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जल संग्रह की प्राकृतिक संरचनाएं हुईं कम, रिचार्ज नहीं हो पा रहा है भू-जलस्तर, मर रहे तालाब, चीखें भी हो गयीं गुम

राजधानी रांची में भी कभी 50 से ज्यादा बड़े तालाब हुआ करते थे. मौजूदा समय में इनकी संख्या 11 की करीब रह गयी है. यूं कहें कि तालाबों की हत्या की जा रही है, लेकिन उनकी चीखें सुननेवाला कोई नहीं है. जिम्मेदार अधिकारी , निकाय और प्राधिकार सभी राजधानी के विकास की इबारत पढ़ने में […]

राजधानी रांची में भी कभी 50 से ज्यादा बड़े तालाब हुआ करते थे. मौजूदा समय में इनकी संख्या 11 की करीब रह गयी है. यूं कहें कि तालाबों की हत्या की जा रही है, लेकिन उनकी चीखें सुननेवाला कोई नहीं है. जिम्मेदार अधिकारी , निकाय और प्राधिकार सभी राजधानी के विकास की इबारत पढ़ने में मशगूल हैं. इधर, आलम यह है कि ज्यादातर तालाब या तो खत्म हो चुके हैं या खत्म होने की कगार पर हैं. कई को सुखा कर भूमाफियाओं ने उनपर गगनचुंबी इमारतें बना दी हैं.
चौंकानेवाली बात यह है कि राजधानी में ही कुछ तालाबों को सुखाकर उन पर सरकारी इमारतें बनायी जा रही हैं. राज्य के अन्य जिलों में तालाबों की भी कमोबेश यही कहानी है. चिंता का विषय यह है कि अगर इन तालाबों को समय रहते बचाया नहीं गया, तो वह दिन दूर नहीं जब केवल पुरानी तसवीरों में ही तालाब नजर आयेंगे. प्रस्तुत है राजधानी रांची और राज्य के विभिन्न जिलों में तालाबों की मौजूदा हालात की पड़ताल करती प्रभात खबर टोली की यह रिपोर्ट…
10 तालाब, जो अब गायब हो गये
जेल रोड तालाब : जेल रोड स्थित मुखर्जी नर्सिंग होम के समीप स्थित तालाब को भर दिया गया.
इटकी रोड तालाब : इसे भर कर आइटीआइ बिजली सब स्टेशन बना दिया गया.
रांची गोशाला गोरखनाथ टैंक : इस तालाब को भरकर यहां भी भवन बना दिये गये.
गुटवा स्कूल के समीप तालाब : इस तालाब को भरकर कई भवन और दुकानें बना दी गयीं.
भुतहा तालाब : तालाब को भर दिया गया. पूर्व में यह जयपाल सिंह स्टेडियम का हिस्सा था. अब हॉकर मार्केट है.
कर्बला चौक स्थित तालाब : अतिक्रमण कर मकान बना लिया गया है. देखने में नहीं लगता कि यहां तालाब था.
हिनू के बाजपेयी पथ तालाब : तालाब को भरकर कई बड़े-बड़े घरों का निर्माण हो चुका है.
हुंडरु तालाब : हुंडरु तालाब का अतिक्रमण कर तालाब के एक छोर की जमीन को बेच दिया गया.
धुर्वा डैम : धुर्वा डैम के केचमैंट एरिया में व्यापक अतिक्रमण कर कई कच्चे व पक्के भवन खड़े हो गये.
कांके डैम : सरोवर नगर के नीचे इस डैम के जमीन पर तो बाकायदा कॉलोनी तक बस गयी है. कुछ यही हाल डैम के कांके साइड से सटे एरिया का भी है. हालांकि, पिछले वर्ष प्रशासन ने यहां से अतिक्रमण हटाया था. लेकिन कुछ घरों को केवल तोड़ा गया. अधिकतर घर अब भी जस के तस हैं.
राजधानी रांची में कई तालाबों पर बन गयीं इमारतें, तो कई सीवरेज में हो गये तब्दील
ता लाबों को नेचुरल रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम माना जाता है. इसके आसपास के इलाकों का भू-जलस्तर बरकरार रहता है. इससे बड़ी आबादी को वर्ष भर आसानी से पीने योग्य पानी मिलता है.
