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रांची : शहर के सभी मैदानों की स्थिति खराब, बच्‍चों से छीना मैदान

दिवाकर सिंह/उत्तम/राजीव पांडेय आयोजन के कारण हफ्ते भर से बंद है 400 फुटबॉलरों का अभ्यास हरमू मैदान क्रिकेट और फुटबॉल खेलनेवालों के लिए अभ्यास का बड़ा केंद्र है. अनुमान के मुताबिक हर दिन इस मैदान में 900 से ज्यादा खिलाड़ी अभ्यास करने के लिए आते हैं. लेकिन, इस मैदान में साल भर विभिन्न प्रकार के […]

दिवाकर सिंह/उत्तम/राजीव पांडेय
आयोजन के कारण हफ्ते भर से बंद है 400 फुटबॉलरों का अभ्यास
हरमू मैदान क्रिकेट और फुटबॉल खेलनेवालों के लिए अभ्यास का बड़ा केंद्र है. अनुमान के मुताबिक हर दिन इस मैदान में 900 से ज्यादा खिलाड़ी अभ्यास करने के लिए आते हैं. लेकिन, इस मैदान में साल भर विभिन्न प्रकार के आयोजन होते रहते हैं, जिसकी वजह से खिलाड़ियों का अभ्यास बाधित होता है. मौजूदा समय में भी यहां एक बड़ा आयोजन हो रहा है, जो महीने भर चलेगा. इसके लिए मैदान के बीचोबीच बड़ा सा पंडाल बनाया गया है. इससे लगभग 400 फुटबॉलरों का अभ्यास करीब हफ्ते भर से बंद है.
आज से 20 साल पहले तक रांची शहर की आबोहवा एकदम अलग थी. मोरहाबादी मैदान, हरमू मैदान, रांची पहाड़ी सहित बरियातू फायरिंग रेंज के पास मौजूद खुली जगह बच्चों के खेलने के लिहाज से महफूज और बेहतर थी.
अभिभावक भी निश्चिंत रहते थे. लेकिन शहरीकरण का फेर कहें या विकास की अंधी दौड़, मैदान भी कंक्रीटीकरण और व्यावसायिक गतिविधियों की भेंट चढ़ गये. बच्चों से उनके खेलने की जगह छीन ली गयी. उनके पास समय गुजारने के लिए न खुला आसमां है और न ही मैदान. खुली जगह के नाम पर मोरहाबादी और हरमू मैदान ही बचे हैं, लेकिन वहां भी लगातार कार्यक्रम होते रहते हैं. ऐसे में बच्चे अपनी सोसाइटी या घरों में ही ज्यादातर समय बिताने को मजबूर हैं. जिसका असर उनके जीवन और स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. ऐसे में शहर के बचे और मिट रहे मैदानों की हकीकत से रूबरू कराने की एक कोशिश है.
रांची : राजधानी की आबादी करीब 16 लाख है, लेकिन यहां ओपेन स्पेस और खेलकूद के मैदान काफी कम हैं. जो बचेखुचे मैदान हैं, उनकी हालत भी कुछ अच्छी नहीं है.
शहर के सबसे ओपेन स्पेस में शुमार किया जानेवाला मोरहाबादी मैदान भी केवल नाम का रह गया है. यहां साल भर किसी न किसी प्रकार का सरकारी व राजनीतिक कार्यक्रम के अलावा मेला आदि आयोजित होता रहता है. इसके लिए जिला प्रशासन बाकायदा आयोजकों से मोटी रकम भी वसूलता है. वहीं, आमलोगों के खेलने कूदने के बने इस मैदान में दिन भर वाहन सीखने वाले अपना वाहन लेकर घूमते रहते हैं. इस कारण मैदान में दिन भर धूल का गुबार उड़ता रहता है.
दूसरी ओर रांची नगर निगम शहरवासियों से कई तरह के टैक्स तो वसूलता है, लेकिन बदले उन्हें किसी तरह की सुविधा नहीं देता है. नगर निगम का काम फिलहाल सड़कों और नालियों की सफाई तक ही सीमित है. जबकि, देश के कई शहरों में नगर निगम द्वारा जनता के खेलने कूदने और टहलने के लिए पर्याप्त मात्रा में ओपेन स्पेस का निर्माण किया गया है. इधर, रांची नगर निगम ने शहर में जिन पार्कों का निर्माण कराया है, उन्हें कमाई का जरिया बना लिया है.
