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सिलीगुड़ी : परिवार होते हुए भी लावारिस की जिंदगी जी रहा नवजात

लावारिस स्थिति में रेलवे पुलिस को पैसेंजर ट्रेन में मिला था बच्चा मोहन झा सिलीगुड़ी : पिछले चार महीने से एक मां का कलेजा कानूनी पेंच में फंस कर रह गया है. माता-पिता व परिवार के होते हुए भी सात महीने का वह बच्चा सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में लावारिस की तरह पड़ा हुआ है. एक […]

लावारिस स्थिति में रेलवे पुलिस को पैसेंजर ट्रेन में मिला था बच्चा
मोहन झा
सिलीगुड़ी : पिछले चार महीने से एक मां का कलेजा कानूनी पेंच में फंस कर रह गया है. माता-पिता व परिवार के होते हुए भी सात महीने का वह बच्चा सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में लावारिस की तरह पड़ा हुआ है. एक तरह से कहें तो मां की ममता पर कानूनी पेंच भारी पड़ गया है. बच्चा जन्म से पड़ोसी देश नेपाल का है. इसी से कानूनी पेचिदगियां ज्यादा फंस गयी है.
बच्चा चार महीने से परिवार से जुदा है. सिलीगुड़ी जिला अस्पताल व चाइल्ड वेलफेयर कमेटी (सीडब्ल्यूसी) के समक्ष एक दंपती ने बच्चे पर दावा है. जबकि सीडब्ल्यूसी ने कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के बाद बच्चे को माता-पिता को सौंपने का भरोसा जताया है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार करीब चार महीना पहले 25 अगस्त को बंगाल-बिहार सीमांत गलगलिया रेलवे पुलिस ने तीन माह के एक बच्चे को सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में भर्ती कराया था. रेलवे पुलिस को वह बच्चा पैसेंजर ट्रेन में अकेला बरामद हुआ था.
सिलीगुड़ी जिला अस्पताल ने लावारिस बच्चे की जानकारी सीडब्ल्यूसी को दी. उसके बाद सीडब्ल्यूसी ने लिखित तौर पर सिलीगुड़ी जिला अस्पताल को बरामद बच्चे का अभिभावक नियुक्त किया. बच्चे के माता-पिता के मिलने तक बच्चे की हिफाजत अस्पताल प्रबंधन को सौंप दिया. इसके कुछ ही दिन बाद एक दंपती ने बच्चे पर दावा पेश किया.
बिहार और नेपाल का कनेक्शन
जिस दंपती ने बच्चे पर दावा पेश किया है, उनके मुताबिक बच्चे का नाम लक्ष्मण यादव है. बच्चे की मां राबड़ी देवी व पिता सोमनाथ प्रसाद यादव हैं.
राबड़ी देवी मूल रूप से पड़ोसी राज्य बिहार के किशनगंज जिला अतंर्गत फकारधारा इलाके के वार्ड नंबर 9 की निवासी है. जबकि सोमनाथ प्रसाद पड़ोसी देश नेपाल के झापा जिला अंतर्गत भदरपुर के वार्ड नंबर 5 का रहने वाला है. शादी के बाद राबड़ी देवी अपने पति के साथ नेपाल में ही रहती थी. इन दोनों की एक और बच्ची भी है. 25 अगस्त को राबड़ी देवी अपने मायके से नेपाल लौट रही थी.
वह किशनगंज से एक पैसेंजर ट्रेन पकड़कर खोड़ीबाड़ी के लिए चली. एक स्टेशन पर ट्रेन रूकी थी, वह बच्चे को सीट पर रखकर बच्ची को लेकर स्टेशन पर उतरी कि तभी ट्रेन चल पड़ी. जबकि राबड़ी देवी ट्रेन में नहीं चढ़ पायी. उसके बाद गलगलिया रेलवे स्टेशन पुलिस ने ट्रेन से बच्चे को बरामद कर सिलीगुड़ी जिला अस्पताल में भर्ती कराया था. बच्चा फिलहाल सिलीगुड़ी जिला अस्पताल के पीडियाट्रिक वार्ड में लावारिस के तौर पर भर्ती है.
क्या कहना है अस्पताल का