वहीं, पशु-पक्षी भी इन्हीं तालाबों के भरोसे रहते हैं. रांची नगर निगम से प्राप्त जानकारी के अनुसार राजधानी रांची में 52 तालाब हैं. हालांकि, इन तालाबों में कितने तालाब सरकारी हैं व कितने तालाब रैयती हैं, इसकी सूची नगर निगम के पास नहीं है. लेकिन, इन तालाबों के रख-रखाव पर रांची नगर निगम का रवैया हमेशा से उदासीन रहा है. इन 52 तालाबों में से केवल 11 तालाबों का सौंदर्यीकरण नगर निगम द्वारा कराया जा रहा है. शेष तालाब भगवान भराेसे ही हैं.
गूगल मैप से मिले पुराने और नये मानचित्रों की तुलना करें तो साफ हो जाता है कि जिन जगहों पर कभी बड़े-बड़े तालाब हुआ करते थे, आज वहां बड़ी-बड़ी बिल्डिंग खड़ी हैं. ऐसा नहीं कि जिला प्रशासन, नगर निगम या सरकार को इसकी जानकारी नहीं है.
लेकिन, केवल गिने-चुने तालाबों को ही बचाने का प्रयास किया जा रहा है. जितनी तेजी से राजधानी के तालाब लुप्त हो रहे हैं, उतनी ही तेजी से शहर का भ-ूजलस्तर भी नीचे जा रहा है. इससे शहर में भीषण जल संकट उत्पन्न हो गया है. यह संकट साल-दर-साल गहराता जा रहा है. कहीं-कहीं तो पूरा इलाका पानी को तरस रहा है. अगर समय रहते तालाबों को संरक्षित नहीं किया गया, तो वह दिन दूर नहीं जब पशु-पक्षी भी पानी के बगैर दम तोड़ने लगेंगे.
सीवरेज में तब्दील हो गये हैं शहर के तालाब : रांची के ज्यादातर तालाबों में सीवरेज का पानी डाला जा रहा है. वहीं, आसपास की जगह शौचालय में तब्दील हो गयी है. लगातार गंदगी और कचरा डालने से कई तालाब सूखने लगे हैं. वहीं, कई तालाबों का पानी इतना गंदा है कि उसमें नहाने का मतलब बीमारियों को न्योता देना है. वहीं, तालाबों के किनारे अतिक्रमण से इनकी सूरत भी बिगड़ रही है.
02 तालाब पर बन गये सरकारी भवन
जयपाल सिंह स्टेडियम के समीप जहां हॉकर मॉल बनाया जा रहा है, वहां कभी भुतहा तालाब हुआ करता था. वहीं नगर निगम ने डिस्टिलरी तालाब को भरकर पार्क बना दिया है. इन तालाबों को बचाने के लिए शहर के जागरूक लोगों ने आंदोलन भी किया, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ.
10 तालाबों में गिरता है नालों का पानी
बड़ा तालाब, छोटा तालाब, कमला टैंक, मिसिरगोंदा बस्ती टैंक, हातमा बस्ती टैंक, सुकुरहुटू तालाब, पुंदाग स्थित तालाब, ललगुटवा बस्ती टैंक, जेपी मार्केट धुर्वा स्थित टैंक, चुटिया पावर हाउस के समीप स्थित तालाब आदि.
11 तालाबों का सौंदर्यीकरण
बनस तालाब चुटिया, धुमसा टोली तालाब, टुनकी टोली तालाब, जोड़ा तालाब, तेतर टोली तालाब, दिव्यायन तालाब, हातमा बस्ती तालाब, कडरू तालाब, छोटा तालाब, मधुकम तालाब, अरगोड़ा तालाब.
04 तालाबों की स्थिति अच्छी
आरआरडीए की सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि शहर के आसपास केवल चार की हालत अच्छी है. इनमें हटनिया तालाब, टाटी गांव स्थित तालाब, एयरपोर्ट के पीछे हुंडरू गांव व सपारोम गांव में स्थित तालाब शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट का िनर्देश
तालाबों केा भरकर उस पर भवन या उससे संबंधित िकसी प्रकार का िनर्माण कार्य नहीं िकया जा सकता है. यदि राज्य सरकारें और अन्य प्राधिकार ऐसा करते हैं, तो वह पूर्णत: गैरकानूनी है.