मोरहाबादी का चिल्ड्रेन पार्क, ऑक्सीजन पार्क, स्वामी विवेकानंद पार्क कोकर, हरमू हाउसिंग कॉलोनी का सेक्टर-7 पार्क, सिदो-कान्हू पार्क या शहर के अन्य इलाकों के पार्कों में इंट्री फीस के नाम पर लोगों से 10-30 रुपये तक की वसूली होती है. वाहन पार्क करने का अलग से चार्ज लिया जाता है. सौंदर्यीकरण के नाम पर इन पार्कों में धड़ाधड़ रेस्टूरेंट खोले जा रहे हैं.
समर कैंप बने बच्चों का सहारा : ओपेन स्पेस और मैदान की कमी अब समर कैंप पूरा कर रहे हैं. कई स्कूलों और खेल संघों की ओर से एक महीने स्पेशल समर कैंप का आयोजन किया जा रहा है. इसमें एथलेटिक्स, ताइक्वांडो, फुटबॉल, क्रिकेट के साथ इंडोर गेम्स भी शामिल हैं. वहीं, कुछ स्कूलों की ओर से भी समर कैंप लगाया गया है. प्रशिक्षक गोविंद झा बताते हैं कि गांधीनगर में समर कैंप लगाया गया है, जहां स्कूलों के अलावा आसपास के इलाकों के बच्चों को भी प्रशिक्षण दिया जाता है.
मोबाइल और कम्यूटर में सिमट गये हैं बच्चे : मोबाइल और कंप्यूटर के युग से पहले बच्चों का समय खेलकूद में गुजरता था, लेकिन क्रांति के कारण बच्चे मोबाइल व कंप्यूटर में सिमट गये. खेल के मैदान से उनका नाता खत्म हो गया. खेल के मैदान में हाेनेवाला क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी मोबाइल पर खेलने लगे. नतीजतन बच्चों का शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होने लगा और वे बीमार होने लगे.
एचइसी खेल मैदान
एचइसी की स्थापना के साथ ही आवासीय कॉलोनी में हर 12 क्वार्टर के बीच में एक खेल का मैदान बनाया गया. आर्थिक स्थिति खराब होने के बाद एचइसी प्रबंधन ने आवासों को दीर्घकालीन लीज पर देना शुरू किया. इसके बाद गैरेज और दुकानों के निर्माण के कारण मैदानों का अस्तित्व खत्म हो गया.
एथलेटिक्स मैदान, एचइसी
1963 में बना एचइसी के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में कभी विभिन्न प्रकार के खेलों के राज्यस्तरीय और राष्ट्रीय स्तर के आयोजन होते थे. आज इसकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है. हर समय खुला रहन के कारण यह स्टेडियम अब जानवरों की चारागाह और शराबियों का अड्डा बन गया है.
मोरहाबादी आर्चरी मैदान
30 साल पहले बिरसा मुंडा फुटबॉल मैदान के निर्माण के वक्त बगल में एक और मैदान बना था. शुरू में यहां साई द्वारा तीरंदाजी का अभ्यास और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती थीं. इससे इसका नाम आर्चरी मैदान पड़ा. अब चारों तरफ से घेर कर इसे पार्क बना दिया गया है, जहां तीरंदाज अभ्यास करते हैं.
रातू रोड का ओटीसी मैदान
रातू रोड के ओटीसी मैदान में कभी अंग्रेज हॉकी खेलते थे और टूर्नामेंट हुआ करता था. कभी हरा-भरा यह मैदान आज देखरेख के अभाव में दयनीय हालत में पहुंच गया है. लेकिन इसको बेहतर बनाने के लिए न तो सरकार द्वारा न ही रांची नगर निगम द्वारा किसी तरह का प्रयास किया जा रहा है.
गोस्सनर मैदान
जीइएल चर्च कॉम्प्लेक्स के पीछे का मैदान सौ साल पुराना है. यहां बच्चे क्रिकेट खेलते हैं. साथ ही फुटबॉल टूर्नामेंट भी होते हैं. रख-रखाव के अभाव में मैदान की स्थिति दयनीय हो गयी है. यह अब खेलने लायक नहीं बचा है. चिंता की बात यह है कि इसकी बेहतरी के प्रयास भी नहीं हो रहे हैं.
