलीला के कलाकार यहां पहुंचते हैं. इस दौरान मलेशिया में काफी भीड़ जुटती है.

श्रीलंका में होती है रावण की पूजा

श्रीलंका में रामायण से जुड़े कई ऐतिहासिक स्थल मौजूद हैं. त्रेता युग में यहां रावण का साम्राज्य कायम था. इसी वजह से यहां दशहरा में रामलीला के साथ-साथ रावण की पूजा भी जाती है. श्रीलंका के सिंघली और तमिल क्षेत्रों में रामलीलाओं की विस्तृत परंपरा है. कोलंबो सिंघली क्षेत्र के विश्वविद्यालयों में रामलीला होती है. तमिल ग्रामीण बहुल क्षेत्रों में बट्टीकलोवा के आस-पास मैदानी रामलीलाएं होती हैं. ये कुत्तू नाट्य विद्या के एक अंग हैं. श्रीलंका में बौद्ध धर्म को माननेवाले सबसे ज्यादा लोग रहते हैं.

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