उच्चतम न्यायालय ने सभी राज्यों के मुख्य सचिव को निर्देश जारी िकया है. इसके तहत राज्यों को तालाबों का अतिक्रमण रोकने के लिए त्वरित एवं कड़ी कार्रवाई करना है. इसके साथ ही समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट को यह बताना है कि तालाबों का अतिक्रमण रोकने के लिए उन्होंने क्या-क्या कदम उठाये हैं.
28 जनवरी, 2011 का फैसला
हाइकोर्ट का आदेश
झारखंड हाइकोर्ट ने तालाबों के गायब होने से संबंधित एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से जिलावार रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया था. हाइकोर्ट ने यह रिपोर्ट सर्वे खतियान के आधार पर सभी जिलों के उपायुक्तों के माध्यम से तैयार करने को कहा था.
जिलों से रिपोर्ट प्राप्त कर सरकार को शपथ पत्र के माध्यम से जवाब दाखिल करना है. गौरतलब है कि प्रार्थी ह्यूमिनिटी की अोर से सचिव अजय कुमार ने वर्ष 2017 में हाइकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी थी, जिसमें राज्य के तालाबों को बचाने का आग्रह किया गया था.
7000 तालाब गायब
राज्य में सरकारी और निजी तालाबों का कुल आंकड़ा संभवत: सरकारी विभागों के पास नहीं है. इसके बावजूद ज्ञात स्रोतों से मिले आकंड़ों के आधार पर सभी जिलों के कुल तालाबों की संख्या 40 हजार के पार आंकी जा रही है. वहीं, लुप्त हो चुके छोटे-बड़े तालाबों का अनुमानित आंकड़ा भी सात हजार के पार बताया जा रहा है. मिसाल के तौर पर पूर्वी सिंहभूम के कृषि कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार कुछ साल पहले तक जिले में 850 सरकारी तालाब थे, जिनमें से 310 तालाब विलुप्त हो चुके हैं. वहीं, पश्चिम सिंहभूम जिले में 1100 तालाब थे, जिसमें से अब 360 ही बचे हुए हैं. उधर, गुमला जिले में 81 तालाब थे.
इनमें से फिलहाल इक्का-दुक्का ही बचे हुए हैं. दुमका जिले के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. यहां मत्स्य विभाग के मुताबिक पांच साल पहले तक 12847 निजी और 659 सरकारी तालाब थे. वर्तमान में इनमें से 5219 लुप्त हो चुके हैं. जबकि, देवघर जिले में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस जिले में 1657 तालाब थे, जिनमें से 13 विलुप्त हो चुके हैं.
सरकार का प्रयास
रा ज्य बनने के बाद पहली बार यहां की सरकार ने वर्ष 2016 में जल संरक्षण के क्षेत्र में बड़ा प्रयास किया था. मनरेगा के तहत 2.5 लाख डोभा बनाने का लक्ष्य ग्रामीण विकास विभाग का था. इसके विरुद्ध 24 जून 2016 तक 103917 डोभा बना दिये गये. वहीं कृषि विभाग के तहत भूमि संरक्षण निदेशालय ने भी संबंधित वर्ष में राज्य भर में करीब 60 हजार डोभा का निर्माण कराया था. इस तरह अब तक 1.63 लाख डोभा का निर्माण हो चुका है. आम तौर पर 30 गुना 30 गुना 10 फुट आकार वाले डोभा में बरसात का पानी जमा हो जाता है. कई जगह इसमें मछलीपालन भी किया जा रहा है.
सरकार करे संरक्षण
ज ल संरक्षण के लिए शहर के तालाबों को बचाना होगा. इसके लिए सरकार सभी तालाबों (सरकारी व रैयती) को अपने कब्जे में ले या कम से कम तालाबों के मालिकों को निर्देश दे कि किसी भी हाल में तालाब पर किसी प्रकार का निर्माण न हो. तभी तालाब जिंदा रह सकते हैं. गरमी में जलसंकट की समस्या का एक बहुत बड़ा कारण तालाबों का लुप्त होना है. कम से कम पांच साल में एक बार तालाब में जमा गाद को निकालना होगा. साथ ही तालाबों के आसपास हरियाली को बढ़ावा देना होगा.
नीतीश प्रियदर्शी,
प्रो भू विज्ञान विभाग, रांची विश्वविद्यालय

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