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सरकारी राशन खरीदने के लिए भी नहीं हैं रुपये

नागराकाटा : दिन भर काम की खोज में पड़ोसी देश भूटान में भटकने के बावजूद कभी किसी को दैनिक मजदूरी मिलता है तो कभी नहीं. सरकार की ओर से मिलनवाले राशन से खैर किसी को भूखा नहीं रहना पड़ता है. लेकिन आलम ऐसा हो चुका है कि राशन भुगतान करने के लिए जो रकम की […]

नागराकाटा : दिन भर काम की खोज में पड़ोसी देश भूटान में भटकने के बावजूद कभी किसी को दैनिक मजदूरी मिलता है तो कभी नहीं. सरकार की ओर से मिलनवाले राशन से खैर किसी को भूखा नहीं रहना पड़ता है.

लेकिन आलम ऐसा हो चुका है कि राशन भुगतान करने के लिए जो रकम की आवश्यकता पड़ती है वह पैसा भी श्रमिकों के पास नहीं है.
घटना नागराकाटा ब्लॉक स्थित बंद केरन चाय बागान की है. चाय बागान बंद हो जाने के बाद श्रमिकों में आर्थिक संकट देखा जा रहा है. फिलहाल श्रमिकों के पास खाने के लिए चावल तो है लेकिन अन्य खाद्य समाग्रियों की खरीद के लिए पैसा नहीं. स्वास्थ्य परिसेवा के साथ ही विद्यार्थियों के लिए स्कूल बस भी बंद हैं.
घर के नाम पर केवल सिर ढकने के लिए टूटा-फूटा आशियाना ही बचा है, जो किसी भी दिन गिर सकता है. श्रमिकों का कहना है कि अक्टूबर 2018 में मनरेगा के तरह काम किया गया पैसा अभी तक नहीं मिला है. काम भी पिछले 15 दिनों से बंद रहने का आरोप श्रमिकों ने लगाया है.
गौरतलब है कि केरन चाय बागान 2016 के अक्टूबर से पूजा बोनस को लेकर श्रमिकों और मालिक पक्ष से अनुबंध होने के कारण मालिक चाय बागान को छोड़कर चला गया था.
फिर मार्च 2017 में खुला, लेकिन पुन: अप्रैल माह में पूरी तरह से बंद हो गया. चाय बागान बंद होने से श्रमिकों में आर्थिक संकट के साथ ही स्वास्थ्य परिसेवा, पेय जल व शिक्षा की समस्या उत्पन्न हो गयी है.
इस समस्या को देखते हुए चाय बागान के श्रमिक संगठन ने कच्ची चाय पंक्तियां बिक्री कर फाइनेंसर के माध्यम से चाय बागान को खोलने का निर्णय लेते हैं. फिर फाइनेंसर के माध्यम से खोला गया. लेकिन वह भी श्रमिकों के बकाया भुगतान को लेकर चाय बागान को छोड़कर चला जाता है.
नौ अक्टूबर 2018 को फिर चाय बागान में नया फाइनेंसर आया, जो 15 फरवरी तक चाय बागान को चलाने के बाद नये मालिक आने की खबर से चाय बागान को छोड़कर चला जाता है.
उस दिन से श्रमिकों के ऊपर आर्थिक संकट रुकने का नाम नहीं ले रहा. स्थानीय चाय श्रमिक राम बड़ाइक, कर्मु बड़ाइक, रविशंकर बड़ाइक, शंकर उरांव, सुमित्रा उरांव, लैतु उरांव, हेमा बड़ाइक आदि ने कहा कि चाय बागान में श्रमिक परिवार की हालत खराब है.
क्या करें समझ में नहीं आता. यहां की स्वास्थ्य परिसेवा, विद्यार्थियों के लिए स्कूल बस नहीं है. जिसके कारण काफी विद्यार्थी स्कूल छोड़कर बाहर काम करने चले गए हैं.
हमें सरकार से चावल-आटा तो मिलता है, लेकिन उसे भी खरीदने के लिए हमारे पास पैसा नहीं होता है. हम नमक और भात खाकर दिन गुजार रहे हैं. चाय बागान खुलने की आस में हमारे आंखें थक चुकी है. अब हमें केवल भगवान पर ही आस है.
चाय बागान के तृणमूल श्रमिक संगठन के यूनिट नेता हरि प्रसाद बड़ाईक ने बताया कि यह सच है कि चाय बागान की अवस्था बहुत खराब है. यदि एक-दो दिनों में चाय बागान समस्या का समाधान नहीं होता है तो हम वोट बहिष्कार करने की भी सोच सकते हैं.
उधर भाजपा श्रमिक संगठन के यूनिट सचिव ने बताया चाय बागान में जो स्थिति पैदा हुई है, उसकी हमलोगों ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. हमारे संगठन की ओर से लगातार चाय बागान को खोलने के लिये बातचीत किया जा रहा है. यदि जल्द कुछ समाधान नहीं निकलता है तो हम श्रमिकों के साथ बैठकर उनके हितों में कुछ निर्णय लेंगे.
नागराकाटा प्रखंड अधिकारी स्मृता सुब्बा ने श्रमिकों को मनरेगा के काम की मजदूरी नहीं मिलने के विषय में कहा कि मनरेगा का पैसा फिलहाल नहीं आया है. जिस दिन आएगा, उसी दिन श्रमिकों को भुगतान कर दिया जायेगा. चाय बागान में स्वास्थ्य परिसेवा के लिए एक एम्बुलेंस परिसेवा आरम्भ करने के लिये प्रयास करने की बात कही.

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