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वृद्धि के अच्छे संकेत
अर्थव्यवस्था में नरमी के माहौल में राहत भरी खबर आयी है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त में आठ प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों में उत्पादन तेज गति से बढ़ा है और मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ी गतिविधियों में लगातार दूसरे महीने विस्तार हुआ है. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) के अमल […]
अर्थव्यवस्था में नरमी के माहौल में राहत भरी खबर आयी है. ताजा आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त में आठ प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों में उत्पादन तेज गति से बढ़ा है और मैन्युफैक्चरिंग से जुड़ी गतिविधियों में लगातार दूसरे महीने विस्तार हुआ है.
ऐसे में यह कहा जा सकता है कि वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) के अमल में आने से जुलाई महीने में अर्थव्यव्यस्था में जो गतिरोध दिख रहा था, वह अब ढीला पड़ रहा है. कोयला, कच्चा तेल, उर्वरक, इस्पात, पेट्रो रिफाइनिंग, बिजली ,सीमेंट और प्राकृतिक गैस उद्योग को अर्थव्यवस्था की बुनियाद माना जाता है. औद्योगिक उत्पादन मापने की सूचकांक आइआइपी में इन मुख्य सेक्टरों की हिस्सेदारी 38 फीसदी है और इनमें विकास दर में कमी या बढ़त से पता चलता है कि देश की अर्थव्यवस्था किस हालत में है.
अगस्त में इन क्षेत्रों में उत्पादन जुलाई की तुलना में दोगुने दर से बढ़ा है. जुलाई में उत्पादन वृद्धि की दर 2.6 फीसदी थी, जो अगस्त में 4.9 फीसदी हो. पर, यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अगस्त की यह बढ़त मुख्य रूप से कोयले और बिजली के उत्पादन में वृद्धि का परिणाम है.
कच्चा तेल, सीमेंट और उर्वरक का उत्पादन पहले की तुलना में घटा है. इसलिए प्रमुख क्षेत्रों में बढ़वार को मिले-जुले नतीजे का कहना ज्यादा ठीक होगा. सरकार के लिए ये आंकड़े एक तरह से खुशखबरी हैं. अप्रैल-जून महीने में वृद्धि-दर गिर कर 5.6 फीसदी रह जाने के कारण सरकार के आर्थिक प्रबंधन की आलोचना हो रही थी.
कहा जा रहा था कि चालू वित्तवर्ष में वृद्धि-दर छह फीसदी के आसपास रहेगी, सो तेज रफ्तारी बनाये रखने के लिए सहायता के उपाय करने चाहिए. विनिर्माण संबंधी गतिविधियों का रफ्तार पकड़ना भी एक शुभ संकेत हैं. कंपनियों को नये आॅर्डर मिलने लगे हैं. जुलाई महीने के अंत में जीएसटी को लेकर उपजी आशंका का असर मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र पर दिखायी दिया था और उत्पादन पर असर हुआ था.
एक सर्वेक्षण में सामने आया कि एक जुलाई से जीएसटी के लागू होने के बाद से कंपनियों ने अपने उत्पादन में कटौती की और उनके भेजने की गति धीमी हुई. कंपनियां नये आॅर्डर लेने में खास उत्साहित नहीं थीं. मैन्युफैक्चरिंग और खरीद की स्थिति के आकलन से जुड़ा मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआइ) पिछले नौ साल के मुकाबले सबसे ज्यादा गिरावट (47.6 अंक) दिखा रहा था.
लेकिन, पीएमआइ अब (सितंबर में) बढ़कर 52 अंकों पर पहुंच गया है. पीएमआइ का अंकमान 50 से ऊपर रहने पर माना जाता है कि मैन्युफैक्चरिंग संबंधी गतिविधियां विस्तार पर हैं. उम्मीद है कि बढ़त का यह रुझान आगे भी जारी रहेगा और नौकरियां अपेक्षा के अनुरूप बढ़ेंगी.
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