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दौरे से उम्मीदें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वीडन और ब्रिटेन के दौरे की उपलब्धियों के बारे में काफी हद तक निश्चिंत हुआ जा सकता है, क्योंकि दोनों देश इस यात्रा को विशेष महत्व दे रहे हैं. वर्ष 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के स्वीडन दौरे के तीन दशक बाद जब भारतीय प्रधानमंत्री वहां हैं, तो दुनिया में […]

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वीडन और ब्रिटेन के दौरे की उपलब्धियों के बारे में काफी हद तक निश्चिंत हुआ जा सकता है, क्योंकि दोनों देश इस यात्रा को विशेष महत्व दे रहे हैं. वर्ष 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के स्वीडन दौरे के तीन दशक बाद जब भारतीय प्रधानमंत्री वहां हैं, तो दुनिया में भारतीय अर्थव्यवस्था की धमक है और निवेश के नये अवसर पैदा हुए हैं. एक वजह यह भी है, जो स्वीडन ने नार्डिक देशों (डेनमार्क, फिनलैंड, आइसलैंड, नार्वे और स्वीडन) का पहला सम्मेलन भारत के साथ मिलकर आयोजित करने का फैसला किया है.

नार्डिक देशों में मुक्त व्यापार, बाजार और निजी मिल्कियत को बहुत महत्व दिया जाता है, लेकिन इसमें श्रम बाजार के नुमाइंदे सरकार की मध्यस्थता में काॅरपोरेट जगत से सेवा और भुगतान की शर्तें तय करते हैं. इन देशों ने नागरिकों के लिए सामाजिक कल्याण की बेहतर स्थितियां सुनिश्चित की हैं और टैक्स वसूली का अनुकरणीय मॉडल तैयार किया है.

ये बातें प्रधानमंत्री के ‘सबका साथ-सबका विकास’ वाले सोच के बहुत करीब हैं और उम्मीद की जा सकती है कि भारत-नार्डिक सम्मेलन से सामाजिक कल्याण की नीतियों के बारे में एक-दूसरे से सीखने की नयी राहें खुलेंगी. प्रधानमंत्री मोदी का जोर इस दौरे में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और द्विपक्षीय व्यापार पर होगा और इस लिहाज से देखें, तो नार्डिक देशों में अपनाया गया साफ-सफाई का ढांचा ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकता है.

स्वीडन में 20 हजार की तादाद में आप्रवासी भारतीय हैं. इनके सहारे स्वीडन से व्यापारिक रिश्तों की बढ़वार की उम्मीद बांधी जा सकती है. साल 2000 से अब तक स्वीडिश कंपनियों ने भारत में 1.4 अरब डॉलर का निवेश किया है. उम्मीद की जा सकती है कि स्वीडिश कंपनियों के प्रमुखों से प्रधानमंत्री की मुलाकात से इस निवेश में आगे तेजी आयेगी. ब्रिटेन में भी प्रधानमंत्री मोदी के दौरे को विशेष महत्व दिया जा रहा है.

इसका एक प्रमाण तो यही है कि राष्ट्रमंडल देशों की बैठक में शिरकत करने से पहले ब्रिटेन की प्रधानमंत्री थेरेसा मे से प्रधानमंत्री मोदी की दो दफे मुलाकात होगी. द्विपक्षीय बातचीत का यह अवसर सिर्फ भारतीय नेता को हासिल है, राष्ट्रकुल देशों की बैठक में शिरकत कर रहे अन्य नेताओं को नहीं. मोदी महारानी एलिजाबेथ से भी भेंट करेंगे. भारत और ब्रिटेन का आपसी व्यापार 13 अरब डॉलर का है और समूह-20 के देशों में ब्रिटेन भारत में सबसे बड़ा निवेशक है.

चूंकि प्रधानमंत्री मोदी का खास जोर इस दौरे में विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर है, सो उम्मीद की जा सकती है कि इस यात्रा से टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भारत-ब्रिटेन सहयोग का एक नया अध्याय खुलेगा. अलगाववाद, सीमा-पार से घुसपैठ, अवैध आप्रवासियों के प्रत्यर्पण तथा भारतीयों के लिए ब्रिटिश वीजा नीति जैसे आपसी हित के मसलों पर भी दोनों देशों के बीच नये सिरे से सहमति बनने के आसार हैं.

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