हिंदपीढ़ी का खेत मैदान
हिंदपीढ़ी के खेत मोहल्ला में भी एक ऐतिहासिक मैदान हुआ करता था. इसी मैदान से महात्मा गांधी रामगढ़ अधिवेशन के लिए निकले थे. वहीं इस मैदान में आसपास के बच्चे खेलते थे और सुबह से शाम तक बच्चों का यहां जमावड़ा लगा रहता था. लेकिन अब इस मैदान पर अवैध कब्जा हो गया है.
निर्माण की वजह से सिकुड़ता गया मैदान
मोरहाबादी मैदान में सर्वप्रथम बिरसा मुंडा फुटबॉल स्टेडियम का निर्माण किया गया. इससे इस मैदान का क्षेत्रफल आधा हो गया. इसके अलावा प्रशासन द्वारा मैदान के दक्षिणी छोर पर 200 फीट बाइ 100 वर्गफीट के स्टेज का निर्माण कराया गया. स्टेज के बगल में जो भूखंड बचा हुआ था.
उसे प्रशासन द्वारा ढाल दिया गया. आज इस भूखंड पर चिल्ड्रेन पार्क सहित ठेला खोमचा वाले दुकान लगा रहे हैं. बचे हुए हिस्से पर डीटीओ द्वारा प्रति सप्ताह वाहन ड्राइविंग का टेस्ट लिया जाता है. अब जुडकाे द्वारा इस मैदान को टाइम्स स्क्वायर के तर्ज पर विकसित करने के लिए मैदान के चारों ओर बड़ी-बड़ी एलइडी स्क्रीन लगायी गयी हैं. स्क्रीन लगाने के लिए चारों ओर लोहे के मोटे-मोटे पिलर खड़े किये गये हैं.
बन गया है मिट्टी का पहाड़
शहर के बीचोबीच स्थित जयपाल सिंह स्टेडियम कभी स्थानीय खिलाड़ियों से गुलजार रहा करता था. लेकिन पिछले दो से तीन साल में यहां निर्माण कार्य शुरू हुआ और खिलाड़ियों और बच्चों के खेलने पर प्रतिबंध लग गया. वर्तमान में निर्माण कार्य तो पूरा हुआ नहीं, लेकिन मैदान पूरी तरह से बर्बाद हो गया. यहां मिट्टी का पहाड़ बना हुआ है. पहले यहां हर दिन 500 से 600 खिलाड़ी और बच्चे सुबह व शाम खेलने आया करते थे.
हरमू मैदान में आयोजनों से खिलाड़ी परेशान
प्रोग्राम के कारण यहां हरमू मैदान में प्रैक्टिस में परेशानी होती है. सुबह में तो हम यहां अभ्यास कर लेते हैं, लेकिन शाम में ये मैदान गाड़ियों से भर जाता है, जिसके कारण अभ्यास नहीं हो पाता है.
पंकज, क्रिकेटर, हरमू मैदान
जब-जब हरमू मैदान में कार्यक्रम आयोजित होता है, यहां धुल उड़ने लगती है. हमें अभ्यास करने में परेशानी होती है. इसके अलावा प्रोग्राम समाप्त होने पर यहां कचरे का अंबार लग जाता है.
चंदू, क्रिकेटर, हरमू मैदान
आये दिन यहां आयोजन होता है, जिसके कारण हम मैच नहीं खेल पाते हैं. आयोजन की समाप्ति के बाद पूरे मैदान में कीलें बिखरी हुई होती हैं, जिससे यहां चलने में परेशानी होती है.
रिषभ रॉय, क्रिकेटर, हरमू मैदान
जयपाल सिंह स्टेडियम निर्माण से हुआ बर्बाद
जयपाल सिंह स्टेडियम में ही कबड्डी का अभ्यास करके आगे बढ़े हैं. लेकिन अब स्थिति ये हो गयी है कि यहां पैर रखने का भी मन नहीं करता है. मैदान की खराब स्थिति काफी खराब है.
शिवसागर, कबड्डी खिलाड़ी
जयपाल सिंह स्टेडियम का हाल देखकर दुख होता है. पहले यहां हर सुबह 400 से 500 खिलाड़ी अभ्यास करते थे. अलग-अलग खेलों के खिलाड़ियों ने यहां से अपना कैरियर बनाया है.