सिलीगुड़ी जिला अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अमिताभ मंडल ने बताया कि 25 अगस्त को गलगलिया रेलवे पुलिस ने बच्चे को यहां भर्ती कराया. अस्पताल प्रबंधन ने फौरन बच्चे की जानकारी सीडब्ल्यूसी को दिया.
सीडब्ल्यूसी ने लिखित तौर पर असली माता-पिता के न मिलने तक सिलीगुड़ी जिला अस्पताल को ही बच्चे की जिम्मेदारी सौंपी है. सीडब्ल्यूसीही कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से बच्चे के असली माता-पिता की पहचान करेगी. सीडब्ल्यूसी के निर्देश के बगैर सिलीगुड़ी जिला अस्पताल प्रबंधन बच्चे को किसी के हवाले नहीं करेगी.
क्या कहते हैं सीडब्ल्यूसी के अतिरिक्त प्रभारी
इस संबंध में दार्जिलिंग जिला सीडब्ल्यूसी के अतिरिक्त प्रभारी कांति विश्व मोहंती ने बताया कि बच्चा ट्रेन से बरामद हुआ है. बाद में एक दंपती ने बच्चे पर दावा पेश किया है. कागजातों के अभाव में जुबानी दावे कानून स्वीकार नहीं करेगी. दो देशों के बीच का मामला होने से कानूनी प्रक्रिया और लंबी हो गयी है. इस तरह की प्रक्रिया में हर दिशाओं को टटोला जाता है. कानूनी प्रक्रिया में वक्त लगना स्वाभाविक है. सभी प्रमाणपत्र, कागजात व बायोलॉजिकल संबंध स्थापित होने के बाद ही बच्चे को दावा पेश करने वाले दंपती के हवाले किया जायेगा.
यह है कानूनी प्रक्रिया
बच्चे पर दावा पेश करने वाले दंपती के पड़ोसी देश नेपाल का होने से कानूनी प्रक्रिया और जटिल हो गयी है. नियमानुसार दावा पेश करने वाले दंपती की पहचान पत्र,अन्य कागजात, बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र आदि के साथ ही बच्चे के साथ उनका बायोलॉजिकल संबंध प्रमाणित होने के बाद ही सीडब्ल्यूसी बच्चे को उन्हें सौंपेगी. इस प्रक्रिया में देरी होने की वजह से बच्चे के मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार एक वर्ष तक शिशु का स्तनपान आवश्यक है. लावारिस शिशुओं को स्तनपान का सौभाग्यनहीं मिल पाता है. लेकिन दावे के मुताबिक इस बच्चे के माता-पिता होने के बाद भी उसे स्तनपान का सौभाग्य नहीं मिल रहा है. इसबीच,प्राप्त जानकारी के अनुसार दावा पेश करने वाले दंपती ने बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र सहित सभी कागजात सीडब्ल्यूसी को जमा करा दिया है. बल्कि बायोलॉजिकल संबंध स्थापित करने के लिए डीएनए जांच होना है. आरोप है कि चार महीने बाद भी सीडब्ल्यूसी ने इस ओर कदम नहीं बढ़ाया है.
रूद्रनाथ ने बतायी दुखद घटना
सिलीगुड़ी जिला अस्पताल रोगी कल्याण समिती के चेयरमैन डॉ. रूद्रनाथ भट्टाचार्य ने घटना को दुखद बताया है. उन्होंने दावा पेश करने वाले परिवार के प्रति भी सहानुभूति जतायी है. उन्होंने कहा कि एक बच्चे का माता-पिता की गोद से दूर हो जाना दोनों के लिए काफी वेदनादायक है.
यदि यह बच्चा दावा पेश करने वाले दंपती का है तो उन्हें अवश्य मिलेगा. कानून के प्रति उनकी आस्था है और परिवार को भी कानून के प्रति आस्था रखनी चाहिए. सीडब्ल्यूसी मामले की जांच कर रही है. कानूनी प्रक्रिया पूरी होने के बाद सीडब्ल्यूसी के निर्देशानुसार ही सिलीगुड़ी जिला अस्पताल प्रबंधन कार्य करेगी.

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