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तेल की मार

कहावत है कि चाहे तरबूज चाकू पर गिरे या चाकू तरबूज पर, कटना तरबूज को ही पड़ता है. कच्चे तेल की कीमतों से भारतीय उपभोक्ता का रिश्ता कमोबेश ऐसा ही है. कच्चे तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंची होती हैं, तो देश में भी उपभोक्ताओं को ज्यादा दाम देना पड़ता है. लेकिन, अंतरराष्ट्रीय बाजार […]

कहावत है कि चाहे तरबूज चाकू पर गिरे या चाकू तरबूज पर, कटना तरबूज को ही पड़ता है. कच्चे तेल की कीमतों से भारतीय उपभोक्ता का रिश्ता कमोबेश ऐसा ही है.
कच्चे तेल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंची होती हैं, तो देश में भी उपभोक्ताओं को ज्यादा दाम देना पड़ता है. लेकिन, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें गिरने पर भी उपभोक्ता को शायद ही राहत मिलती है. याद करें 2008 की जुलाई का वक्त, जब भारत को कच्चे तेल के प्रति बैरल के लिए 132.47 डॉलर देना पड़ रहा था. पर, इसके बाद कीमत में गिरावट के रुझान रहे हैं और 65 फीसदी की कमी के साथ जून, 2017 में भारत को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के प्रति बैरल के लिए 46.56 डॉलर देना पड़ रहा है. लेकिन, इस अवधि में मुंबई में तेल की कीमतों (खुदरा) में 43 फीसदी का इजाफा हुआ है.
जून, 2008 में मुंबई में पेट्रोल 55.04 रुपये बिक रहा था, जबकि 2017 के जून में 78.44 रुपये प्रति लीटर. तेल की कीमतों के निर्धारण में कंपनियों के अधिकार को और विस्तार देते हुए 16 जून को सरकार ने तय किया कि तेल की कीमतें बाजार के रुझान के मुताबिक कंपनियां रोज तय कर सकती हैं, ताकि उन्हें 15 दिन की अवधि के इंतजार में घाटा ना उठाना पड़े. अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें तनिक उठान (11 सितंबर को प्रति बैरल 52.73 डॉलर) पर हैं, लेकिन 2008 की तुलना में अब भी वे बहुत नीचे कही जायेंगी. इसके बावजूद बीते मंगलवार को पेट्रोल 79.48 रुपये बिका.
तेल चूंकि हमारी अर्थव्यवस्था की चालक-शक्ति है, तो इसका असर रोजमर्रा की उपभोग की तमाम चीजों की कीमतों पर पड़ता है. फिलहाल खुदरा महंगाई दर पांच महीने के सबसे उच्चतम स्तर पर है. जुलाई में यह दर 2.36 फीसदी थी, लेकिन अगस्त में महंगाई दर (कोर) 4.5 फीसदी की है. बेशक सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों के लिए महंगाई भत्ते में एक फीसदी की बढ़ोत्तरी की घोषणा की है और देर-सबेर राज्यों की सरकारें भी ऐसा कर सकती हैं, परंतु देश की अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा हिस्सा निजी और असंगठित क्षेत्र के दायरे में आता है और इनमें कामगारों की जीविका और आमदनी की स्थिति हमेशा डांवाडोल रहते आयी है.
त्योहारी मौसम से ऐन पहले बढ़ती महंगाई, घटता औद्योगिक उत्पादन और तेल की कम खपत के बीच बढ़ती कीमतों के कारण लोगों की क्रयशक्ति में आ रही कमी पर सरकार को फौरी तौर पर ध्यान देना चाहिए तथा बोझ को कम करने में दखल देना चाहिए.

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