प्रदीप तिर्की, कबड्डी खिलाड़ी
निर्माण के नाम पर जयपाल सिंह स्टेडियम को बर्बाद किया गया. सरकार से हमारी मांग है कि जल्द से जल्द मैदान बनाकर दिया जाये. जब तक इसे मैदान नहीं बना दिया जाता, हम आंदोलन जारी रखेंगे.
हरीश कुमार, संयोजक, जयपाल सिंह स्टेडियम बचाओ संघर्ष समिति
आप ने कहा
मिट्टी-धूल में बच्चे खेलते थे, तो बढ़ती थी बच्चों को रोग प्रतिरोधक क्षमता
बच्चों के शारीरिक व मानसिक विकास के लिए खेलकूद बहुत जरूरी है. आज रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से बच्चे कम उम्र में ही बीमार हो रहे हैं. पहले बच्चे धूल-मिट्टी में खेलते थे, तो उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती थी, लेकिन मोबाइल की लत बीमारी को न्योता दे रही है. बच्चों में मोटापा बढ़ रहा है और वे कम उम्र में डायबिटीज व बीपी की चपेट में आ रहे हैं.
थायराइड आदि जैसी हार्मोनल बीमारियां भी हो रही हैं. वहीं, ज्यादा देर तक मोबाइल, कंप्यूटर व टीवी देखने से आंखों की बीमारी हो रही है. बच्चे परेशान नहीं करें, इसलिए अभिभावक मोबाइल पर गेम लगा कर दे देते है, लेकिन वह यह नहीं समझते है कि बच्चा बीमार हो रहा है.
डॉ पीके गुप्ता, शिशु रोग विशेषज्ञ, ऑर्किड मेडिकल सेंटर
शहर में बचे हुए मैदानों को संरक्षित करना ही एक मात्र उपाय है
यह सही है कि शहर में मैदानों की संख्या कम है. जो मैदान बचे हैं, उसमें भी साल भर कुछ न कुछ कार्यक्रम चलता रहता है. ऐसे में सरकार क्या करे. सरकारी जमीन अब शहर में कहीं है नहीं. जो निजी जमीन हैं, उन भूखंडों पर लोग मॉल से लेकर बहुमंजिली इमारतें बना रहे हैं. ऐसे में एक ही उपाय बचता हैकि जो पहले से मैदान बचे हुए हैं, उन्हें ही संरक्षित किया जाये, ताकि इन मैदानाें का लाभ अधिक से अधिक लोगों को मिल सके.
सीपी सिंह, नगर विकास मंत्री
जहां भी खाली जमीन मिलेगी, उसे पार्क के रूप में डेवलप करेंगे
यह सही है कि शहर में ओपेन स्पेस की कमी है, लेकिन नगर निगम अब ओपेन स्पेस को बढ़ावा देने के लिए प्रयत्नशील है. हम निगम के 53 वार्डों में वार्ड पार्षदों के माध्यम से सर्वे करवा रहे हैं. हमें जहां भी खाली जमीन मिलेगी, वहां हम पार्क के रूप में डेवलप करेंगे. अभी जो मैदानों में मेला आदि लग रहा है, उसके लिए नगर निगम अर्बन हाट के निर्माण में लगा हुआ है. एक बार अर्बन हाट के बन जाने के बाद शहर के किसी भी मैदान में किसी प्रकार का मेला नहीं लगेगा.
संजीव विजयवर्गीय, डिप्टी मेयर, रांची नगर निगम
पीएमओ तक से की है शिकायत
खेल का मैदान तो शहर में होना ही चाहिए. मैदान नहीं होंगे, तो बच्चे खेलने-कूदने के लिए कहां जायेंगे? वर्तमान समय में खेल के मैदान गायब होते जा रहे हैं. ऐसे में बच्चे चाह कर भी मैदान में नहीं निकल पा रहे हैं.
मोरहाबादी मैदान व हरमूू मैदान किसी तरह बच पाया है. सिविल सोसाइटी के बैनर तले हम खेल के मैदान, पार्क व पुराने धरोहर स्थलों को बचाने का प्रयास करते हैं. पीएमओ तक को इसकी सूचना दी गयी है.
राजेश दास, सदस्य सिविल सोसाइटी

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